कन्हैया क्या पार्टी की मर्ज़ी के बिना कर रहे फ़ंड इकट्ठा?
अतुल कुमार अंजान इस सवाल का सीधा जवाब तो नहीं देते, लेकिन उनका कहना है कि पार्टी किसी भी तरह की कॉर्पोरेट फंडिंग को स्वीकार नहीं करती.
बात 17 साल पुरानी है जब देश के दिग्गज उद्योग घराने टाटा समूह के रतन टाटा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को डेढ़ करोड़ रुपये का चेक भिजवाया था तो पार्टी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता एबी वर्धन ने उसे लौटा दिया था और कहा था कि पार्टी कॉर्पोरेट से चुनावी चंदा नहीं लेती.
पार्टी के नेता अतुल कुमार अंजान दावा करते हैं कि वो इस घटना के गवाह थे.
सीपीआई और कॉर्पोरेट से चुनावी चंदे की बात इन दिनों इसलिए चर्चा में है क्योंकि पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे कन्हैया कुमार क्राउड फंडिंग के ज़रिए फंड जुटा रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस प्रक्रिया में कॉर्पोरेट चंदे से बचा नहीं जा सकता.
पार्टी ने जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को बिहार के बेगूसराय से अपना प्रत्याशी बनाया है.
कन्हैया के लिए चुनावी चंदा इकट्ठा करने वाली वेबसाइट के अनुसार, कैंपेन लॉन्च होने के 24 घंटे के अंदर क़रीब 31 लाख रुपये इकट्ठा हुए हैं.
लेकिन ऐसा लगता है कि सीपीआई ने चंदा इकट्ठा करने के कन्हैया के इस तरीके से ख़ुद को अलग कर लिया है.
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क्राउड फंडिंग 'निजी पहलकदमी'
सीपीआई नेता अतुल कुमार अंजान का कहना है कि पार्टी कॉर्पोरेट फंडिंग के सख़्त ख़िलाफ़ है और चुनावी कॉर्पोरेट फंडिंग की विरोधी भी है.
चार साल से कन्हैया कुमार के सहयोगी और वर्तमान में उनके चुनावी प्रबंधन में मदद कर रहे वरुण आदित्य का कहना है कि 'ये कन्हैया के सहयोगियों की निजी पहलकदमी है.'
आदित्य के अनुसार, 26 मार्च को जब फ़ंड इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया गया तो कुछ घंटों में ही क़रीब 30 लाख रुपये इकट्ठा हो गए, जबकि 33 दिनों के अंदर 70 लाख रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है.
दिलचस्प बात ये है कि कन्हैया के लिए क्राउड फ़ंडिंग करने वाली संस्था ऑवर डेमोक्रेसी के कैंपेन पेज पर 'नमो अगेन' से लेकर आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार अतिशि मार्लीना तक के नाम मौजूद हैं.
संस्था के संस्थापकों में दिल्ली डॉयलॉग के पूर्व सदस्य से लेकर पत्रकार तक शामिल हैं.
कन्हैया का प्रचार करने बेगूसराय पहुंचे गुजरात के एमएलए जिग्नेश मेवाणी का कहना है कि जबसे ये अभियान शुरू किया गया उसके 12 घंटे के अंदर ही 30 लाख रुपये इकट्ठा हो गए थे.
वेबसाइट पर साइबर अटैक
वेबसाइट पर पिछले दो दिन से 'मेंटेनेंस एरर' आ रहा है और वो खुल नहीं रही है.
आदित्य कहते हैं कि 'कैंपेन शुरू होते ही वेबसाइट पर इतने साइबर अटैक हुए कि वेबसाइट डाउन हो गई.' उनका इशारा कन्हैया के विरोधियों की ओर था.
लेकिन कन्हैया के इस तरह चुनावी फंड जुटाने की कुछ लोग सोशल मीडिया आलोचना भी कर रहे हैं.
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सीपीआई नेता अतुल अंजान का क्या है कहना
तो क्या कन्हैया के इस तरह पैसा जुटाने पर उनकी पार्टी यानी सीपीआई की रज़ामंदी है?
अतुल कुमार अंजान इस सवाल का सीधा जवाब तो नहीं देते, लेकिन उनका कहना है कि पार्टी किसी भी तरह की कॉर्पोरेट फंडिंग को स्वीकार नहीं करती.
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने किसी को भी फंड इकट्ठा करने के लिए हायर नहीं किया है.
सीपीआई के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने भी माना कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों में 36 सीटों से चुनाव लड़ रही है और उनकी जानकारी में कन्हैया के अलावा एक और उम्मीदवार हैं जो क्राउड फ़ंडिंग का सहारा ले रहे हैं.
उनका ये भी कहना था कि पार्टी फ़ंड के इस तरीके के इस्तेमाल पर पार्टी में कोई वार्ता हुई थी या नहीं इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.
अतुल कुमार अंजान का कहना था, "घर घर डब्बा लेकर जाना और पैसा इकट्ठा करने को ही हम जनता से पैसा इकट्ठा करना मानते हैं. वरना क्राउड फंडिंग में तो कौन लोग हैं, कौन जानता है?"
उन्होंने कहा कि देश में जब पहली बार कॉर्पोरेट घरानों ने राजनीतिक दलों को फ़ंड देने की शुरुआत की थी तो सीपीआई ऐसी पहली पार्टी थी जिसने इसे अस्वीकार कर दिया था.
वो बताते हैं, "2002-03 में रतन टाटा की ओर जब डेढ़ करोड़ रुपए का चेक आया तो तत्कालीन नेता एबी बर्द्धन ने उसे लौटा दिया. मैं उसका गवाह रहा हूं."
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कार्पोरेट फंड की घुसपैठ!
हालांकि जिग्नेश मेवानी का कहना है कि 'लोगों के अनुरोध पर चंदे की अधिकतम सीमा पांच लाख रुपये की रखी गई है, उससे अधिक कोई चंदा नहीं दे सकता है.'
लेकिन इस तरह फंड इकट्ठा किए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इसमें कार्पोरेट फ़ंड की घुसपैठ हो सकती है.
अभी तक जुटे कुल फंड देने वालों में दिल्ली के एक कारोबारी का नाम आ रहा है जिसने अधिकतम पांच लाख रुपये का चंदा दिया है.
और कहा जा रहा है कि इस कारोबारी की कंपनी के एडवाईज़री बोर्ड में पेटीएम मालिक विजय शेखर शर्मा का नाम है.
बहरहाल क्राउड फंडिंग की शुरुआती सफलता से कन्हैया के सहयोगियों को लग रहा है कि 70 लाख रुपये का लक्ष्य समय से पहले पूरा हो सकता है.
देखना ये होगा कि इतनी जुगत के बावजूद कन्हैया बेगूसराय से जीत का सेहरा पहनते हैं कि नहीं.
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