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क्या जाट-गुर्जरों के भरोसे पश्चिमी यूपी में महागठबंधन को चुनौती दे पाएगी बीजेपी?

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नई दिल्ली- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देवबंद में मुस्लिमों से अपना वोट नहीं बंटनेदेने की मायावती की अपील ने बीजेपी को भी हिंदू कार्ड खेलने का मौका थमा दिया। मायावती ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे उनका अपना चुनावी गणित है। लेकिन, इसके चलते पहले चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने तक बीजेपी को फिर से ध्रुवीकरण की कोशिश करने का मौका मिल गया। भाजपा को उम्मीद है कि माया के एम फैक्टर (M Factor) का जवाब जाट-गुर्जर वोटर ही हो सकते हैं, जो पश्चिमी यूपी के दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या इस बार बीजेपी अपने इस मकसद में कामयाब हो पाएगी?

जाट-गुर्जर मतदाताओं का प्रभाव

जाट-गुर्जर मतदाताओं का प्रभाव

महागठबंधन ने पश्चिमी यूपी में अपना जोर दलित और मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने पर लगाया है। ऐसे में सबकी नजरें इलाके के जाट और गुर्जर मतदाताओं पर जा टिकी हैं कि वो क्या करेंगे? क्या वे एक साथ किसी के साथ जाएंगे कि उनका वोट भी इधर-उधर बंट जाएगा। हालांकि, ये तथ्य है कि 2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में इन दोनों दबंग जातियों का वोट बीजेपी के पक्ष में मजबूती से डटा रहा था। एक आंकड़े के मुताबिक ये दोनों जातियां पश्चिमी यूपी की जिन दो दर्जन से ज्यादा सीटों के चुनाव को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं, उनमें 16 पर पहले दो चरणों में ही चुनाव होने हैं। अगर मोटे तौर पर देखें तो जाट बिजनौर, मुजफ्फरनगर, कैराना, बागपत और मेरठ लोकसभा क्षेत्रों में निर्णायक रोल में हैं, तो गुर्जरों का गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, सहारनपुर और बुलंदशहर की सीटों पर बहुत ज्यादा दबदबा है। ये तथ्य भी दिमाग में रखने लायक है कि 25 से 30 फीसदी जाट और गुर्जर वोटर परंपरागत तौर पर खेती-किसानी से जुड़े हैं। इनमें से भी अधिकांश संख्या गन्ना किसानों की है, जो अपनी बकाया राशि के लिए परेशान हैं और क्षेत्र के जाट नेता अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह उसी आधार पर एकबार फिर से जाटों में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं, जो पिछले दो चुनावों से उन्हें नकार चुके हैं।

पिछले चुनाव में क्या हुआ?

पिछले चुनाव में क्या हुआ?

अगर 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो इन दोनों समाज ने कम से कम 25 सीटों पर मुख्य भूमिका निभाई और लगभग सभी सीटों पर बीजेपी जीतने में कामयाब रही। लेकिन, बुआ-बबुआ और चौधरी ने महागठबंधन बनाकर इसबार जाट और गुर्जरों का वोट बंटने की बड़ी संभावना पैदा कर दी है। पश्चिमी यूपी में बीजेपी को अपने लिए इन दोनों के समर्थन की अहमियत का पूरा अंदाजा है। वह किसी भी हाल में इनका वोट गंवाना नहीं चाहती, इसलिए पहले दो दौर में ही भाजपा ने 16 सीटों में से 12 सीटों पर जाट और गुर्जर उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है। जबकि इसकी काट में महागठबंधन ने 8 उम्मीदवार इन्हीं दोनों जातियों से उतारे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और क्षेत्र के जाट नेता राकेश टिकट ने बताया कि 2014 में दोनों समुदायों ने एकतरफा बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की थी, जिसके कारण पार्टी ने पश्चिमी यूपी की सारी सीटें जीत ली थीं। इसबार वे लोग क्या कर सकते हैं, इसपर उन्होंने कहा कि, "लोगों को अपना हित दिमाग में रखना होगा। और इसी से चुनावी नतीजे निकलकर आएंगे।"

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इस बार माहौल कैसा है?

इस बार माहौल कैसा है?

टिकैत आगे कहते हैं कि गन्ना किसानों के लगभग 10,000 करोड़ रुपये के बकाया का मुद्दा उठाकर महागठबंधन बीजेपी की चुनावी संभावना को खत्म करना चाहता है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि "इसबार स्थिति बदल चुकी है। एसपी-बीएसपी और आरएलडी का साथ आना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। जाट और गुर्जर वोटों के बंटवारे की संभावना को कोई खारिज नहीं कर सकता, जो कि बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।" भाजपा को भी क्षेत्र में महागठबंधन से मिल रही चुनौती का पूरा अहसास है। प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर का विपक्ष पर आरोप है कि "धर्म और जाति का मुद्दा उठाकर माहौल को बिगाड़ा जा रहा है।" इसलिए मायावती के बयान के खिलाफ पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत करने में भी देरी नहीं की। सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील इस इलाके को लेकर पार्टी को पूरा इल्म है कि जाट और गुर्जर मतों के अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के लिए ऐसे ही मुद्दे चाहिए, जैसे मायावती ने दिए हैं। इसलिए, योगी आदित्यनाथ ने 2013 ने जाट युवकों की हत्या का मुद्दा छेड़कर मुजफ्फरनगर दंगे की याद ताजा कराने की कोशिश की है, तो हाल ही प्रधानमंत्री मोदी ने चौधरी अजीत सिंह पर दंगाइयों का साथ देने का आरोप लगाकर हमला बोल चुके हैं।

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English summary
Is Jat-Gujjar vote BJP’s answer to UP mahagathbandhan?
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