कोरोना के संकट में क्या स्विमिंग पूल में नहाना सेफ है? जानिए जवाब
कोरोना वायरस की महामारी के दौरान क्या नदी या स्विमिंग पूल में नहाना सुरक्षित है? जानिए जवाब
नई दिल्ली। कोरोना वायरस की महामारी से इस वक्त पूरी दुनिया जूझ रही है। दुनिया के अलग-अलग देशों में वैक्सीन बनाने के लिए कोशिशें जारी हैं, लेकिन अभी तक किसी भी देश को इस दिशा में सफलता नहीं मिली है। ऐसे में कोरोना वायरस के संक्रमण से खुद को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, चेहरे पर मास्क और हाथों को बार-बार धोना ही एकमात्र उपाय है। इस बीच एक सवाल ये भी उठ रहा है कि कोरोना वायरस की महामारी के दौरान क्या बीच और पूल में नहाना सुरक्षित है? आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट्स?
'ऐसा कोई साक्ष्य नहीं, जिससे...'
हेल्थ एक्सपर्ट्स का इस बारे में साफ तौर पर कहना है कि अगर बीच या पूल में नहाते समय पानी के अंदर और बाहर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए तो आप कोरोना वायरस के संक्रमण से बच सकते हैं। अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के मुताबिक, अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है, जिसके आधार पर ये कहा जाए कि कोरोना वायरस हॉट टब, समुद्र, नदी या पूल में पानी के अंदर एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है। क्लोरीन जैसे पूल कीटाणुनाशक भी वायरस के खिलाफ सुरक्षा की एक लेयर प्रदान करते हैं।
क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए
हालांकि ऐसी जगहों पर भीड़ का इकट्ठा होना एक बड़ा खतरा है। यही कारण है कि पूल और समुद्र तटों को फिर से खोलने में कई नियम लागू किए जा रहे हैं। इन नियमों में लोगों की सीमित संख्या और फेस मास्क जैसी सावधानियां भी शामिल हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस गर्मी में जो लोग बीच या पूल पर जाने की सोच रहे हैं, उन्हें दूसरों लोगों से कम से कम 6 फीट की दूरी बरतनी चाहिए। चेहरे पर मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए, लगातार अपने हाथ धोने चाहिए और अगर ठीक महसूस नहीं कर रहे हैं तो अपने घर के अंदर रहना चाहिए।
बिना लक्षणों वाले मरीजों से संक्रमण का कितना खतरा?
आपको बता दें कि इससे पहले एक सवाल यह भी उठा था कि जिन मरीजों में कोरोना वायरस के लक्षण नजर नहीं आते हैं, क्या उनसे बाकी लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा है। इस मामले पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले कहा कि बिना लक्षणों वाले मरीजों से कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा बेहद कम है, लेकिन अगले ही दिन इस बयान पर यूटर्न ले लिया। कोरोना वायरस की महामारी के दौरान अमेरिका और ब्राजील भी लगातार विश्व स्वास्थ्य संगठन के रवैये पर सवाल उठाते रहे हैं।
'40 फीसदी मामले बिना लक्षण वाले मरीजों से ही फैले'
दरअसल, सोमवार को जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक हुई, जिसमें बताया गया कि अलग-अलग देशों में कोरोना वायरस के ज्ञात रोगियों की कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग के जरिए बिना लक्षणों वाले मरीजों की पहचान की गई और उसके बाद जो डेटा मिला, उसमें बिना लक्षणों वाले मरीजों से संक्रमण का खतरा बेहद कम मिला। हालांकि इसके अगले ही दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि उन्होंने इसके लिए 'दुर्लभ' शब्द का इस्तेमाल किया था और वो रिसर्च के एक छोटे से हिस्से का जिक्र कर रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि 14 फीसदी लोग बिना लक्षण वाले हो सकते हैं, लेकिन शोधकर्ताओं की मानें तो 40 फीसदी मामले बिना लक्षण वाले मरीजों से ही फैले हैं।
चीन के आंकड़ों ने चौंकाया
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते चीन ने वुहान की आबादी के हिसाब से कोरोना वायरस के टेस्ट के रिजल्ट जारी किए थे। चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी के मुताबिक, इसमें पाया गया कि शहर के 9.98 मिलियन लोगों के बीच 300 ऐसे मरीज मिले, जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण नहीं थे। इसके बाद बिना लक्षणों वाले मरीजों के टूथब्रश, मग, मास्क और तौलिए की सतह से सैंपल लेकर जांच की गई तो रिजल्ट नेगेटिव मिले। इसके अलावा इन 300 मरीजों के बेहद करीबी संपर्क वाले 1,174 लोगों की जांच की गई और उनके रिजल्ट भी नेगेटिव मिले। हालांकि डब्ल्यूएचओ ने अब इस दावे को खारिज किया है।
ये भी पढ़ें- कोरोना आपदा में पहली बार, एक दिन में 350 से ज्यादा मौतें