गुलाम नबी आजाद का हाल देखने के बाद कांग्रेस में G-23 पार्ट-2 की तैयारी ?
नई दिल्ली: कांग्रेस में ग्रुप-23 के नेताओं में नेतृत्व के बर्ताव से बेचैनी बढ़ती ही जा रही है। खासकर सोनिया गांधी को खत लिखने वाले गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा के साथ पार्टी ने जिस तरह का ठंडा व्यवहार किया है, उससे उन्हें लगने लगा है कि शायद यह सब एक 'रणनीति' के तहत हो रहा है। गौरतलब है कि पार्टी के 23 असंतुष्ट नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने जो मांगें रखी थीं और उसपर उन्हें विचार करने का भरोसा भी मिला था। लेकिन, वह देख रहे हैं कि उनके सुझावों को अभी भी खुल्लम-खुल्ला दरकिनार किया रहा है और दिल्ली से नेताओं को 'थोपने' की प्रक्रिया रुकी नहीं है। अलबत्ता इस गुट के कुछ नेताओं पर नरमी जरूर बरती जा रही है।
कांग्रेस में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं असंतुष्ट
पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रहा है। इसमें केरल और असम में तो वह हर हाल में सत्ता में वापसी का मंसूबा लेकर चल रही है । लेकिन,ग्रुप-23 के एक वर्ग को इसको लेकर बेचैनी है कि चुनाव की तैयारियां शुरू होने के बावजूद उन्हें पार्टी में विचार-विमर्श की प्रक्रियाओं से दूर रखा जा रहा है। इस वजह से ये खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। खासकर, गुलाम नबी आजाद को जिस तरह से उनका राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने के बाद पार्टी ने आसानी से उन्हें फिलहाल सक्रिय राजनीति से दूर होने दिया है और उनके डिप्टी आनंद शर्मा को भी उनकी जगह प्रमोशन नहीं मिली है, इससे उनके कान खड़े हो चुके हैं। असंतुष्ट गुट के एक सदस्य ने अंग्रेजी अखबार दि हिंदू से कहा है, 'निश्चित ही इसका असर पड़ेगा, क्योंकि हमें लगता है कि नेतृत्व ने आपसी समझदारी की भावना का उल्लंघन किया है।'
जी-23 के किन नेताओं पर नेतृत्व नरम?
वैसे यह भी सच है कि पिछले साल अगस्त में पार्टी के लोकतांत्रिक पुनर्गठन की मांग करने वाले कुछ नेताओं के प्रति आलाकमान ने दरियादिली भी दिखाई है। उनमें से कुछ को चुनाव वाले राज्यों की जिम्मेदारियां भी दी गई हैं। मसलन, मुकुल वासनिक को असम और वीरप्पा मोइली को तमिलनाडु का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। केरल से सांसद शशि थरूर को भी पार्टी ने जनता का मैनिफेस्टो तैयार करने के लिए वहां पर फीडबैक लेने की जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे मुकुल वासनिक ने जी-23 की चिट्ठी पर हुए खुलासे के बाद से ही लगभग एक तरीके से समर्पण कर दिया है। जबकि, किसान आंदोलन के मुद्दे पर थरूर 'नेतृत्व' की इच्छा के मुताबिक सरकार की मुखालफत करते नजर आ रहे हैं।
आजाद को जानबूझकर होने दिया रिटायर ?
लेकिन, ग्रुप-23 के कुछ नेता अपनी अगस्त वाली भावना से अभी भी नहीं डगमगा रहे हैं। खासकर उन्हें इस बात की तकलीफ है कि अभी भी जिला कांग्रेस और प्रदेश कांग्रेस कमिटियों के अध्यक्ष दिल्ली से 'थोपे' जा रहे हैं। उन्होंने जो आंतरिक 'लोकतंत्र' का मुद्दा उठाया था, उसे अनसुना करने का सिलसिला बरकरार है। इन नेताओं के सामने महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अधिकारियों की नियुक्तियां उनकी 'आंख खोलने' के लिए काफी हैं। गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा की स्थिति से तो वो वाकिफ हैं ही। वैसे आजाद को केरल से राज्यसभा में लाने की बात अब शुरू की गई है, लेकिन पहले तो इसपर प्रदेश इकाई में ही मतभेद है। दूसरा, असंतुष्टों को लगता है कि यह देरी जानबूझकर की गई है ताकि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के चहेते मल्लिकार्जुन खड़गे को आसानी से राज्यसभा में उनकी जगह विपक्ष का नेता बनाया जा सके।
पार्ट-2 की तैयारी में कांग्रेस के असंतुष्ट ?
गौरतलब है कि कांग्रेस में असंतुष्टों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की तारीफ करते हुए चुटकी ली थी। लेकिन,यह तथ्य है कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बहाली के मुद्दे पर जारी मतभेद का असर कांग्रेस की संसदीय रणनीति पर भी साफ पड़ती नजर आई है। मसलन, राज्यसभा में आजाद की अगुवाई में विपक्ष कृषि कानूनों पर चर्चा सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक कराने के लिए फौरन तैयार हो गया, लेकिन लोकसभा में राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सदन की कार्यवाही को लगभग एक हफ्ते तक बाधित रखा। कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का साफ कहना है कि चाहे कृषि कानूनों पर रणनीति अपनाने की बात हो या फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ सेना की वापसी का मसला, 'चर्चा की पर्याप्त प्रक्रिया नहीं हुई है'। जी-23 के सदस्य ने दो टूक कहा है- 'मनमाने ढंग से फैसले लिए जाते रहे हैं और निश्चित रूप से इसका असर होगा....'। संकेत साफ है, पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद जी-23 कांग्रेस संगठन में लोकतांत्रिक बदलाव की मांग को लेकर अगला मोर्चा खोल सकता है।