कमलनाथ के बाद है दिग्विजय की बारी, बागियों के चलते बिगड़ सकता है खेल ?
नई दिल्ली- कोरोना वायरस की वजह से राज्यसभा का चुनाव फिलहाल जरूर टल गया है, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। एक तो मध्य प्रदेश में आलाकमान की तमाम हिदायतों के बावजूद वे कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को बचा पाने में पूरी तरह से नाकाम हो चुके हैं। अब उनके राज्यसभा में पहुंचने की राह में भी ग्रहण लगता नजर आ रहा है। हालांकि, जरूरी नहीं कि उनका खेल इस बार भी भाजपा के चलते ही बिगड़े, बल्कि खुद प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता भी इस बार उनके संसद पहुंचने की कोशिशों में पलीता लगाने का काम कर सकते हैं। ये सब सिर्फ सियासी अटकलें ही नहीं हैं। दरअसल, 'महाराज' की बगावत के बाद पार्टी में उनके खिलाफ समीकरण ही ऐसा बन रहा है कि अगर उनका मंसूबा धरा का धरा रह जाय तो बहुत हैरानी भी नहीं होनी चाहिए।
कमलनाथ के बाद है दिग्विजय की बारी?
कोरोना वायरस के चलते चुनाव आयोग ने गुरुवार को होने वाला राज्यसभा चुनाव टाल दिया है। शायद संयोग से ही सही मध्य प्रदेश से कांग्रेस के एक प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के लिए ये एक बड़ा मौका भी हो सकता है कि वो अपनी तैयारियों को और पुख्ता कर लें। क्योंकि, तथ्य ये है कि कांग्रेस एक दिन पहले ही क्रॉस वोटिंग के डर से मॉकपोल की तैयारी कर चुकी थी। दरअसल, इसके जरिए पार्टी यह सुनिश्चित कर लेना चाहती थी कि उसके सभी बचे हुए 92 विधायक अपने दोनों प्रत्याशी दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया के पक्ष में ही वोट डालें। लेकिन, ये पार्टी की सोच थी। पार्टी के दिग्गज दिग्विजय सिंह की चिंता दूसरी है। 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद पार्टी के विधायक किसी एक ही उम्मीदवार की जीत निश्चित तौर पर सुनिश्चित कर सकते हैं। दिग्विजय विरोधी लॉबी इसी में उनके साथ खेल कर सकती है।
सिंधिया से बदला या दिग्विजय की वफादारी को मिलेगा इनाम ?
असल में कांग्रेस में दिग्विजय विरोधी खेमा इस बात के लिए सक्रिय हो चुका है कि वह प्रथम वरियता वोट फूल सिंह बरैया को देने के लिए आलाकमान को मना ले। इस खेमे के तर्क में दम है। इनका कहना है कि बरैया को राज्यसभा भेजकर पार्टी दलितों और आदिवासी समुदाय को बड़ा संदेश दे सकती है। बरैया न सिर्फ दलित समाज से आते हैं, बल्कि दलित बहुल चंबल इलाके से राजनीति भी करते हैं, जहां से अधिकांश (22 में से) बागियों को उपचुनाव भी लड़ना है। सिंधिया की बगावत को चुनौती देने के लिए भी ये दलील कांग्रेस की सियासत में फिट बैठ सकती है। जानकारी के मुताबिक पूर्व मंत्री और पार्टी नेता अखंड प्रताप सिंह ने तो फूल सिंह बरैया के पक्ष में प्रथम वरियता मत की वोटिंग करने के लिए वरिष्ठ नेताओं को लिखा भी है। ऐसे में सिर्फ बचे हुए 42 विधायकों के प्रथम वरियता वाले मत से दिग्विजय का राज्यसभा में पहुंचना मुश्किल हो सकता है। क्योंकि, पहली सीट पर जीत सुनिश्चित करने में पार्टी के 52 विधायकों के प्रथम वरियता मतों की दरकार होगी।
बरैया या दिग्विजय, किसे भेजेगी पार्टी ?
वैसे तो किसी जमाने में मायावती की पार्टी में रहे फूल सिंह बरैया को कांग्रेस में लाने का श्रेय दिग्विजय को ही जाता है और वो सार्वजनिक तौर पर ये कहते भी हैं कि उनकी जगह दिग्विजय का राज्यसभा पहुंचना जरूरी है। लेकिन, सवाल उठता है कि अगर उन्हें इसकी उम्मीद लगेगी कि माहौल दिग्विजय सिंह के खिलाफ बन रहा है तो क्या वो बहती गंगा में हाथ धोने से बचेंगे? एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी है कि कुछ नेता कह रहे हैं कि उनके (बरैया) राज्यसभा में पहुंचने से पार्टी को फायदा होगा। ऐसे में पार्टी जो भी फैसला करेगी उन्हें कबूल होगा। लेकिन, वो अपनी वफादारी भी नहीं भूल रहे और कहते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में दिग्विजय को ही जाना चाहिए। लेकिन वह पार्टी के फैसले को स्वीकार करने के लिए आसानी से तैयार भी हो सकते हैं।
विरोधियों को मात दे पाएंगे दिग्विजय ?
वैसे देखने वाली बात ये है कि दिग्विजय अपने विरोधी लॉबी की काट में क्या जुगाड़ लगाते हैं। क्योंकि, अपनी सीट सुरक्षित करने के लिए वो कमलनाथ सरकार बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुके हैं और कमलनाथ भी इसको जरूर मानते होंगे। पिछले 15 महीनों तक राज्य में जो कांग्रेस सरकार चली है, उसमें मुख्यमंत्री के बाद वो अघोषित तौर पर सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे में वो सिर्फ दलित-आदिवासी के तर्कों के आधार अपनी दावेदारी आसानी से जाने देंगे, ऐसा लगता नहीं है। यही नहीं उनकी मेहनत को कमलनाथ भी तत्काल नजरअंदाज कर पाएंगे, ऐसा लगता नहीं है। लेकिन, जो भी हो 'महाराज' की बगावत ने कमलनाथ के बाद प्रदेश के सबसे धाकड़ कांग्रेसी को भी बुरी तरह फंसा जरूर दिया है।