जानिए, क्या छत्तीसगढ़ में मोदी के मास्टरस्ट्रोक से लड़खड़ा गई है कांग्रेस?
नई दिल्ली- चार महीने पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी को धूल चटा दी थी। पार्टी ने 90 सीटों वाली विधानसभा में 68 सीटों पर कब्जा कर लिया था। राज्य में 15 साल से सत्ताधारी बीजेपी का ग्राफ 15 सीटों तक गिर गया था। इस चुनाव परिणाम ने मोदी-शाह की जोड़ी को राज्य में एक नया प्रयोग का मौका दिया। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपने सारे के सारे प्रत्याशियों को नए चेहरों से बदलने का जोखिम ले डाला। हालांकि, दिसंबर की हार इतनी बड़ी थी कि प्रदेश के बड़े-बड़े पार्टी दिग्गजों ने भी चूं तक करने की हिम्मत नहीं दिखाई। लेकिन, 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव खत्म होने के बाद और 7 लोकसभा सीटों पर होने जा रहे चुनाव से एक दिन पहले वहां की कहानी पूरी तरह से बदली हुई नजर आई। बीजेपी के सभी नए चेहरों पर मोदी का चेहरा इतना भारी पड़ गया कि सब उन्हीं के नाम पर दिसंबर के परिणाम को बदल डालने की सोच रहे हैं। मोदी के नाम पर पार्टी के पुराने दिग्गज भी केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपना भरोसा दोबारा वापस पाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस की कहानी इसके ठीक उलट है। उसके अपने नेता ही मान रहे हैं कि लड़ाई बहुत मुश्किल है। आलम ये है कि पार्टी के नेता अपने गढ़ को भी सौ फीसदी सुरक्षित नहीं मान रहे हैं। ऊपर से गुटबाजी से बेड़ा और गर्क होता दिख रहा है।
बीजेपी के पक्ष में क्या है?
पिछले एक महीने से बीजेपी ने राज्य में जो चुनाव अभियान चलाया, उसका फोकस राष्ट्रीय मुद्दे और मुख्य तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि है। बीजेपी के 10 सीटिंग सांसदों की जगह सारे नए चेहरों ने एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को पूरी तरह से खत्म कर दिया। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि, "जब वह फैसला हुआ (सांसदों को टिकट नहीं देने का), स्टेट यूनिट में हर कोई व्याकुल था। हमें लगा था कि हमें इससे नुकसान होगा। लेकिन, तभी तीन वाक्ये हुए। खासकर शहरी इलाकों में मोदी की लोकप्रियता अभी भी चरम पर है, इसलिए सभी उम्मीदवारों को उसका फायदा मिल रहा है। तब, कुछ नेता जो शुरुआत में नाराज थे और चुनाव प्रचार में मदद नहीं कर रहे थे, उन्होंने महससू किया कि अगर मोदी केंद्र में वापस लौट जाते हैं, तो उनका करियर ही खत्म हो सकता है। इसलिए रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल और यहां तक कि रमन सिंह ने भी जोर-शोर से प्रचार करना शुरू कर दिया।" बीजेपी नेता के मुताबिक पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की मुहिम में भी मतभेद को भांप लिया और वो समझ गए कि पहले जो लग रहा था,असल में कांग्रेस उससे ज्यादा कमजोर है। उनके मुताबिक, "हमें सच में लगता है कि सिर्फ तीन को भूल जाएं, हम कांग्रेस भी ज्यादा सीटें जीत सकते हैं, अगर हम सारी क्लोज सीटें जीत लें।"
कांग्रेस के नेता चिंतित क्यों हैं?
कांग्रेस के लिहाज से सबसे मुश्किल ये है कि बाकी बची 7 सीटों पर चुनाव को उसके अपने नेता ही बेहद मुश्किल मान बैठे हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कबूल किया है कि कई वजहों से पार्टी चुनाव अभियान में लड़खड़ा गई। इसमें स्थानीय, राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दे भी शामिल हैं। इसके लिए वे बीजेपी पर भी आरोप मढ़ते हैं। उनका कहना है कि बीजेपी गरीबों और आदिवासी इलाकों में इसलिए बढ़ रही है कि उसने राज्य सरकार पर चना और नमक पर से सब्सिडी खत्म करने का भ्रम फैलाया। वहां 5 रुपये किलो चना और मुफ्त में नमक दिया जाता था। जबकि, कांग्रेस की दलील है कि आदर्श आचार संहिता के चलते चने का ठेका देने में दिक्कत हो रही है और नमक की खराब क्वालिटी के चलते सप्लाई प्रभावित हुए हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी और आरएसएस (RSS) लोगों को ये बता रहे हैं कि राज्य सरकार ने ये सुविधाएं बंद कर दी हैं और हो सकता है कि चावल देना भी बंद कर दे। इस संकट से निपटने के लिए राज्य के सीएम भूपेश बघेल ने एक विडियो के जरिए लोगों के सामने ये दावा किया कि आने वाले वक्त में सरकार बेहतर क्वालिटी का चना और नमक मुहैया कराएगी।
किन क्षेत्रों को लेकर है ज्यादा चिंता?
कांग्रेस के नेता जिन सीटों पर हार को लेकर आशंकित हैं, उसमें दुर्ग और सरगुजा जैसी सीटें भी शामिल हैं। बड़ी बात ये है कि इन्हीं इलाकों से उसके ताकतवर मंत्री और विधायक आते हैं। इन सीटों पर पार्टी को जिन कारणों से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उसमें से एक कारण मुख्यमंत्री पद को लेकर रही रेस भी है, जिसमें भूपेश बघेल के साथ ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंघदेव भी मुकाबले में चल रहे थे। दुर्ग की बात करें तो 2014 में यहां से ताम्रध्वज साहू जीते थे और विधानसभा में भी मुख्यमंत्री बघेल और गृहमंत्री साहू यहीं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पार्टी के नेता स्वीकार करते हैं कि दुर्ग की रिपोर्ट सही नहीं है। शहरी इलाका होने से यहां मोदी फैक्टर बहुत ज्यादा प्रभावी है। वे बीजेपी के 11 उम्मीदवारों में से भी दुर्ग के उम्मीदवार विजय बघेल को सबसे ज्यादा मजबूत मानते हैं। कांग्रेस नेताओं को लगता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में इस सीट को लेकर तालमेल का अभाव है, जो कि चुनाव में बहुत ज्यादा भारी पड़ सकता है। इसी तरह सरगुजा का भी हाल है। कांग्रेस ने वहां की सभी 14 विधानसभा सीटें जीत ली थीं। तब वहां के लोगों को लग रहा था कि टीएस सिंघदेव मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन,ऐसा नहीं होने के कारण लोग खासे नाराज हैं। पार्टी के नेताओं को लगता है कि ऐसी स्थिति में ये दोनों सीटें वह हार भी जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
नेतृत्व से भी नाखुशी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर भी विधायकों में अंदर ही अंदर काफी नाराजगी है। एक कांग्रेस नेता कहते हैं, "विधानसभा में जीत के बाद राहुल गांधी ने बार-बार कहा था कि यह एक टीम की जीत थी और इसके लिए सबने काम किया था। अभी भी अपने भाषणों में वो हमेशा बघेल, सिंघदेव और साहू का नाम एकसाथ लेते हैं। लेकिन, क्या चुनाव मुहिम में ऐसा हो रहा है? बघेल मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दोनों हैं। जो उनके करीब है, उसे फेवर मिलता है, जो नहीं है उसे नहीं मिलता है। वह खुद को छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा नेता बनाना चाहते हैं और लोगों को साथ लेकर नहीं चल रहे हैं। चुनाव अभियान में अपना दिल और आत्मा लगाने से हमें कोई फायदा नहीं।"
बेहद कठिन है मुकाबला
मंगलवार को राज्य के जिन बाकी बची 7 सीटों पर चुनाव होने हैं, उसमें हर सीट पर पार्टी का मुकाबला बहुत ही कड़ा है। 2 सीटों पर तो पार्टी लगभग हार मानकर चल रही है। जबकि, बाकी 5 सीटों पर इतना नजदीकी मामला है कि कुछ भी कहना बहुत ही मुश्किल है। हालांकि, कांग्रेस ने अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है, लेकिन उसके मन में यह डर जरूर है कि आखिरकार कहीं बीजपी पूरी बाजी ही नहीं पलट दे, जिसकी संभावना एक महीने पहले तक कहीं नजर नहीं आ रही थी।
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