क्या सीएए और एनआरसी के खिलाफ फिर शुरू होने जा रही है मुहिम, तैयारी में जुटे प्रदर्शनकारी!
बेंगलुरू। नागारिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ आंदोलन को एक बार फिर शुरू करने की तैयारी शुरू होने जा रही है। इसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट में वकील महमूद प्राचा ने अलीगढ़ पहुंचकर की है। इस बार सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के लिए अलीगढ़ को चुना गया है। कोरोना महामारी की वजह से कुंद पड़ी आंदोलन की धार को दोबारा तेज करने की जद्दोजहद में जुटे आंदोलन संभवतः 15 अगस्त के बाद सड़कों पर दिखाई पड़ सकते हैं।
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24 मार्च के बाद शाहीन बाग से सीएए प्रदर्शकारियों जबरन हटा दिया गया
24 मार्च की आधा रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन के बाद दिल्ली के शाहीन बाग में जारी सीएए के खिलाफ में जमा लोगों को जबरन वहां से हटा दिया गया था, जिसको अब लगभग 5 महीने बीत चुके हैं। इस आंदोलन से जुड़े मुख्यतः मुस्लिम प्रदर्शनकारियों में दोबारा सड़क पर उतरने की कुलबुलाहट देखी जा सकती है, यह अलग बात है कि अभी तक कोरोना का संकट भारत ही नहीं, दुनिया में अनवरत रूप से जारी है। अकेले भारत में प्रतिदिन 60000-62000 नए केस सामने आ रहे हैं और रोजाना 800-900 लोगों की मौत हो रही है।
कोरोना से अकेले भारत में 23 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं
ऐसे समय में जब अकेले भारत में 23 लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और 45000 से अधिक लोग मौत के गाल में समा गए हैं, तो आंदोलन को दोबारा शुरू करने को लेकर जगाई जा रही अलख कितनी धारदार होगी, कहा नहीं जा सकता है। महामारी संकट भी तक टला नहीं है और रोजाना आ रहे नए-नए केस इसकी तस्दीक कर रहे हैं, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे मूलभूत सुरक्षा उपायों की अनदेखी कर जुटाई गई भीड़ महामारी जोखिम में वृद्धि में सहायक होगी, जिससे और लोगों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ सकता है।
मुहिम की अगुआई सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा कर रहे हैं
सीएए और एनआरसी के खिलाफ एक बार फिर मुहिम तेज करने की शुरूआत की अगुआई सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा कर रहे हैं। गत शनिवार को अलीगढ़ पहुंचे महमूद प्राचा ने कहा है कि भारत सरकार की अनलॉक स्टेज काफी एडवांस स्टेज पर पहुंच गई है, इसलिए आंदोलन को दोबारा शुरू करने में बाधा नहीं आएगी। उनका कहना है कि चूंकि सरकार सभी प्रकार की गतिविधियों को अनुमति दे रही है, तो ऐसे में 15 अगस्त से फिर से प्रोटेस्ट शुरू किया जा सकता है।
लोग एनआरसी को पूरे देश में लागू करने के पक्ष में खड़े हैं
आईएएनएस-सीवोटर द्वारा किए एक सर्वे में किए गए दावे को आधार माना जाए तो देश के 62.1 फीसदी नागरिक सीएए के पक्ष में हैं, जबकि 65.4 फीसदी लोग एनआरसी को पूरे देश में लागू करने के पक्ष में खड़े हैं। ऐसे में महमूद प्राचा के लिए आसन्न कोरोना संकट के बीच दोबारा मुहिम शुरू करना आसान नहीं होगा। गत 17 से 19 दिसंबर के बीच किए गए सर्वे के मुताबिक 55.9 फीसदी मानना है कि सीएए और एनआरसी केवल अवैध प्रवासियों के खिलाफ हैं, इनमें पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और वर्मा से आए रोहिंग्या शरणार्थी प्रमुख है।
सीएए और एनआरसी पर मुस्लिमों की क्या राय है?
देश के 63.5 फीसदी मुस्लिम नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं, जबकि 35.5% इसका समर्थन करते हैं। 0.9 फीसदी मुस्लिम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। दूसरी तरफ 66.7 फीसदी हिंदुओं ने इस कानून का समर्थन किया है और 32.3 फीसदी इसके विरोध में नजर आए। हालांकि जब सीएए के जरिए शरणार्थियों के देश में बसने और सुरक्षा के लिए खतरा बनने की आशंका पर सवाल किया गया, तो 64.4 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया, जबकि 32.6 फीसदी ने इसे नकार दिया। मुस्लिमों को आशंका है कि कानून लागू करने से मंहगाई बढ़ सकती है।
भारतीय नागरिकता के लिए अब अपना धर्म को साबित करना होगा?
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को अपने धर्म को साबित करना होगा। सीएए कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक भेदवभाव झेल रहे अल्पसंख्यक क्रमशः हिंदू, सिख, जैन बुद्ध, ईसाई और पारसियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून से मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है और यह उन लोगों पर लागू होगा, जो साल 2014 के दिसंबर से पहले भारत आए हैं।
लोगों से धार्मिक उत्पीड़न का सबूत नहीं मांगेगी सरकार
सीएए कानून के तहत भारत की नागरिकता के लिए आवेदकों से उनके मूल देश में धार्मिक उत्पीड़न का सबूत नहीं मांगेगी। एक अधिकारी ने स्पष्ट करते हुए बताया था कि ऐसी कोई संभावना नहीं है। नियम बना दिए गए हैं, लेकिन देश की नागरिकता हासिल करने के लिए लोगों को अपने धर्म को कोई प्रमाण देना होगा। इसमें कोई सरकारी दस्तावेज, बच्चों का स्कूल एनरोलमेंट, आधार इत्यादि दिखाया जा सकता है। साथ ही उन्हें सभी दस्तावेजों को दिखाने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी, जिससे साबित हो कि वे 2014 दिसंबर से पहले भारत आए थे।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए करीब 200 याचिकाएं दायर की गई
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए करीब 200 याचिकाएं दायर की गई। गृह मंत्रालय ने इन याचिकाओं के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया के साथ 129 पेज का एक 'प्रारंभिक हलफनामा' पेश किया। इस हलफनामे में याचिकाकर्ताओं की ओर से उठाए गए विभिन्न वैधानिक सवालों के जवाब दिए गए। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि तीन पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान नीतिगत मामला है और नीतिगत निर्णयों में अदालत दखल नहीं दे सकती है।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस(NRC) संप्रभु राष्ट्र की जरूरी प्रक्रिया हैः केंद्र
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस की तैयारी किसी भी संप्रभु राष्ट्र के जरूरी प्रक्रिया है ताकि यह पहचान की जा सके कि कौन देश का नागरिक है और कौन नहीं है। सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि अधिकांश देशों में नागरिकों के रजिस्टर बनाने की एक प्रणाली है और यहां तक कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की व्यवस्था है।
विरोध प्रदर्शन के बीच 10 जनवरी 2020 से सीएए पूरे देश में लागू किया
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में हिंसात्मक विरोध प्रदर्शनों के बीच केंद्र सरकार गत 10 जनवरी 2020 से ही नागरिकता संशोधन कानून पूरे देश में लागू कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में लिखा गया कि केंद्रीय सरकार, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (2019 का 47) की धारा 1 की उपधारा (2) द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 10 जनवरी 2020 को उस तारीख के रूप में नियत करती है, जिसको उक्त अधिनियम के उपबंध प्रवृत होंगे'।
लोकसभा और राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित हुआ था विधेयक
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 करीब 8 घंटे की बहस के बाद रात 12 बजे लोकसभा से पारित हो गया था। विधेयक के पक्ष में 311 और विपक्ष में 80 वोट पड़े। इसके बाद लोकसभा स्पीकर ने नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को पारित करने का ऐलान किया। खास बात यह है कि इस बिल के पक्ष में बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना ने भी सहयोग दिया। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया है। राज्यसभा में इस विधेयक के पक्ष में 125 वोट और विरोध में 105 वोट पड़े थे।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून 2019?
नागरिकता संशोधन बिल कानून के तहत यह प्रावधान है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू, जैन, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई को नागरिकता दी जाएगी। बशर्ते ऐसे शरणार्थी 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों। यह विधेयक भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। बिल के संसद से पारित होने और कानून के अमल में आने के बाद उक्त छहों धर्मों के शरणार्थी देश के किसी भी हिस्से में रह सकेंगे।
भारत में कौन हैं अवैध प्रवासी?
नागरिकता कानून 1955 के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है। इस कानून के तहत उनलोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हों या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हों लेकिन उसमें उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाएं।
अवैध प्रवासियों के लिए क्या है प्रावधान?
अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को छूट दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है।
31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे लोगों मिली है छूट
यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उनलोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था।
सीएए कानून को लेकर विवाद क्या है?
आंदोलनरत प्रदर्शनकारियों, जिसे विपक्षी पार्टियों का भी समर्थन हासिल है, उनका सबसे बड़ा विरोध यह है कि इसमें खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है।
एनआरसी का क्या हो रहा है विरोध?
असम एनआरसी के बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध इसलिए हो रहा है, क्यूंकि ये भी सीएए से जुड़ा हुआ है। यानी जिनका नाम एनआरसी में नहीं आएगा, उनको सीएए कानून के तहत भारत का नागरिक बनाया जा सकता है, लेकिन सिर्फ़ गैर मुस्लिम को नागरिकता नहीं दी सकती है, क्योंकि सीएए कानून गैर मुस्लिम को ही भारतीय नागरिकता देता है, क्योंकि सीएए में चिन्हित तीनों देश मुस्लिम बहुल देश ही नहीं, बल्कि मुस्लिम राष्ट्र हैं, जहां मुस्लिम प्रताड़ना की संभावना नहीं के बराबर है।
सीएए और एनआरसी दोनों का इसलिए हो रहा है विरोध
सीएए धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कानून है, जिसे भारत के संविधान का उल्लंघन बताया जा रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि अगर हम हमारे पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता दे रहे है तो सिर्फ़ 3 देशों के शरणार्थियों को ही क्यों दे रहे है। भारत के अन्य पड़ोसी देश भी है, जहां अल्पसंख्यकों को सताया या परेशान किया जाता है। कहा गया कि चिन्हित 3 देशों में प्रताड़ित अहमदियों और सिया मुस्लिमो को शामिल नहीं किया गया है, जिन्हें पाकिस्तान में काफ़ी सताया जाता है, क्यूंकि वो इन्हें मुस्लिम नहीं समझते हैं।