ईरान ने कहा- भारत को एक महीने के भीतर चाबहार पोर्ट सौंप देंगे
तेहरान। ईरान के रोड़ और अर्बन डिवेलपमेंट मिनिस्टर अब्बास अखौंदी ने गुरुवार को कहा कि उनके देश में बनकर तैयार हो रहा है चाबहार पोर्ट को एक महीने को भीतर भारतीय कंपनी को सौंप दिया जाएगा। नीति आयोग के मॉबिलिटी समिट में भाग लेने भारत आए अखौंदी ने कहा कि यह स्ट्रेटेजिक पोर्ट जल्द ही भारत को सौंप दिया जाएगा। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को काउंटर करने के लिए भारत के सहयोग से सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में बनकर तैयार हुआ यह पोर्ट भारतीय कंपनियों के लिए पश्चिमी तट पर पहुंच आसान बनाएगा।
ईरान के मिनिस्टर ने कहा...
नई दिल्ली में अखौंदी ने कहा, 'अब हम भारतीय कंपनी को यह पोर्ट (चाबहार) सौंपने को तैयार है, जो अंतरिम समझौते के लिए संचालित होगा, जिसमें हम पिछले डेढ़ साल से भारत का हिस्सा थे।' अखौंदी ने अपने भारतीय समकक्ष सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के साथ एक बैठक के बाद कहा कि हम पहले ही एक कदम आगे बढ़ चुके हैं। हमें भारत को बैंक चैनल पेश करना चाहिए जो हम पहले ही कर चुके हैं और सौभाग्य से भारत ने औपचारिक रूप से इसे स्वीकार्य भी कर लिया है। अखौंदी ने कहा कि भारत ने भी बैंकिंग जरिया पेश किया है जिसे ईरान के केंद्रीय बैंक ने मंजूरी दे दी है।
मध्य एशिया का गेटवे बनेगा चाबहार पोर्ट
पाकिस्तान से बायपास होते हुए ईरान-भारत-अफगानिस्तान को जोड़ने वाले इस पोर्ट के पहले फेज का उद्घाटन दिसंबर 2017 में किया गया था। उस दौरान ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने इस रूट को ओपन किया था। हालांकि, इससे पहले भारत ने चाबहार पर अपनी एक्टिविटी शुरू कर दी थी, जिसके अंतर्गत गेहूं की पहली खेप इसी रास्ते से अफगानिस्तान भेजी गई थी। मध्य एशियाई देशों के व्यापार के लिए गेटवे के रूप में माने जा रहे चाबहार पोर्ट भारत, अफगानिस्तान और ईरान के लिए व्यापार में एक अहम योगदान की भूमिका निभाएगा।
अमेरिकी प्रतिबंधों का होगा असर
बता दें कि इस भारत-ईरान एग्रीमेंट के तहत भारत को 85.21 मिलियन डॉलर का पूंजीगत निवेश और 10 साल के पट्टे पर 22.95 डॉलर मिलियन वार्षिक राजस्व खर्च चाबहार पोर्ट पर करना होगा। मिडिल ईस्ट में भारत और ईरान के रिश्तों को अगाढ़ बताते हुए ईरानी मिनिस्टर ने कहा कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों के व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा। बता दें कि भारत को तेल पहुंचाने में ईरान तीसरा सबसे बड़ा देश हैं, वहीं, पिछले कुछ सालों में नई दिल्ली ने सबसे ज्यादा ऑयल रूहानी सरकार से खरीदा है।
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