संयुक्त राष्ट्र की मानें तो भारत में कभी सस्ती नहीं होंगी खाने-पीने की चीजें
बेंगलुरु। भारत में पिछले कुछ वर्षों में मॉनसून का व्यवहार आपको भी कुछ अलग दिख रहा होगा। जिन जगहों पर साल के 8 महीने बारिश होती थी, वहां पानी बरसने का नाम नहीं, जहां सामान्य बारिश होती थी, वहां बहुत अधिक बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थिति बनी हुई है। इन सबका केवल एक कारण है जलवायु परिवर्तन। केवल प्रदूषण ही इसके लिये जिम्मेदार नहीं है, बल्कि जिस तरह से पूरी दुनिया में भू-संपदा का दोहन किया जा रहा है, वह भी असामान्य मौसम का एक कारण है। संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों के जरिेये दुनिया भर में भूमि के प्रयोग पर अध्ययन किया है। उसी अध्ययन की रिपोर्ट आज जिनेवा में जारी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर समय रहते भू-उपयोग को नियंत्रित नहीं किया गय तो आने वाले समय में भोजन की समस्या पैदा हो सकती है। यानी भारत में खाने-पीने की चीजें अब कभी सस्ती नहीं होंगी।
कितने लोगों ने तैयार की रिपोर्ट
रिपोर्ट जारी करते हुए आईपीसीसी के चेयरमैन हाेउसिंग ली ने यह रिपोर्ट जारी की। उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट को 52 देशों के 107 वैज्ञानिकों ने मिलकर लिखा है। साथ ही देश के 96 वैज्ञानिकों ने अपनी राय इसमें रखी है। इस रिपोर्ट को बनोन में 7000 से अधिक अध्ययन शामिल किये गये और पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों व सरकारों के 28,275 कमेंट के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। इस रिपोर्ट में पर्यावरण के कई सारे प्रभावों पर चर्चा की गई। हम यहां पर कृषि एवं भोजन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कर रहे हैं।
क्या कहती है आईपीसीसी की रिपोर्ट
वर्तमान में कुल भूमि का 38 फीसदी हिस्सा कृषि के लिये उपयोग किया जाता है। पिछले पचास वर्षों में कृषि के लिये इस्तेमाल की जा रही भूमि का क्षेत्रफल 50 प्रतिशत बढ़ा है। एमेज़ॉन के जंगलों को काट कर वहां की भूमि को कृषि के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है। भले ही थोड़ा कम, लेकिन दक्षिण एशिया में भी जंगलों को काट कर भूमि का प्रयोग कृषि में किया जा रहा है। इन सबके बीच जो सबसे घातक चीज है वो है रासायनिक खाद का प्रयोग। पिछले 50 सालों में रासायनिक खाद का प्रयोग 500 प्रतिशत बढ़ा है। यह सब इसलिये किया जा रहा है, क्योंकि खाद्य सामग्री की डिमांड लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा तेजी से हो रहे शहरीकरण भी भूमि के असामान्य प्रयोग को दर्शाता है।
75 प्रतिशत भूमि पर इंसानों का कहर
रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में पृथ्वी पर कुल जमीन का 75 प्रतिशत हिस्से पर इंसानों की गतिविधियां जारी हैं। गतिविधियां जैसे फैक्ट्री लगाना, इमारतें बनाना, सड़क बनाना, कृषि के लिये भूमि का प्रयोग करना, आदि। इसका प्रभाव जलवायु पर भी पड़ रहा है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने का असर फसलों की पैदावार पर भी पड़ रहा है। जरा सोचिये दुनिया के 82 करोड़ लोग पहले ही कुपोषण के शिकार हैं। और ऊपर से तापमान में बढ़ोत्तरी का सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ रहा है।
भारत व पड़ोसी देशों की कृषि पर प्रभाव
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार भारत और पाकिस्तान में कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भारत में खास करके पंजाब पर फोकस किया गया है, जो कृषि का गढ़ माना जाता है। मौसम में निरंतर परिवर्तन के कारण 1980 से 2014 के बीच मक्का, चावल, गेहूं और सोयाबीनकी खेती हर दशक में 4.6 दिन आगे बढ़ रही है। अनुमान के अनुसार दक्षिण एशिया में 2050 तक इन खाद्य पदार्थों की फसल 5.2 प्रतिशत कम हो सकती है।
किसानों पर बढ़ रहा तनाव
वहीं अगर धान के उत्पादन की बात करें तो बांग्लादेश, भारत और चीन पर काफी दबाव है। जिस तरह से बारिश का रुख बदल रहा है, उससे यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत में धान की पैदावार 11 प्रतिशत तक कम हो जायेगी। 2007 के बाद से जिस तरह से भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए बच्चों में कुपोषण का खतरा बढ़ रहा है। यही नहीं आईपीसीसी ने छोटे किसानों पर बढ़ते दबाव के कारण किसानों द्वारा आत्महत्याएं बढ़ने की आशंका भी व्यक्त की है।