जलवायु परिवर्तन पर IPCC ने जारी की विशेष रिपोर्ट, भारत पर 7 बड़े खतरे
बेंगलुरु। प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन की बात आते ही हर किसी के ज़हन में सबसे पहले ग्लेशियर्स आते हैं। तुरंत जुबां से निकलता है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं! जी हां ग्लेशियर वाकई में पिघल रहे हैं और उसके चलते बेहद धीमी-गति से हम एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण कई नये बड़े खतरे भी उभर कर सामने आये हैं। जिनकी चर्चा इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज के शिखर सम्मेलन में हुई। मोनाको में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन के दौरान एक रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें खास तौर से समुद्र के जल-स्तर पर फोकस किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार आने वाले 50 सालों में एशिया महाद्वीप, जलवायु परिवर्तन के कई बड़े प्रभावों के अभूतपूर्व दबावों का सामना करेगा। इनमें पीने के पानी और खाद्य उत्पादन में कमी सबसे महत्वपूर्ण हैं। साथ ही तटीय क्षेत्रों पर बाढ़ के खतरे के साथ-साथ नदियों के प्रवाह पर भारी असर देखने को मिल सकता है। जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है, उसे देखते हुए इस सदी के अंत तक एशिया के पर्वतीय इलाकों में स्थित ग्लेशियर्स का करीब 64 प्रतिशत हिस्सा पिघल जाएगा। हालांकि अगर प्रदूषण पर नियंत्रण कर हम वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में सफल हो गये, तो यह नुकसान 36 प्रतिशत ही होगा। लेकिन अफसोस की बात यह है कि 36 प्रतिशत ग्लेशियर पिघलना भी बेहद घातक संकेत हैं।
रिपोर्ट के बारे में रोचक तथ्य
ओशियर और क्रायोस्फियर पर तैयार की गई इस रिपोर्ट को भारत समेत दुनिया के 36 देशों के 104 पर्यावरण वैज्ञानिकों ने मिलकर अंतिम रूप दिया है। 36 देशों में 19 देश विकासशील देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इस रिपोर्ट में 6981 अध्ययन और शोधपत्र शामिल किये गये हैं। इस रिपोर्ट में सभी महासागरों और महाद्वीपों पर अध्ययन कर कई महत्वपूर्ण तथ्य रखे गये हैं। चलिये बात करते हैं भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं। वैसे तो जलवायु परिवर्तन की वजह से तमाम चीजें हैं, जो भारत पर प्रभाव डाल रही हैं, लेकिन हम यहां बात करेंगे उन खतरों की जो आईपीसीसी की इस ताज़ा रिपोर्ट में रखे गये हैं।
भारत पर मंडरा रहे 7 बड़े खतरे इस प्रकार हैं
1. पिघल जायेगा हिन्दु कुश के ग्लेशियर्स का 2/3 हिस्सा
हिन्दु कुश हिमालय क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर इस इलाके के रहने वाले 24 करोड़ लोगों को पानी की आपूर्ति करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें 8 करोड़ 60 लाख भारतीय भी शामिल हैं। मोटे तौर पर देखें तो यह आबादी भारत के पांच सबसे बड़े शहरों की जनसंख्या के बराबर है। हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित लाहौल-स्पीति जैसे ग्लेशियर 21वीं सदी के शुरू से ही पिघल रहे हैं और अगर प्रदूषण में कमी नहीं आयी तो हिन्दु कुश हिमालय के ग्लेशियर्स का दो तिहाई हिस्सा पिघल जाएगा।
2. 40 लाख लोगों का रोजगार खतरे में
भारतीय समुद्रों में कोरल रीफ प्रणालियां, मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, पाक बे और अंडमान तथा लक्षद्वीप के समुद्र पानी के गर्म होने और महासागरों के अम्लीय होने के कारण गम्भीर दबावों का सामना कर रहे हैं। वर्ष 1989 से भारत के कोरल रीफ को बड़े पैमाने पर ब्लीचिंग की 29 घटनाओं का सामना करना पड़ा है और वर्ष 1991-2011 के बीच हिन्द महासागर के माध्य पीएच में वैश्विक स्तर में सबसे ज्यादा गिरावट आयी है। इसका समुद्री मत्स्य प्रजातियों पर गहरा असर पड़ा है क्योंकि कोरल रीफ भारत में कुल सामुद्रिक मत्स्य उत्पादन में 25 प्रतिशत का योगदान करता है। देश की पोषण सम्बन्धी सुरक्षा, कम से कम 40 लाख लोगों की आमदनी और रोजगार तथा विदेशी विनिमय से होने वाली आय के लिहाज से समुद्री मत्स्य प्रजातियां बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वर्ष 2030 और 2040 के बीच लक्षद्वीप क्षेत्र में कोरल बनाने वाली रीफ के गायब हो जाने का अंदेशा है। वहीं, 2050 और 2060 के बीच भारत के अन्य समुद्री क्षेत्रों में भी यही हालात पैदा होने की आशंका है।
3. भारत के 6 बड़े तटीय शहरों पर खतरा ज्यादा
करीब 7517 किलोमीटर के तटीय क्षेत्रों वाले भारत को समुद्रों के बढ़ते जलस्तर के गम्भीर खतरों का सामना करना पड़ेगा। एक अध्ययन के मुताबिक अगर समुद्र का जलस्तर 50 सेंटीमीटर तक बढ़ता है तो भारत के छह तटीय शहरों- चेन्नई, कोच्चि, कोलकाता, मुम्बई, सूरत और विशाखापट्टनम में 2 करोड़ 86 लाख लोगों पर तटीय क्षेत्रों की बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है। इससे करीब 4 ट्रिलियन डॉलर की सम्पत्ति को भी नुकसान पहुंच सकता है। निम्नांकित नक्शे में भारत के उन क्षेत्रों को दिखाया गया है जो समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी होने पर करीब एक मीटर नीचे होंगे। यानी यहां बाढ़ आने पर सबसे ज्यादा जान और माल की बर्बादी होगी।
4. तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का सबसे ज्यादा खतरा
उच्च वृद्धि के लिहाज से देखें तो भारत में निचले इलाकों में रहने वाली आबादी वर्ष 2000 में 6 करोड़ 40 लाख से बढ़कर 2060 में 21 करोड़ 60 लाख हो जाएगी। भविष्य में आबादी में होने वाली बढ़ोत्तरी और शहरी बसावट का दायरा बढ़ने से निचले क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों पर समुद्र जलस्तर में बढ़ोत्तरी और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा सबसे ज्यादा होगा।
5. कोलकाता व आस-पास के इलाकों में बीमारियों का खतरा
पिछले करीब 1000 साल में गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा में बसे खासी आबादी वाले क्षेत्र हर साल 6 से 9 मिलीमीटर की दर से डूब रहे हैं। ऐसा सबसे ज्यादा तो कोलकाता में हुआ है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण भूतल पर मौजूद पानी के खारा होने से पेयजल की आपूर्ति पर बुरा असर पड़ सकता है, साथ ही इस क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास कार्यों और आबादी में बढ़ोत्तरी से भूजल संसाधनों पर दबाव और भी बढ़ेगा। यह पाया गया है कि गंगा डेल्टा के खारेपन में बदलाव से हैजा फैलाने वाले बैक्टीरिया वाइब्रियो कॉलरा के विस्तार और खतरे की तीव्रता में बढ़ोत्तरी होगी।
6. महानदी डेल्टा में बढ़ रहा बाढ़ का खतरा
जलवायु और भू-उपयोग के कारण अपस्ट्रीम में बदलाव की वजह से महानदी डेल्टा में जमा होने वाले तलछट में उल्लेखनीय गिरावट आने का अनुमान है। इससे हो सकता है कि डेल्टा समुद्र के जलस्तर के सापेक्ष अपनी मौजूदा ऊंचाई को बरकरार न रख सके। इससे पानी के खारेपन, कटान, बाढ़ के खतरे और अनुकूलन सम्बन्धी मांगों का खतरा बढ़ जाएगा।
7. गिर सकती है मछुवारों की आमदनी
मछली पकड़ने के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर है लेकिन एफओए के अनुमानों के मुताबिक अगले 30 सालों में भारत की मत्स्य आखेट क्षमता में 7-17 प्रतिशत की गिरावट आयेगी। अगर प्रदूषण में इसी तरह बढ़ोत्तरी जारी रही तो इस सदी के अंत तक भारत में मछली पकड़ने की क्षमता में 27 से 44 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।