खुद की रक्षा में किस हद तक जा सकते हैं आप, जानिए क्या कहते हैं IPC प्रावधान
नई दिल्ली। देश के विभिन्न इलाकों में जिस तरह महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले सामने आए हैं, उसके बाद उनकी सुरक्षा को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, महिलाएं ही नहीं, हर किसी को अपनी रक्षा करने का अधिकार मिला हुआ है। भारत का कानून भी किसी व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान करता है। आईपीसी की धारा 96 से लेकर 106 तक राइट टू सेल्फ डिफेंस के अधिकार का जिक्र किया गया है।
Recommended Video
आईपीसी की धारा 96 से लेकर 106 तक सेल्फ डिफेंस का जिक्र
इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 96 में सेल्फ डिफेंस की बात कही गई है। जबकि सेक्शन 97 में बताया गया है कि हर किसी को शरीर और संपत्ति की रक्षा का अधिकार है और सेल्फ डिफेंस में वह अटैक कर सकता है। वहीं, सेक्शन 99 के मुताबिक, एक्ट रीजनेबल होना चाहिए यानी कि अपराधी को उतना ही नुकसान पहुंचाया जाए, जितना जरूरी हो।
ये भी पढ़ें: उन्नाव केस: सामने आया पीड़िता और आरोपी शिवम का मैरिज एग्रीमेंट, हुआ बड़ा खुलासा
क्या कहता है आईपीसी का सेक्शन 100
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य विनय कुमार गर्ग कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपनी सुरक्षा, पत्नी-बच्चों की सुरक्षा, संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार है। जबकि कुछ अन्य परिस्थितियों में अगर आत्मरक्षा में किसी की जान चली जाती है तो इसके तहत रियायत भी दी जा सकती है। आईपीसी के सेक्शन 100 में वैसी स्थितियों का जिक्र किया गया है, जिसके अंतर्गत आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें उस हालात की भी चर्चा की गई है, जिसमें अगर आत्मरक्षा में हमलावर के खिलाफ कार्रवाई ना की जाए तो जान भी जा सकती है। इसमें अगर हमलावर मारा जाता है तो भी बचाव किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए पर्याप्त कारण होने जरूरी हैं और प्रावधानों के तहत इसे साबित करना होता है।
जान को खतरा होने की स्थिति में सेल्फ डिफेंस का अधिकार
आईपीसी की धारा 103 के तहत रात में घर में सेंध लगाने, लूटपाट, आगजनी जैसी स्थिति में आपको जान का खतरा है तो आपको सेल्फ डिफेंस का अधिकार है। एसिड अटैक के दौरान आपकी जवाबी कार्रवाई को भी सेल्फ डिफेंस के तहत माना जाएगा। वहीं, दुराचार, अपहरण या जान को खतरा होने की स्थिति में किए गए अटैक में दुराचारी की मौत हो जाती है तो भी बचाव किया जा सकता है।