अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस: जानिए ये क्यों मनाया जाता है, कब हुई शुरूआत, क्या है इस बार थीम?
नई दिल्ली। आज अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस है। दुनियाभर में यह हर साल 22 मई को मनाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य लोगों को जैव-विविधता के प्रति जागरुक करना है। जीव जगत के हित में इसके कई महत्व हैं। इसकी पहल 90 के दशक में तब की गई थी, जब संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में साल 1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में "पृथ्वी सम्मेलन" आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दिया गया था। उससे अगले वर्ष 1993 को 29 दिसंबर को पहली बार जैव-विविधता दिवस मनाया गया।

अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस
संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किया गया जैव-विविधता दिवस सन् 2000 तक 29 दिसंबर को मना। उसके बाद वर्ष 2001 से यह साल 22 मई को मनाया जाता है। इस साल के अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की थीम है- Building a shared future for all life अर्थात् सभी जीवों के साझे भविष्य का निर्माण करें। पिछले साल इसका थीम We're part of the solution #ForNature था। दुनियाभर के बहुत से प्रकृति प्रेमी इसका अनुसरण कर रहे हैं। और, फिलहाल तो इसका महत्व बहुत बढ़ गया है। कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के चलते बहुत-से लोगों का ध्यान पर्यावरण संरक्षण पर आया है।

जैव विविधता ही है सृष्टि-चक्र
डॉक्टर मुकेश गर्ग (डॉयरेक्ट आॅफ गर्ग हॉस्पिटल, श्रीगंगानगर, राजस्थान) कहते हैं कि, जैव विविधता का मतलब कि हमारे आस-पास का वातावरण और उसमें रहने वाले सभी जीव-जंतु,पेड़-पौधे, वनस्पति, कीड़े-मकोड़े, लता-बेल यानी वह सभी सजीव वस्तुएं जो हमारे आस-पास हैं और उनमें मानव एक केंद्र के रूप में स्थापित है। पृथ्वी पर करोड़ों सालों से महासागरों की गहराई से लेकर पर्वतों के शिखरों, मरुस्थल, मैदानों, नदियों के आँचल में जीवन फल-फूल रहा है। पृथ्वी पर लाखों प्रकार के जीव-जंतु, वनस्पति, जीवाणु आदि पाए जाते हैं। इन सभी जीवों की विविधता ही जैव विविधता कहलाती है।
मुकेश बोले, "जैव-विविधता की कमी होने से ही प्राकृतिक आपदाएं जैसे- बाढ़, सूखा, आंधी-तूफान की संभावना बढ़ जाती है। ग्लोबल वार्मिंग का संकट, हम सब झेल ही रहे हैं। ऐसा पर्यावरण पर ध्यान नहीं देने और अधिक उूर्जा खपाने तथा प्राकृतिक जैव विविधता को संरक्षण नहीं देने के कारण है।"

हमें सरंक्षण के लिए खुद आगे आना होगा
जीव विशेषज्ञ अनुज शर्मा ने कहा कि, बीते कुछ वर्षों में जैव विविधता का संतुलन बिगड़ा है। पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से 25 फीसदी विलुप्त अवस्था के कगार पर हैं। हां, बीते 2 वर्षों के कोरोना-काल में ऑक्सीजन की कमी ने लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग किया है। हमें बदलते परिवेश में पर्यावरण संतुलन के लिए हमें प्रकृति और पशु-पक्षियों का संरक्षण करना भी बेहद जरूरी है। जैव-विविधता विषय पर ध्यान देने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है, तो विश्व बिरादरी द्वारा पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर दिया जा रहा है। IPBES ने लोगों को पर्यावरण संरक्षण की सलाह दी है। हमें समझना होगा कि, जीवन और जैव विविधता एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं।
हमें समझना चाहिए कि, हम सभी की दुनिया एक है, किसी भी एक जीव का अपना कोई एक अस्तित्व नहीं है। सब मिल-जुलकर अपने भोगों को भोग रहे हैं, सभी का एक भविष्य है। आप एक पेड़ भी लगाते हैं तो मान लीजिए कर्तव्य के पालन की दिशा में एक पग आपने बढा दिया है। यदि आप किसी चिड़िया को दाना खिला रहे हैं, पानी पिला रहे हैं तो आप जैव विविधता को बचा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति जैव विविधता को बचा सकता है... ऐसा करके अपने आपको भी और अपनी पीढ़ी के भावी भविष्य को भी।
'पशु-पक्षियों को भी खुलकर जीने का हक मिले'

भारत जैव विविधता का धनी है
भारत का भूभाग दुनिया में केवल 2.5% हिस्सेदारी रखता है, लेकिन यहां दुनिया के 14% जीव-जंतु-वनस्पति पाए जाते हैं। भारत में 2546 प्रकार की खारे व मीठे जल की मछलियां, 198 प्रकार के उभयचर मेंढक, कछुआ जैसे जीव जो जल-थल दोनों में निवास कर सकते हैं। यहां 1331 प्रकार के पक्षी, 408 प्रकार के सरीसृप, 430 स्तनधारी प्रकार के जीव पाए जाते हैं। साथ ही 50000 तरह की वनस्पतियां एवं 15000 प्रकार के फूल भी हमारी भूमि पर पाए जाते हैं। ये तो प्रजातियां हैं, फिर इनकी उप्रजातियों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।

फसलों की भी विविधता
फसलों की बात की जाए तो धान की ही हजारों किस्में भारत में उगती हैं। गेहूं की भी बहुत-सी किस्में हैं। तोरई, कद्दू, आम जैसे फल-सब्जियों की भी सैकड़ों-हजारों किस्में भारत में पाई जाती हैं। गेहूं व धान की बोनी किस्में जो हरित क्रांति में काम आई, उन्हें मूल प्राकृतिक किस्मों से ही विकसित किया गया है।