आखिर क्यों जूलियन असांजे और पूरी दुनिया कर रही नरेंद्र मोदी और भारत का जिक्र
इस संकट के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ अपना जापान दौरा स्थगित किया बल्कि ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान फीफा वर्ल्ड कप के जिस फाइनल में उन्हें शिरकत करनी थी, उसे भी उन्होंने निरस्त कर दिया।
21 जून को खत्म होने वाले हफ्ते के दौरान न सिर्फ भारत बल्कि नरेंद्र मोदी की भी अतंराष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चा हुई है।
अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर से लेकर विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे के साथ ही कई और विशेषज्ञ पिछले हफ्ते सिर्फ मोदी और भारत के बारे में ही चर्चा कर रहे थे।
जूलियन
असांजे
का
वह
बयान
सबसे
पहले
जिक्र
करते
हैं
विकीलीक्स
के
संस्थापक
जूलियन
असांजे
के
एक
ऐसे
अजीबो-गरीब
बयान
का
जिसमें
नरेंद्र
मोदी
की
जीत
को
काफी
रोचक
घटना
के
तौर
पर
करार
दिया
गया।
दुनिया के सामने कई राज पर से पर्दा उठाने वाले असांजे ने रिड्डीट आस्क मी एनीथिंग सेशन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री को एक व्यावसायिक सत्तावादी के तौर पर करार दिया जिनकी एतिहासिक जीत लोकसभा चुनावों की एक रोचक घटना है।
नरेंद्र मोदी देश में क्या बदलाव लाएंगे, इस बारे में टिप्पणी करते हुए असांजे ने कहा कि यह एक खुला सवाल है कि मोदी भारत के लिए वाकई श्रेष्ठ साबित होंगे या नहीं।
वहीं देश के मशहूर उद्योगपति देव नादकरणी की मानें तो नरेंद्र मोदी का एकीकरण पर जिस तरह से मोदी ने अपना ध्यान लगाया हुआ है उसकी वजह से न सिर्फ भारत के पुराने साथी जैसे रूस भारत के साथ आएंगे बल्कि फीजी, मॉरीशस, मालदीव, सूरीनाम और दूसरे कैरीबियाई देशों के साथ भी भारत का सहयोग दिन पर दिन और मजबूत होगा।
भले ही नादकरणी इस बात को लेकर आश्वस्त हों लेकिन वैश्विक समुदाय अभी तक मोदी की मौजूदगी को स्वीकारने में हिचक रहे हैं।
मोदी
पैदा
कर
सकते
हैं
अस्थिरता
यूरेशिया
रिव्यू
के
लिए
लिखने
वाले
क्लायूडियो
लियूस्को
के
मुताबिक
नरेंद्र
मोदी
की
विशाल
जीत
के
बाद
पश्चिम
के
देश
काफी
सतर्क
हो
गए
हैं।
क्लायूडियो ने कहा है कि मोदी की राजनीतिक छवि सही मायनों में वैसी नहीं है, जिसकी भारत जैसे देश को सख्त जरूरत है। इसके साथ ही साथ मोदी की राष्ट्रवादी सोच कहीं न कहीं दुनिया में एक अस्थिरता पैदा कर सकती है।
वहीं लॉस एंजिल्स टाइम्स के लिए लिखने वाले राहुलदीप गिल भले ही नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं लेकिन भारत को एक ऐसी सरकार की जरूरत है जो इस लोकतांत्रिक देश के लिए कभी न खत्म होने वाला भरोसा तैयार कर सके।
सावधान
रहें
ओबामा
वहीं
जॉन
बी
क्यूगिले
उपरोक्त
दोनों
ही
विचारों
से
असहमत
नजर
आते
हैं।
'द
कैलिफोर्निया'
में
लिखे
अपने
एक
कॉलम
में
क्यूगिले
ने
अमेरिकी
राष्ट्रपति
बराक
ओबामा
को
चेतावनी
दी
है
कि
भारतीय
प्रधानमंत्री
से
करीबी
बढ़ाते
हुए
थोड़ा
सावधान
रहें
क्योंकि
हो
सकता
है
कि
ओबामा
को
मुसलमान
विरोधी
नेता
के
तौर
पर
देखा
जाने
लगे।
अगर ऐसा हुआ तो यह अमेरिका के लिए खतरनाक होगा क्योंकि अब अमेरिका मुस्लिम बाहुल्य देशों का गुस्सा बर्दाश्त करने की हालत में नहीं है। मोदी को गले लगाने के साथ ही हो सकता है कि ओबामा भारतीय मुसलमानों का भरोसा खो दें।
अल
गोर
का
भरोसा
मोदी
वहीं
दूसरीओर
रॉबर्ट
क्राऊफमान
की
मानें
तो
नरेंद्र
मोदी
की
अगुवाई
वाली
बीजेपी
सरकार
न
सिर्फ
भारत
के
लिए
बल्कि
एशिया
में
अमेरिका
की
नीतियों
के
लिए
भी
बेहतर
साबित
होगी।
काऊफमान के मुताबिक मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की तर्ज पर ही आगे बढ़ेंगे। अगर ऐसा हुआ तो फिर भारत, इजरायल के साथ अपने परस्पर संबंधों और आपसी बातचीत को और बढ़ा सकता है।
इसके साथ ही साथ भारत और जापान के बीच भी आपसी संबंध मजबूत होंगे और यह चीन की बढ़ती ताकत का जवाब होंगे।
क्राऊफमान मानते हैं कि चीन का बढ़ता दखल, चरमपंथ और इस तरह के कुछ मसले हैं जो भारत और अमेरिका के लिए परेशानी पैदा करने वाले हैं।
ऐसे में क्राऊफमान सलाह देते हैं कि भारत को अमेरिका के साथ सैनिक साजो-सामान की खरीद फरोख्त को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही भारत के ग्रामीण बाजार को दुनिया में नंबर वन बनाने के लिए काम करना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए भारत को ज्यादा जिम्मेदारी लेनी होगी।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अल गोर ने इस तथ्य पर रोशनी डाली है कि नरेंद्र मोदी ने चुनावों में मिली एतिहासिक जीत के बाद देश के 400 मिलियन लोगों की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक क्रांतिकारी रोडमैप तैयार किया है।
जे मैथ्यू रॉनी ने अपने सस्टेनब्लॉग में लिखा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पहले ही राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के विस्तार के बारे में घोषणा कर चुकी है।
इसके तहत वर्ष 2022 तक ऊर्जा का उत्पादन 22,000 मेगावॉट से बढ़ाकर 34,000 मेगावॉट्स तक हो जाएगा। साथ ही देश की तीन प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा के जरिए पैदा की जाएगी।
धार्मिक
चरमपंथ
से
जूझता
भारत
द
गार्जियन
के
जैसन
बुर्क
ने
अपनी
एक
रिपोर्ट
में
लिखा
है
कि
अल
कायदा
दूसरे
आतंकवादियों
को
इकट्ठा
कर
कश्मीर
के
नाम
पर
हिंसा
फैलाने
की
साजिश
रच
रहा
है।
पिछले दिनों इस संगठन की ओर से सामने आया एक वीडियो इस बात की पुष्टि करने के लिए काफी है। जैसन मानते हैं कि इस बात में कोई शक नहीं है कि इराक में आईएसआईएस की बढ़ती मौजूदगी इसी प्रेरणा का नतीजा है।
इस वीडियो फुटेज को 'वॉर शुट कॉन्टीन्यू, मैसेज टू द मुस्लिम ऑफ कश्मीर ' टाइटल दिया गया है। बुर्क की मानें तो इस वीडियो में कश्मीरी मुस्लिमों को खासतौर पर संबोधित किया गया है।
गुजरे हफ्ते के दौरान ही सामने आया कि मोदी और उनकी सरकार श्रीलंका के साथ सामने आने वाली परिस्थितियों पर बारीकी से नजर रखी हुई है और वह इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं कि श्रीलंका में जिस तरह से मुसलमानों ने बौद्ध धर्मगुरुओं पर हमला किया, उस तरह का हमला भारत में न पेश आए।
गौरतलब है कि हिमालय के क्षेत्रों के अलावा बिहार के गया में भी बौद्ध धर्मगुरुओं की काफी अच्छी आबादी है और इंटेलीजेंस की रिपोर्ट की मानें तो इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा यहां पर अपने पांव पसार रहे हैं।
मुश्किल है भारत की नजरअंदाजगी
विदेशी एनजीओ पर चाहे इंटेलीजेंस ब्यूरो की नजर रखने वाली बात हो या फिर चीन की गतिविधियों को करीब से देखने का मुद्दा हो, चाहे भारत में कॉरपोरेट वर्ल्ड की नरेंद्र मोदी की नीतियों पर चर्चा करने की खबर हो या फिर जापान और फिलीपींस की भारत के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश वाली खबर हो, किसी न किसी बहाने अतंराष्ट्रीय स्तर पर मोदी और भारत का जिक्र खूब किया गया।
साफ है कि अब भारत को नजरअंदाज करना किसी के लिए भी मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।