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गोल्डन वीज़ा के लिए लाइन में क्यों लगे हैं भारतीय

कई लोग इसकी आड़ में उन देशों में पनाह हासिल कर लेते हैं, जहां बसने की उन्हें आम तौर पर इजाज़त नहीं मिलती. इन आरोपों में काफ़ी हद तक सच्चाई भी है.

जून 2017 में अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई ने EB-5 वीज़ा कार्यक्रम के तहत 5 करोड़ डॉलर के घोटाले का पता लगाया था इसमें चीन के निवेशक शामिल थे.

By BBC News हिन्दी
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गोल्डन वीज़ा
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अमरीका की नागरिकता या ग्रीन कार्ड हासिल करने के लिए भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में होड़ लगी रहती है.

हर साल हज़ारों-लाखों की संख्या में लोग वीज़ा की अर्ज़ियां देते हैं, लेकिन अपना पसंदीदा वीज़ा कुछ ही लोगों को नसीब हो पाता है.

लेकिन रईसों के लिए यहाँ भी राह मुश्किल नहीं है. पिछले एक-डेढ़ साल में सैकड़ों भारतीय अमीरों ने पैसे के दम पर अमरीका का ग्रीन कार्ड हासिल किया है.

चौंकिए नहीं, ये सच है. दुनिया के सबसे ताक़तवर और मालदार देश अमरीका में भी आप नागरिकता आसानी से हासिल कर सकते हैं.

बस शर्त इतनी है कि आपका पर्स भरा हुआ हो और आप कुछ अमरीकियों को रोज़गार दे सकें. निवेश आधारित इस वीज़ा प्रोग्राम को ईबी-5 वीज़ा प्रोग्राम नाम दिया गया है.

गोल्डन वीज़ा
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भारतीयों की लंबी कतारें

अमरीका का ये ईबी-5 वीज़ा प्रोग्राम बेहद लोकप्रिय है, ख़ासकर चीन और भारत में.

भारत के एक और पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इस प्रोग्राम के ज़रिये कितने ग्रीन कार्ड लिए, इसका तो ठीक-ठीक पता नहीं है.

लेकिन अमरीकी विदेश विभाग के मुताबिक इस प्रोग्राम के बारे में पूछताछ करने वालों में सबसे आगे रहे पाकिस्तानी और दूसरे नंबर पर रहे हिंदुस्तानी.

फिर संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण अफ्रीका और फिर नंबर रहा सऊदी अरब के लोगों का.

हालांकि ईबी-5 वीज़ा हासिल करने वालों में चीन सबसे आगे है, फिर वियतनाम और तीसरे नंबर पर भारत है.

भारत, अमरीका, गोल्डन वीज़ा
ROBERTO SCHMIDT/AFP/Getty Images
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सैकड़ों भारतीय अर्जियां दे रहे हैं...

अमरीका हर साल दस हज़ार ईबी-5 वीज़ा जारी करता है, लेकिन हरेक वीज़ा के लिए अर्जियां दाखिल करने वालों की संख्या हज़ारों में होती है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक ईबी-5 वीज़ा के लिए लगभग 23 हज़ार अर्जियां लगती हैं.

अमरीकी विदेश विभाग के मुताबिक पिछले साल 174 भारतीयों को ईबी-5 वीज़ा जारी किए गए. 2016 के मुक़ाबले ये 17 फ़ीसदी अधिक थे.

इसके बाद भी इस गोल्डन वीज़ा के लिए हर महीने सैकड़ों भारतीय अर्जियां दे रहे हैं.

दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने एच-1 बी वीज़ा नियमों को सख्त कर दिया है. इसके बाद स्किल्ड विदेशी कर्मचारियों के लिए अमरीका में नौकरी करना बेहद मुश्किल हो गया है.

एच 1-बी के तहत कड़े हुए नियम

अपनी 'अमरीका फर्स्ट' की नीति को आगे बढ़ाते हुए ट्रंप ने इंफ़ोसिस, टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़), विप्रो जैसी कंपनियों के लिए अमरीका में काम करने के नियम कड़े किए हैं.

यही नहीं, ट्रंप प्रशासन एच 1-बी वीज़ाधारक के पति/पत्नी को साथ रहने देने के नियम को भी खत्म करने पर विचार कर रहा है.

इन सब नियमों से भारतीय सबसे अधिक प्रभावित होंगे, क्योंकि पिछले कुछ सालों में लगभग 70 फ़ीसदी एच-1 बी वीज़ा भारतीयों को मिले हैं.

इस वजह से भी ईबी-5 वीज़ा भारतीयों को लुभा रहा है. अमरीका में इसे 1990 में शुरू किया गया था, लेकिन इसकी लोकप्रियता पिछले कुछ सालों में ही बढ़नी शुरू हुई.

अमरीकी विदेश विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2005 तक सिर्फ़ 349 गोल्डन वीज़ा जारी किए गए थे, और 2015 तक आते-आते ये बढ़कर 9,764 पहुँच गए थे.

लेकिन फिर अर्जियों के ढेर लगने शुरू हुए और मजबूरन साल 2014-15 में गोल्डन वीज़ा का सालाना कोटा तय करना पड़ा.

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क्या हैं जोखिम

  • निवेशकों को अक्सर जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश करना पड़ता है.
  • रिटर्न की गारंटी नहीं है, इसलिए जोखिम बहुत ज़्यादा है.
  • सरकार हर साल इस नीति की समीक्षा करती है, बदलाव होने पर ख़ास देश के लोगों को लग सकता है झटका.

और कहां हैं मौके

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ अमरीका में पैसों के ज़रिये नागरिकता हासिल की जा सकती है.

आज की तारीख़ में साइप्रस से लेकर सिंगापुर तक क़रीब 23 ऐसे देश हैं जो निवेश के बदले में नागरिकता देते हैं.

यूरोपीय संघ के लगभग आधे देश ऐसा कोई न कार्यक्रम चलाकर निवेशकों को अपने यहाँ पैसे लगाने के लिए लुभा रहे हैं.

अब से दस-पंद्रह साल पहले तो चीन के नागरिक निवेश के ज़रिए नागरिकता ख़रीदने में सबसे आगे थे.

मगर एक रिपोर्ट के मुताबिक इस सेक्टर में काम कर ही यूरोपीय कंपनियां बताती हैं कि इन दिनों तुर्की से बड़ी तादाद में लोग दूसरे देशों की नागरिकता हासिल करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

मध्य-पूर्व में मची राजनीतिक उथल-पुथल के बाद यूरोप में नागरिकता हासिल करने के लिए पूछताछ करने वालों की संख्या में 400 फ़ीसदी से अधिक का उछाल आया.

नागरिकता की नीलामी कई देशों के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुई है. मसलन, सेंट किट्स ऐंड नेविस ने इसकी मदद से क़र्ज़ का बोझ उतारा और तेज़ी से तरक़्क़ी की है.

इसी तरह अमरीका को हर साल EB-5 वीज़ा से क़रीब 4 अरब डॉलर का मुनाफ़ा होता है.

भारत, अमरीका, गोल्डन वीज़ा
RAVEENDRAN/AFP/Getty Images
भारत, अमरीका, गोल्डन वीज़ा

गोल्डन वीज़ा का विरोध

अमरीका समेत कई देशों में बहुत से लोग नागरिकता की बोली लगाने का विरोध भी करने लगे हैं.

अमरीका में पिछले साल दो सीनेटरों ने EB-5 वीज़ा कार्यक्रम रद्द करने के लिए बिल पेश किया था. विरोधी ये भी कहते हैं कि ऐसी योजनाएं अमीरों के लिए ही फ़ायदेमंद हैं.

आम नागरिकों को तो इसका फ़ायदा होने से रहा. इसकी आड़ में कई लोग मनी लॉन्ड्रिंग या हवाला कारोबार जैसे अपराध भी करते हैं.

कई लोग इसकी आड़ में उन देशों में पनाह हासिल कर लेते हैं, जहां बसने की उन्हें आम तौर पर इजाज़त नहीं मिलती. इन आरोपों में काफ़ी हद तक सच्चाई भी है.

जून 2017 में अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई ने EB-5 वीज़ा कार्यक्रम के तहत 5 करोड़ डॉलर के घोटाले का पता लगाया था इसमें चीन के निवेशक शामिल थे.

इसी तरह अप्रैल 2017 में अमरीका के एक आदमी पर चीन के निवेशक के पैसे को अपने ऊपर उड़ाने का मुक़दमा दर्ज हुआ था.

सेंट् किट्स ऐंड नेविस के कार्यक्रम के ज़रिए ईरानी नागरिकों के हवाला के कारोबार करने का भी पता चला था.

साल 2017 में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दामाद के नाम पर चीन के निवेशकों को झांसा देकर फंसाने का भी एक मामला सामने आया था.

ये मामला भी EB-5 वीज़ा से जुड़ा था.

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English summary
Indians are engaged in line for Golden Visa
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