Indian Strategic Railway:लद्दाख में चीन की सीमा तक पहुंचेगी दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे
नई दिल्ली- चीन ने एलएसी के उस पार तिब्बत तक दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे लाइन बिछाकर भारत को सामरिक दृष्टिकोण से बहुत बड़ी चुनौती दी हुई है। इसके जवाब में भारत ने भी बिलासपुर-मंडी-मनाली-लेह रेल परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का फैसला कर लिया है। इस परियोजना के पूरा होते ही यह विश्व की सबसे ऊंची रेलवे लाइन होगी, जो सामरिक तौर पर तो महत्वपूर्ण होगी ही, पर्यटन के नजरिए से भी यह बहुत ही मनोरम होने की उम्मीद है। आइए जानते हैं कि भारतीय रेलवे के लिए कितनी चुनौतीपूर्ण है इस रेलवे परियोजना पर काम करना, जिसमें रक्षा मंत्रालय भी उसकी हर संभव मदद कर रहा है। इस परियोजना पर 83,360 करोड़ रुपये की लागत आने की संभावना है।
बिलासपुर-मंडी-मनाली-लेह रेल परियोजना को प्राथमिकता
बिलासपुर-मंडी-मनाली-लेह रेल परियोजना को भारत सरकार ने चार साल पहले ही सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। लेकिन, अब लद्दाख में चीन की हरकतों को देखने के बाद सरकार ने इस रेल खंड को भी प्राथमिकता के साथ पूरा करने का मन बना लिया है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री गोविंद ठाकुर ने एक वर्चुअल मीटिंग के बाद इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण 475 किलोमीटर लंबी बिलासपुर-मनाली-लेह परियोजना को जल्द पूरा करवाना उनकी सरकार की भी प्राथमिकता रहेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इस अहम रेल प्रोजेक्ट के लिए प्रदेश सरकार के अधिकार वाले दायरे में आने वाली जमीन के अधिग्रहण का काम तेजी से शुरू किया जाएगा।
दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे होगी
इस रेल परियोजना के लिए अबतक सैटेलाइट के जरिए कम से कम 22 सर्वे किए जा चुके हैं। इस रेलवे लाइन के लिए पंजाब के रूपनगर जिले के आनंदपुर साहिब तहसील के भानुपाली से लेकर लेह तक के बीच कुल 30 रेलवे स्टेशन प्रस्तावित हैं। इस काम के लिए रडार की मदद से भी एक सर्वे होना प्रस्तावित है। तैयार हो जाने के बाद यह रेलवे दुनिया की सबसे ऊंची रेल परियोजना होगी, जिसकी अधिकतम ऊंचाई समुद्र तल से 5,360 मीटर की होगी। इस समय चीन ने क्विंघाई से तिब्बत के बीच एक रेलवे लाइन बिछा रखी है, जो फिलहाल दुनिया की सबसे ऊंची रेल परियोजना (2,000 मीटर) है। भारत जो रेल लाइन बिछा रहा है उसका महत्त्व इसलिए ज्यादा है कि यह एलएसी के पास तक पहुंचेगी, जिससे सुरक्षा बलों को सहायता तो मिलेगी ही, पर्यटन के विकास से इलाके का संपूर्ण विकास भी होने की संभावना है। इस रेल परियोजना में रक्षा मंत्रालय का भी योगदान है।
आधी रह जाएगी दिल्ली से लेह की दूरी
मौजूदा समय में लेह के लिए रेल कनेक्टिविटी नहीं है। लेह से मौजूदा सबसे नजदीकी रेल स्टेशन भानुपाली है, जो करीब 730 किलोमीटर की दूरी पर है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद हिमाचल में बिलासपुर और लेह के बीच मनाली, उपशी, मंडी, सुरेंद्रनगर, कोकसर, क्योलॉन्ग, कारू, दार्चा जैसे हिमाचल और लद्दाख के शहर रेलवे लाइन से जुड़ जाएंगे। इस रेल लाइन के पूरा होने पर दिल्ली से लेह की यात्रा में लगने वाला समय आधा हो जाने की संभावना है। अभी हवाई मार्ग को छोड़कर दिल्ली से लेह पहुंचने में करीब 40 घंटे लगते हैं, लेकिन नई रेलवे लाइन के बनने के बाद यह यात्रा सिर्फ 20 घंटे की रह जाएगी।
83,360 करोड़ रुपये की रेल परियोजना
शुरू में इस रेलवे लाइन पर सिर्फ सिंगल लाइन ही बिछाई जानी है, जिसपर 83,360 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इस रेलवे पर काम करना इसलिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि बनने के बाद इस मार्ग पर कुल 74 सुरंगें होंगी, जो कि मार्ग का करीब 51 फीसदी हिस्सा होगा। इस रेलवे लाइन की सबसे लंबी सुरंग 13.5 किलोमीटर की होगी और सुरंगों की कुल लंबाई 238 किलोमीटर होगी। इनके अलावा इस रेल मार्ग पर 124 बड़े और 396 छोटे रेलवे पुल भी बनाए जाने हैं। यही नहीं ये रेलवे लाइन इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह बेहद कम तापमान और कम ऑक्सीजन वाले इलाके में बिछाई जा रही है।
लेह रेलवे लाइन की कुछ और विशेषताएं
ये
रेलवे
लाइन
कुछ
और
खास
वजहों
से
महत्वपूर्ण
होगा।
मसलन,
इस
रेलवे
लाइन
पर
क्योलॉन्ग
में
भारत
का
पहला
अंडरग्राउंड
रेलवे
स्टेशन
बनेगा।
जबकि,
इसी
में
एक
रेलवे
स्टेशन
एक
सुरंग
में
मौजूद
होगा,
जिसकी
समुद्र
तल
से
ऊंचाई
3,000
मीटर
होगी।
यही
नहीं
यह
रेलवे
लाइन
तीन
पर्वत
मालाओं
शिवालिक-हिमालय
और
जास्कर
से
होकर
गुजरेगी।
इसके
अलावा
यह
रेलवे
लाइन
रोहतांग,
बारलाचा,लाचुंग
और
चांगला
जैसे
दर्रों
से
भी
गुजरेगी।
(ऊपर
की
तस्वीरें
प्रतीकात्मक)
2016 में ही मिली थी इस रेल प्रोजेक्ट को मंजूरी
बिलासपुर-मंडी-मनाली-लेह रेल परियोजना को मोदी सरकार ने 22 जुलाई, 2016 को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दी थी। लेकिन, चीन से मोहभंग होने के बाद इसे प्राथमिकता से पूरा करने की बात ठान ली गई है। इसमें रेलवे ने उपशी और लेह के 51 किलोमीटर की दूरी के लिए केंद्रीय फंड की मांग की थी।