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सीवेज के गंदे पानी में भारतीय वैज्ञानिकों को मिले कोविड-19 के जीन, शोध में हुआ ये बड़ा खुलासा

सीवेज के गंदे पानी में भारतीय वैज्ञानिकों को मिले कोविड-19 के जीन, शोध में हुआ ये बड़ा खुलासा

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नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के बीच जहां एक ओर कोविड 19 से बचाव के लिए वैक्‍सीन और दवा बनाने में वैज्ञानिक जुटे हैं। वहीं कोरोना वायरस कैसे फैल रहा और उसके जीन कहां-कहां फैcineल रहे इसको लेकर अब तक कई शोध किए जा चुके हैं। ले‍किन अब भारतीय भारत में वैज्ञानिकों ने पहली बार अपशिष्ट जल यानी वेस्‍ट वॉटर में कोविड 19 वायरस की जीन का पता लगाया है। सीधे तौर पर कहें तो सीवेज के गंदे पानी में भी कोरोना के गैर संक्रमित जीन पाए जा रहे हैं। इस सफलता से देश में अपशिष्ट जल आधारित महामारी विज्ञान (डब्ल्यूबीई) के जरिये कोविड-19 की वास्तविक निगरानी का रास्ता साफ हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने गंदे पानी पर आधारिक निगरानी पर जोर दिया है

शोधकर्ताओं ने गंदे पानी पर आधारिक निगरानी पर जोर दिया है

आईआईटी गांधीनगर के वैज्ञानिकों द्वार ये अध्ययन किया गया हैं। अहमदाबाद के बाहरी इलाकों से एकत्र किए सीवेज के गंदे पानी के सैंपल से शोधकर्ताओं ने यह जांच की है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए शोधकर्ताओं ने गंदे पानी पर आधारिक निगरानी पर जोर दिया है। अहमदाबाद के अपशिष्ट जल में विषाणु की "जीन प्रतियां" बढ़ी हैं जो शहर में बीमारी की घटनाओं से मेल खाती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इलाज से पहले हॉटस्पॉट की पहचान करना बेहद जरूरी है।

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भारतीय वैज्ञानिकों की हो रही सराहना

भारतीय वैज्ञानिकों की हो रही सराहना

गौरतलब हैं कि अभी तक नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिका ने गंदे पानी में सार्स-कोव-2 वायरस के कण देखे हैं। ब्रिटेन के सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी में पर्यावरण सूक्ष्म जीवविज्ञानी एंड्र्यू सिंगर ने ट्विटर बताया कि इसी के साथ भारत, "दुनिया के उन मुट्ठीभर देशों में शामिल हो गया है जो कोविड-19 पर डब्ल्यूबीई कर रहे हैं। किसी निर्धारित क्षेत्र में अपशिष्ट जल में विषाणु की मात्रा की निगरानी कर बीमारी के प्रकोप को समझने के लिये डब्ल्यूबीई एक प्रभावी तरीका है। हालिया अध्ययनों में सामने आया है कि कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) संक्रमित व्यक्ति के मल में मौजूद रहता है। अवजल शोधन संयंत्रों में जाने वाले गंदे पानी में विषाणु की आनुवांशिक सामग्री (आरएनए) पायी गयी है।

 संक्रमित लोगों का प्रतिशत पता लगाने में ये शोध आएगा काम

संक्रमित लोगों का प्रतिशत पता लगाने में ये शोध आएगा काम

बता दें अप्रैल में आईआईटी गांधीनगर 51 प्रीमियर विश्वविद्यालयों और रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ एक वैश्विक संघ से जुड़ा था। इस संघ का काम गंदे पानी की निगरानी करना था ताकि भविष्य में कोविड-19 को लेकर दुनिया को चेतावनी दी जा सके। गांधीनगर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा द्वारा गुजरात जैवप्रौद्योगिकी शोध केंद्र (जीबीआरसी) और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) के साथ मिलकर किये गए इस अध्ययन की हालिया रिपोर्ट 18 जून को जारी की गई। शोधकर्ताओं ने कहा कि अवजल शोधन संयंत्रों में क्योंकि काफी बड़े क्षेत्र का अपशिष्ट जल संग्रहित होता है, ऐसे में अशोधित जल में आरएनए के स्तर का पता चलने से यह क्षेत्र में संक्रमित लोगों का प्रतिशत पता लगाने में मूल्यवान साबित हो सकता है।

शोध में किया जा गया ये दावा

शोध में किया जा गया ये दावा

शोध का नेतृत्व करने वाले आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर मनीष कुमार ने बताया कि संयंत्र में प्रतिदिन 10.6 करोड़ लीटर पानी आता है जिसमें कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे अहमदाबाद सिविल अस्पताल का अपशिष्ट जल भी शामिल है। प्रोफेसर मनीष कुमार ने कहा कि वायरस की उपस्थिति पता करने के लिए गंदा पानी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उत्सर्जन के दौरान वायरस सिर्फ सिम्टोमैटिक ही नहीं एसिम्टोमैटिक मरीजों के शरीर को भी छोड़ता है। अध्ययन में पाया गया है कि गंदे पानी में कोरोना वायरस संक्रमण नहीं फैलाता है। पानी में तापमान एक बड़ी भूमिका निभाता है, जिसकी वजह से वायरस के जीवन पर असर पड़ता है। विश्लेषण के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आईआईटी गांधीनगर को आठ मई से 27 मई तक गंदे पानी के सैंपल इकट्ठे करने में मदद की।

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English summary
Indian scientists found Kovid-19 gene in sewage dirty water, this big disclosure in research
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