कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी एसी कोच में नहीं मिलेंगी चादर, तकिया जैसी सुविधाएं, रेलवे कर रहा है विचार
नई दिल्ली। कोरोना महामारी के इस दौर में काफी कुछ बदल गया है। लोगों की आम दिनचर्या से लेकर तकरीबन हर क्षेत्र में बदलाव देखने को मिला है। कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां कोरोना महामारी के खत्म होने के बाद भी चीजें पहले की तरह सामान्य नहीं हो पाएंगी और लोगों को नए बदलाव के साथ ही जीवन को ढालना होगा। कोरोना काल में सबसे अधिक संकट के बादल भारतीय रेलवे पर देखने को मिले, महीनों तक रेलवे ने ट्रेनों के संचालन को बंद कर दिया, जोकि भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार है कि ट्रेनों के संचालन को रोक दिया गया हो। हालांकि अब कोरोना को लेकर हालात पहले की तुलना में कुछ हद तक बेहतर हुए हैं, लॉकडाउन को तकरीबन खत्म कर दिया गया है, ट्रेनों के पूर्ण संचालन की फिर से तैयारी हो रही है। लेकिन बावजूद इसके रेलवे में कुछ बदलाव शायद आपको हमेशा देखने को मिलेंगे।
शीर्ष अधिकारियों की बैठक में हुई चर्चा
रिपोर्ट के अनुसार रेलवे एसी कंपार्टमेंट में मिलने वाले कंबल, तकिया, हैंड टॉवल, चादर यात्रियों को अब मुहैया नही कराएगी। ट्रेनों का पूर्ण संचालन शुरू होने के बाद भी रेलवे इन चीजों को मुहैया कराने पर रोक लगाने का विचार कर रहा है। हालांकि इस मसले पर अभी तक कोई आधिकारिक फैसला नहीं लिया गया है। लेकिन जानकारी के अनुसार इस मसले पर हाई लेवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान चर्चा की गई है। यह मीटिंग रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों और जोनल व डिवीजन के अधिकारियों के बीच पिछले हफ्ते हुई है, जिसमे इसको लेकर चर्चा की गई है।
जारी हो सकता है अहम निर्देश
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इस बैठक में शामिल तीन शीर्ष अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि हम यह दिशानिर्देश जारी करने जा रहे है। सूत्रों के अनुसार इसको लेकर एक कमेटी का गठन किया गया है जोकि इसको लेकर फैसला लेगी कि देशभर में जो मेगा लॉन्ड्री स्थापित की गई हैं जहां ट्रेन में मुहैया कराए जाने वाले लिनेन को धोने का काम करती थीं, उनका क्या करना है। बता दें कि रेलवे ट्रेन में दी जाने वाली लिनेन को धोने पर 40-50 रुपए खर्च करता है।
महीने में एक बार धुले जाते हैं कंबल
अनुमान के अनुसार मौजूदाा समय में तकरीबन 18 लाख लिनेन सेट हैं, जिन्हें ट्रेन में मुहैया कराया जाता है। ट्रेन में दिए जाने वाले कंबल को 48 महीनों तक इस्तेमाल किया जाता है और इसे महीने में एक बार ही धोया जाता है। फिलहाल किसी भी नए लिनेन उत्पाद को रेलवे की ओर से खरीदा नहीं गया है। बता दें कि ट्रेन में यात्री अक्सर कंबल और चादर को लेकर शिकायत करते हैं। यहां तक कि यह मसला संसद में भी उठ चुका है और इसको लेकर सदन में सवाल पूछा जा चुका है।
रेलवे बेचता है पुराने कंबल
पिछले कुछ महीनों की बात करें तो तकरीबन 20 रेलवे डिवीजन ने प्राइवेट वेंडर्स को कम कीमत पर पुराने कंबल, चादर, तकिया आदि रेलवे स्टेशन पर बेचने का टेंडर दिया है। ईस्ट सेंट्रल रेलवे के दानापुर डिवीजन में पांच ऐसे वेंडर्स हैं, जोकि हर साल रेलवे को 30 लाख रुपए देते हैं, जबकि पूरे देश में रेलवे स्टेशन पर तकरीबन 50 ऐसी दुकानें हैं जो ट्रेन में इस्तेमाल किए गए कंबल, चादर, तकिया आदि को कम कीमत पर बेचते हैं। वहीं रेलवे के एक अधिकारी का कहना है कि एसी कोच में एसी के तामपान को संतुलित करके कंबल की आवश्यकता को खत्म किया जा सकता है।
क्या कहना है रेलवे का
वहीं रेलवे के प्रवक्ता का कहना है कि इस मसले पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। मौजूदा कोरोना समय में हम लोगों को चादर, कंबल वगैरह नहीं दे रहे हैं। जब स्थिति सामान्य होगी, उस वक्त इन बातों की समीक्षा की जाएगी। फिलहाल इस बारे में कुछ भी कहना कल्पना मात्र है। बता दें कि रेलवे एसी कोच में यात्रियों को खाना भी मुहैया कराता है, लेकिन फिलहाल पैक्ड फूड ही यात्रियों को दिया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि लंबे समय तक पैक्ड खाना लोगों को दिया जाता रहेगा।
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