
'साइलेंट किलर' INS Vagsheer पनडुब्बी लॉन्च, समंदर में दहलाएगी दुश्मनों को
मुंबई, 20 अप्रैल: आईएनएस वागशीर भारत के रक्षा नौसैनिक बेड़े में बुधवार को शामिल हो गई। रक्षा सचिव अजय कुमार ने मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड द्वारा निर्मित प्रोजेक्ट-75 की छठी स्कॉर्पीन श्रेणी पनडुब्बी, आईएनएस वागशीर को आज मुंबई में लॉन्च किया। प्रोजेक्ट-75 के तहत स्कॉर्पीन श्रेणी की 4 अति-आधुनिक पनडुब्बियां आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज और आईएनएस वेला इस समय भारतीय नौसेना को अपनी सेवाएं दे रही हैं।

'प्रोजेक्ट-75' की आखिरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी INS वागशीर लॉन्च
प्रोजेक्ट-75 के तहत अभी तक 5 आधुनिक पनडुब्बी भारत की रक्षा में तैनात हैं। वागशीर का नाम रेत की मछली के नाम पर रखा गया है, जो हिंद महासागर में गहरे समुद्र में रहने वाली एक घातक शिकारी है। पहली पनडुब्बी वागशीर, रूस (तत्कालीन सोवियत संघ), 26 दिसंबर 1974 को भारतीय नौसेना में शामिल की गई थी, और लगभग तीन दशकों की समुद्री सेवा के बाद 30 अप्रैल 1997 को रिटायर हो गई थी।

जानिए इसकी ताकत
आईएनएस वागशीर एक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है। यह 221 फीट लंबी और 40 फीट ऊंची है। वॉर मशीन 360 बैटली सेल से चलती है। इसका 40% से ज्यादा हिस्सा मुंबई के मांजगांव डॉक में आत्मनिर्भर भारत परियोजना के तहत बनाया गया है। पानी की सतह पर आईएनएस वागशीर 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। पानी के भीतर साइलेंट किलर की गति करीब 37 किमी प्रति घंटे है। यह 350 फीट की गहराई में जाकर दुश्मन का पता लगा सकती है। यह मशीन 50 दिनों तक चुपचाप समुद्र में रह सकती है।

वागशीर एक साथ करीब 30 खदानें बिछा सकता है
इस पनडुब्बी में कई तरह के हथियार फिट किए गए हैं। इस पनडुब्बी में 533 मिमी के 6 टॉरपीडो ट्यूब लगे हैं। किसी बड़े ऑपरेशन के दौरान यह साइलेंट किलर 18 टॉरपीडो या एसएम 39 एंटी-शीप मिसाइल ले जा सकता है। वागशीर एक साथ करीब 30 खदानें बिछा सकता है। पनडुब्बी रोधी युद्ध, सतह विरोधी युद्ध, खुफिया जानकारी इकट्ठा करना, खदानें बिछाना और अन्य पनडुब्बियों का वागशीर से कोई मुकाबला नहीं है। इस पनडुब्बी में नौसैनिक युद्धपोतों के साथ संचार करने के लिए संचार की नई प्रणालियां लगाई गई हैं।

8 सैन्य अधिकारी और 35 सेलर तैनात किए जा सकते
इसमें 8 सैन्य अधिकारी और 35 सेलर तैनात किए जा सकते हैं। इनके अंदर एंटी-टॉरपीड काउंटरमेजर सिस्टम लगा है। 2005 में भारत और फ्रांस ने छह स्कॉर्पीन-श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 3.75 बिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए। इस परियोजना को भारत के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और फ्रांस के लिए DCNS जिसे अब नेवल ग्रुप कहा जाता है) द्वारा अंजाम दिया जाना था।