वाघा हमला: भारत में खैर नहीं इस्लामिक कट्टरपंथियों की
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। पाकिस्तान में कल आत्मघाती हमले के बाद भारत की सुरक्षा एजेंसियां भी हरकत में आ गई हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, केन्द्र सरकार के आतंरिक सुरक्षा से जुड़े अफसरों ने पाकिस्तान में आत्मघाती हमले के बाद के हालातों पर विचार किया। सरकार देश में इस्लामिक कट्टरपंथियों को नेस्तानाबूत करने के प्रति कृतसंकल्प है।
इस बीच, सरकार माओवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ हल्ला बोलने के अभियान में और वक्त नहीं लगाना चाहती।
खतरा ही खतरा
दरअसल राजधानी के नार्थ ब्लाक में बीते कुछ हफ्तों से गृह मंत्री राजनाथ सिंह और नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर अजित डोभल लगातार खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों के शिखर अफसरों के साथ मिलकर उस रणनीति को बनाने में जुटे हैं,जिससे कि माओवादी आतंकी और इस्लामिक कट्टरवादी संगठनों को धूल में मिलाया जा सके। बताते चलें कि नार्थ ब्लाक से ही चलता है देश का गृह मंत्रालय।
सरकार मानती है कि जेहादी मानसिकता वाले संगठनों और माओवादी संगठनों को खत्म किए बगैर उऩ्हें चैन की सांस नहीं लेनी। इस पूरी तैयारी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के लंबे अनुभव का लाभ लिया जा रहा है।
माओवादियों से भी खतरा
गृह मंत्रालय मानता है कि माओवादी आंतकवाद से देश को उतना ही बड़ा खतरा है,जितना बड़ा खतरा इस्लामिक जेहादी संगठनों से है। इसलिए इस पर काबू पाने के लिए देश के किसी भी सुरक्षा बलों की मदद ली जाएगी। इन्हें खत्म करने के लिए सरकार किसी भी तरह का स्पेस देने के लिए तैयार नहीं है।
जानकारों का कहना है कि केन्द्र सरकार मानती है कि देश में बाहरी निवेश भी उसी सूरत में आएगा जबकि देश में अमन का माहौल होगा। सरकार विदेशी निवेश लाने की भी इन दिनों कसकर कोशिश कर रही है।
इसके साथ ही सरकार देश के नौजवानों को जेहादी आतंकवादी संगठनों से बचाने के लिए भी रणनीति बना रही है। उसे मालूम है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के फलस्वरूप देश के बहुत से युवा अल कायदा और आईएसआईएस से प्रभावित हो रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि देश में इंडियन मुजाहिदिन और सिमी जैसे नफरत फैलाने वाले संगठनों पर भी पैनी नजर ऱखने की जरूरत है,जो बहुत से नौजवानों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं।