China border: LAC के पास आर्मी अफसरों को दी जा रही है Tibetology की ट्रेनिंग, जानिए क्यों पड़ी जरूरत ?
टेंगा (अरुणाचल प्रदेश), 19 अक्टूबर: चीन लगातार तिब्बतियों को अपनी सेना में शामिल करने के लिए तरह-तरह की पैंतरेबाजी कर रहा है। भारत को भी अहसास है कि करीब 3,488 किलो मीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा को ड्रैगन की गिद्ध दृष्टि से सुरक्षित रखना है तो तिब्बत और तिब्बत के लोगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तथ्य यही है कि एलएसी के उस पार भारत के जिन इलाकों पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है, उसके अलावा बाकी हिस्सा मूल रूप से तिब्बत ही है, जो अभी चीन के जबरिया नियंत्रण में है। इसलिए भारतीय सेना भी अपने उन अफसरों को तिब्बत विज्ञान में पारंगत कर रही है, जिनकी तैनाती ऐसे इलाकों में होती है।

आर्मी अफसरों को तिब्बत विज्ञान की ट्रेनिंग
भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात अपने अफसरों और जवानों को तिब्बत की संस्कृति समझने और सूचना युद्ध में पारंगत बनाने के लिए तिब्बतोलॉजी का कोर्स करवा रही है। इसके लिए उसने अरुणाचल प्रदेश के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चरल स्टडीज के साथ एक समझौता किया है। इस साल मार्च से जून के बीच ऐसे 15 सहभागियों की पहली बैच को यह ट्रेनिंग दी भी जा चुकी है। अरुणाचल प्रदेश के टेंगा स्थित 5 माउंटेन डिविजन के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा है, 'तिब्बती परंपराओं, सांस्कृतिक विशिष्टताओं, लोकतंत्र और राजनीतिक प्रभाव आदि को समझना हमारे लोगों और अधिकारियों को यह समझने में सक्षम बनाता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और हम कहां पर काम कर रहे हैं।' इस कोर्स के लिए इसी इलाके में तैनात अफसरों को चुना जाएगा।

उत्तर-पूर्व में दो जगह ट्रेनिंग का इंतजाम
तिब्बतोलॉजी कोर्स के लिए आर्मी की ट्रेनिंग कमांड एआरटीआरएसी ने पूरे देश में 7 इंस्टीट्यूट की पहचान की हुई है, इनमें से दो उत्तर-पूर्व में हैं। टेंगा के अलावा ऐसा दूसरा इंस्टीट्यूट इस इलाके में सिक्किम का नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी है। इनके अलावा पांच इंस्टीट्यूट हैं- डिपार्टमेंट ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज- दिल्ली यूनिवर्सिटी, सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर हायर तिब्बतियन स्टडीज- वाराणसी, नव नालंदा महाविहार- राजगीर (बिहार), विश्व भारती- पश्चिम बंगाल और दलाई लामा इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन- बेंगलुरु।

अगले महीने दूसरे बैच की होगी ट्रेनिंग
दरअसल, इस तरह की ट्रेनिंग पहले से ही होने लगी थी, लेकिन अब इसे संरचनात्मक स्वरूप दिया गया है। इस साल मार्च से मई के बीच जो कोर्स हुआ है, वह इस तरह की कोर्स का पहला बैच था, जिसमें 15 आर्मी अफसरों को तिब्बतोलॉजी में प्रशिक्षित किया गया है। इसके लिए भारतीय सेना ने संबंधित शिक्षण संस्थाओं के साथ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग कर रखा है। दूसरे बैच की ट्रेनिंग अगले महीने शुरू होने वाली है। फिलहाल, साल में इस तरह के दो कोर्स करवाने की योजना है, जिनमें हर बैच में 15 से 20 प्रतिभागी रखे जाएंगे।

150 आर्मी अफसरों को दी जा चुकी है ट्रेनिंग
सेना के अधिकारी ने बताया कि देशभर में अबतक 150 आर्मी अफसरों को विभिन्न सेंटरों में ट्रेनिंग दी जा चुकी है। एक और अधिकारी के मुताबिक थोड़ी लंबी अवधि (तीन महीने) के कोर्स की योजना भी तैयार की गई थी और यह प्रस्ताव एआरटीआरएसी को भेजा जा चुका है। सेना के अधिकारी ने इसके बारे में बताया है कि 'प्रशिक्षित अधिकारी अपने बटालियनों में प्रशिक्षकों के तौर पर कार्य करेंगे और कुछ साल में हमारे पास तिब्बती विषयों को समझने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या हो जाएगी।'

तिब्बतोलॉजी कोर्स में क्या विषय शामिल है?
42 दिनों के प्रारंभिक पाठ्यक्रम में प्रशिक्षुओं को तिब्बती इतिहास, जियोपॉलिटिक्स और मौजूदा पॉलिटिकल डिनामिक्स के बारे में जानकारी दी जा रही है, जिसमें लेक्चर भी शामिल होते हैं और केस स्टडीज भी शामिल रहेंगे। इसके लिए बोमडिला मोनेस्टरी से तिब्बत और तिब्बतियों से जुड़े मुद्दों को समझने वाले लामाओं की भी भर्ती की जाएगी। (तस्वीरें- सांकेतिक)