दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के लिए इजरायल से बड़ी डील, खरीदेगा स्पाइस-2000 बम का डेस्ट्रॉयर वर्जन
नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) इजरायल से खतरनाक स्पाइस-2000 बमों को खरीदने का मन बना रही है। स्पाइस-2000 वही बम है जिसने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर कहर बरपाया था। इस बार स्पाइस के एडवांस्ड वर्जन को खरीदने की तैयारी चल रही है जो दुश्मन की बिल्डिंग्स से लेकर उनके बंकर तक को पलक झपकते ही तबाह कर देंगे। 26 फरवरी को आईएएफ के 12 मिराज फाइटर जेट्स पाक के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित बालाकोट में दाखिल हुए थे। यहां पर जेट्स ने जैश के ठिकानों पर बमबारी की थी। बताया जा रहा है कि करीब 1000 किलो बम बालाकोट में गिराए गए थे।
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बालाकोट में था अलग वर्जन
बालाकोट एयरस्ट्राइक में में जिन स्पाइस-2000 बमों का प्रयोग किया गया था, वह इसका पेनेट्रेटर वर्जन था यानी वह बम जो काफी अंदर तक दाखिल हो सकता है। उस वर्जन ने कंक्रीट की छतों पर भी छेद कर दिए थे। स्पाइस बम ने जैश के कैंप वाली बिल्डिंग को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया था। बम बिल्डिंग के अंदर जाकर फंटे थे और इसकी वजह से कैंप में जितने भी लोग थे उनकी मौत हो गई थी। आईएएफ सूत्रों की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है कि अब वायुसेना बंकर बस्टर या बिल्डिंग डेस्ट्रॉयर वर्जन मार्क 84 स्पाइस बम खरीदने की योजना बना रहा है जो आसानी से टारगेट की गई बिल्डिंग को खत्म कर सके।
कैसे काम करता है स्पाइस बम
जमीन
पर
इस
बम
को
एक
स्पाइस
गाइडेड
किट
से
लैस
किया
जाता
है।
जिस
समय
यह
बम
जमीन
पर
होता
है
उस
समय
भी
इसकी
मेमोरी
में
100
से
ज्यादा
अलग-अलग
टारगेट्स
लोड
होते
हैं।
साथ
ही
हर
टारगेट
की
तस्वीर
भी
होती
है
जिसे
इमेजरी
इंटेलीजेंस
से
हासिल
किया
जाता
है।
जब
यह
किसी
स्ट्राइक
एयरक्राफ्ट
या
फाइटर
जेट
में
फिट
होता
है,
उसके
बाद
कॉकपिट
और
बम
के
बीच
में
एक
डाटालिंग
को
अटैच
किया
जाता
है।
जब
एयरक्राफ्ट
उड़ता
है
और
टारगेट
की
तरफ
बढ़ता
है
तो
पायलट
या
फिर
वेपेन
सिस्टम
ऑफिसर
कॉकपिट
में
लगे
डिस्प्ले
पर
उस
तस्वीर
को
देखते
हैं
तो
बम
ने
उन्हें
भेजी
होती
है।
इसके
बाद
पायलट
प्रोग्राम्ड
टारगेट्स
को
सेलेक्ट
करता
है
या
फिर
बम
में
टारगेट
सेट
करता
है।
इसके
बाद
यह
बम
दुश्मन
को
निशाना
बनाने
के
लिए
रेडी
हो
जाता
है।
इमरजेंसी पावर का प्रयोग कर खरीदे जाएंगे बम
माना जा रहा है कि स्पाइस बमों की खरीद को उस खास ताकत के जरिए अंजाम दिया जाएगा जिसके तहत तीनों सेनाएं आकस्मिक हालातों में फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। सेनाएं इस शक्ति के जरिए 300 करोड़ रुपए की लागत से अपनी जरूरत के हथियारों को खरीदने के लिए आजाद हैं। आईएएफ के लिए स्पाइस बम वर्तमान समय में रीढ़ की हड्डी की तरह है। स्पाइस बम की स्टैंडऑफ रेंज करीब 60 किलोमीटर है और जल्द ही फाइटर जेट सुखोई को भी इन बमों से लैस करने की योजना बनाई जा रही है। इन बमों के साथ सुखोई का ट्रायल पहले ही शुरू हो चुका है।
सुखोई में होंगे फिट
सूत्रों ने बताया, 'कुछ और ट्रायल्स के बाद सुखोई को इन बमों से लैस किया जाएगा जो कि पूरी तरह से सैटेलाइट तस्वीरों पर निर्भर हैं और इन फोटोग्राफ्स की मदद से दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाता है।' एक बार सफलता पूर्वक इंस्टॉल हो जाने के बाद एयरफोर्स और ज्यादा ताकतवर हो सकती है। मिराज-2000 के अलावा फिर वह बालाकोट स्ट्राइक के लिए सुखोई का भी प्रयोग कर पाएगी।हालांकि अभी तक आईएएफ ने आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की है कि स्पाइस बमों का ही प्रयोग बालाकोट एयर स्ट्राइक में हुआ था।
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