जानिए चीन बॉर्डर पर Indian Airforce के इन सबसे घातक 'हथियारों' के बारे में!
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच टकराव को जल्द ही 150 दिन पूरे होने वाले हैं। पांच माह से पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) और भारतीय मिलिट्री टैंक, मिसाइल समेत हर जरूरी लाव-लश्कर के साथ एलएसी पर मौजूद हैं। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के फाइटर जेट्स भी लगातार गश्त लगा रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि आईएएफ ने अपने कौन-कौन से एयरक्राफ्ट इस समय एलएसी पर तैनात कर रखे हैं। इन एयरक्राफ्ट में फाइटर जेट्स से लेकर ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट तक शामिल हैं। अमेरिका से लेकर रूस और फ्रांस से लेकर इजरायल तक के एयरक्राफ्ट इस समय चीन बॉर्डर पर हैं।
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फ्रांस से आया राफेल
29 जुलाई को अंबाला में लैंडिंग के बाद 10 सितंबर को औपचारिक तौर पर 5 राफेल जेट आईएएफ का हिस्सा बन गए। पिछले हफ्ते राफेल जेट्स ने अंबाला से लद्दाख तक का सफर तय किया और अब लगातार ये जेट्स एलएसी पर गश्त लगा रहे हैं। राफेल को विशेषज्ञ आईएएफ का वह हथियार बता रहे हैं माना जा रहा है जिसके आगे चीन का पांचवी पीढ़ी का फाइटर जेट चेंगदू भी फेल है। मीटियोर बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल के अलावा स्कैल्प एयर-टू-ग्राउंड सिस्ट से लैस पांच राफेल जेट इस समय हिमाचल की मुश्किल पहाड़ियों में अभ्यास किया था। सूत्रों की मानें तो अगर लद्दाख में हालात बिगड़े तो भी राफेल रेडी हैं। पूर्व आईएएफ चीफ चीफ एयर मार्शल (रिटायर्ड) बीएस धनोआ ने राफेल को गेम चेंजर करार दिया था। राफेल एक 4.5 पीढ़ी का एयरक्राफ्ट है लेकिन इसके बाद भी राफेल इतना क्षमतावान है कि वह चीन के प्रीमियर जेट जे-20 को ढेर कर सकता है। राफेल को अफगानिस्तान, लीबिया और सीरिया जैसी मुश्किल जगहों में भी प्रयोग किया जा चुका है। राफेल एक बार में एक साथ चार मिशन को अंजाम दे सकता है।
रूस का सुखोई
लद्दाख का आसमान पिछले तीन माह से सुखोई की दहाड़ से गूंज रहा है। 15 जून को हुई गलवान घाट हिंसा के बाद से लगातार सुखोई गश्त को अंजाम दे रहा है। सुखोई -30MKI को आईएएफ का सबसे प्रभावी फाइटर जेट्स माना जाता है। भारत ने रूस से 12 बिलियन डॉलर की रकम के साथ 272 सुखोई जेट खरीदे थे। साल 2000 में यह फाइटर जेट आइएएफ का हिस्सा बना था। जहां कुछ सुखोई जेट्स को हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के लाइसेंस के तहत देश में ही तैयार किया गया तो कुछ रूस में निर्मित थे। राफेल से पहले यह आखिरी फाइटर जेट था जिसे आईएएफ का हिस्सा बनाया गया था। सुखोई की एक स्क्वाड्रन अब दक्षिण भारत में भी है और 222 टाइगर शार्क्स नाम से यह स्क्वाड्रन कोयंबटूर से समंदर के रास्ते चीन पर नजर रखेगी।
बालाकोट एयरस्ट्राइक वाला मिराज 2000
26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में हुई एयरस्ट्राइक को कौन भुला सकता है। यह एयरस्ट्राइक आईएएफ के एक और गौरवशाली इतिहास के तौर पर दर्ज हो गई। इस एयरस्ट्राइक में जैश-ए-मोहम्मद के अड्डों पर मिराज 2000 ने ही बमबारी की थी। एयरस्ट्राइक वाले वही मिराज 2000 फाइटर जेट्स भी इस समय लगातार गश्त लगा रहे हैं। मिराज-2000 को कारगिल की जंग के समय भी प्रयोग किया था। उस समय भी मिराज को क्रॉस बॉर्डर स्ट्राइक के लिए प्रयोग किया गया था। यह आईएएफ का सबसे खतरनाक एयरक्राफ्ट है। इसे साल 1985 में इंडियन एयरफोर्स में शामिल किया गया था। इसके तुरंत बाद मिराज को भारत में वज्र नाम दिया गया था जिसक संस्कृत में अर्थ है-बिजली। मिराज ने पहली बार साल 1978 में उड़ान भरी थी और साल 1984 में यह फ्रेंच एयरफोर्स का हिस्सा बना। भारत ने साल 1982 में 36 सिंगल सीटर और चार ट्विन सीटर मिराज जेट का ऑर्डर फ्रांस को दिया था। यह एयरक्राफ्ट उस समय खरीदे गए जब पाकिस्तान ने अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन के साथ एफ-16 फाइटर जेट्स की डील की थी।
रूस का मिग 29
मिग-29 भी इस समय एलएसी पर मौजूर है। चीन के साथ टकराव बढ़ता देख हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस से 59 मिग-29 खरीद को मंजूरी दे दी है। मिग-29 और मिराज की जुगलबंदी सन् 1999 में कारगिल के संघर्ष में देखने को मिली थी। उस समय जब पाकिस्तान की सेना और आतंकियों ने 15,000 फीट की ऊंचाई पर ठिकाने बना लिए थे तो मिराज के साथ मिग 29 ने दुश्मन के अड्डों पर निशाना लगाया था। साल 2018 में मिग 29 को अपग्रेड किया गया था और इसके साथ ही इसकी ताकत में दोगुना इजाफा हो गया था। यह जेट ऐसी जगह पर तैनात है जहां से पाकिस्तान का बॉर्डर हो या लद्दाख में चीन से लगी एलएसी, यह जेट सबसे तेजी से पहुंच सकता है।
लादेन का खात्मा करने वाला चिनुक
चिनुक को अमेरिकी कंपनी बोइंग ने तैयार किया है। यह वही हेलीकॉप्टर है जिसे साल 2011 में अमेरिकी नेवी सील ने अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को एबोटाबाद में ढेर करने के लिए हुई सर्जिकल स्ट्राइक में प्रयोग किया था। पिछले वर्ष मार्च में दो चिनुक हेलीकॉप्टर भारत पहुंचे थे। और भारत ने तीन बिलियन डॉलर की लागत से 15 चिनुक और 22 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स की डील की थी। साल 1962 से अमेरिकी सेनाएं इसका प्रयोग कर रही हैं। साल 1967 में वियतनाम युद्ध के दौरान पहली बार इसका प्रयोग किया गया था। ईरान और लीबिया की सेनांए भी इस हेलीकॉप्टर का प्रयोग कर रही हैं। चिनुक हेलीकॉप्टर्स को अमेरिका ने अफगानिस्तान में कोल्ड वॉर के दौरान तैनात किया था। इसके बाद ईराक में इन्हें तैनात किया गया। अफगानिस्तान में जहां पर ऊंचे पहाड़ हैं और तापमान भी अनिश्चित रहता है, वहां पर सैनिकों को एयरलिफ्ट करने में इस हेलीकॉप्टर ने अपनी क्षमताओं का बखूबी प्रदर्शन किया। जरूरत पड़ने पर यह अमेरिका के पांच यूएच-60 अटैक हेलीकॉप्टर्स की जगह ले सकता है।
प्रिंस हैरी का फेवरिट अटैक हेलीकॉप्टर अपाचे
दुनिया का सबसे एडवांस्ड अटैक हेलीकॉप्टर अपाचे पिछले वर्ष सितंबर में आधिकारिक तौर पर आईएएफ का हिस्सा बना था। अपाचे को अपाचे गार्डियन हेलीकॉप्टर के नाम से भी जाना जाता है। एएच-64ई (I) अपाचे गार्डियन एक एडवांस्ड और हर मौसम में हमला करने की क्षमता से लैस हेलीकॉप्टर है जिसे जमीन के अलावा हवा में मौजूद दुश्मन पर भी हमला करने में प्रयोग किया जा सकता है। यह हेलीकॉप्टर कम ऊंचाई पर पेड़ों और पहाड़ों के बीच भी उड़ान भर सकता है और दुश्मन को नेस्तनाबूद कर सकता है। अफगानिस्तान में अपाचे ने अपनी श्रेष्ठता को साबित किया है। प्रिंस हैरी इस हेलीकॉप्टर को उड़ा चुके हैं। जिस समय प्रिंस हैरी अफगानिस्तान में डेप्लॉयड थे, उस समय वह इसी हेलीकॉप्टर के पायलट थे। प्रिंस हैरी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अब दुश्मनों में दहशत पैदा करनी हो तो इस हेलीकॉप्टर के अलावा कोई और विकल्प हो ही नहीं सकता। अपाचे में 30 मिलिमीटर की एक एम230 चेन गन को मेन लैंडिंग गियर के बीच इंस्टॉल किया गया है और यह हेलीकॉप्टर की स्ट्राइकिंग कैपेसिटी को दोगुना करती है। अपाचे दुनिया के उन चुनिंदा हेलीकॉप्टर में शामिल है जो किसी भी मौसम या किसी भी स्थिति में दुश्मन पर हमला कर सकता है।
इजरायल का खतरनाक ड्रोन हेरॉन
भारत के करीब रणनीतिक साथी इजरायल के ड्रोन हेरॉन को भी इस समय एलएसी पर तैनात किया गया है। 30,000 फीट की ऊंचाई पर लगा सकने में सक्षम हेरॉन को इजरायल की एरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने तैयार किया है। इस ड्रोन को उन हथियारों से फिट किया जा सकता है जो जमीन पर आसानी से टारगेट को तबाह कर सकते हैं। अगर इसे दिल्ली से लॉन्च किया जाये तो सिर्फ 30 मिनट के अंदर बॉर्डर पर दुश्मनों का पता लगा सकता है। इसके सेंसर इतने तेज हैं कि 30,000 फीट की ऊंचाई से भी यह दुश्मनों की जानकारी आसानी से मिल सकती है। इजरायल ने फरवरी 2015 में बंगलुरु के एरो-इंडिया शो में पहली बार हेरॉन टीपी ड्रोन का प्रदर्शन किया था। 11 सितंबर 2015 को रक्षा मंत्रालय ने 400 मिलियन डॉलर में 10 हेरॉन ड्रोन की खरीद को मंजूरी दी। साल 2016 में जब भारत एमटीसीआर का सदस्य बना तो इस ड्रोन की खरीद का रास्ता भी खुल गया।
ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट AN-32
आईएएफ का भरोसेमंद ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट एएन-32 भी इस समय लद्दाख में है। रूस का बना एएन 32 वह सबसे पहला एयरक्राफ्ट था जिसने साल 2008 में सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप दौलत बेग ओल्डी में सफल लैडिंग के मिशन को अंजाम दिया था। एएन-32 आईएएफ के मीडियम रेंज के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की श्रेणी में रीढ़ की हड्डी के समान हैं। सन् 1976 में पहली बार इस एयरक्राफ्ट को तैयार किया गया था। उसी समय भारत इस विमान का पहला ग्राहक बना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उस समय सोवियत संघ के नेता लियोनिड ब्रेझेनहेव के बीच इस एयरक्राफ्ट की डील हुई थी। यह ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ट्विन इंजन से लैस होता है। इसकी खासियत है कि यह 55°C से भी ज्यादा के तापमान में 'टेक ऑफ' कर सकता है और करीब 14, 800 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम है। इस एयरक्राफ्ट में पायलट, को-पायलट, गनर, नेविगेटर और इंजीनियर सहित 5 क्रू-मेंबर होते हैं। इसमें एक साथ अधिकतम 50 लोग सवार हो सकते हैं। जीपीएस से लैस इस विमान में मौसम की जानकारी देने वाला रडार और मॉडर्न नेविगेशन सिस्टम होता है। आईएएफ के पास इस समय करीब 100 एएन-32 एयरक्राफ्ट हैं।
अमेरिका का C-130 एयरक्राफ्ट
साल 2008 में अगर एएन 32 ने पहली लैंडिंग की तो साल 2013 में चीनी घुसपैठ के बाद आईएएफ ने यहां पर अपने बेस को ऑपरेशनल किया। उस समय आईएएफ ने सबसे बड़े ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130 हरक्यूलिस को लैंड कराया गया था। सी-130 की लैंडिंग ने चीन को सबसे ज्यादा परेशान किया था। सी-130 को अमेरिका की कंपनी लॉकहीड मार्टिन तैयार करती है। चार इंजन वाले इस एयरक्राफ्ट को सर्वश्रेष्ठ ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट माना जाता है। यह एयरक्राफ्ट पिछले 60 सालों से सर्विस में है और अब तक कई मिलिट्री, असैन्य और मानवीय सहायता मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका हैं। इस समय 15 देशों की सेनांए इसे ऑपरेट कर रही हैं। भारत ने अमेरिका के साथ साल 2010 में 12 ऐसे एयरक्राफ्ट की डील की थी। इस एयरक्राफ्ट का प्रयोग खासतौर पर साजो-सामान और मिलिट्री ट्रूप्स के साथ टैंक और इस तरह के दूसरे उपकरणों को ट्रांसपोर्ट करने में किया जाता है। अधिकतम स्पीड 670 किलोमीटर प्रति घंटे से उड़ान भरने वाला सी-130, 19,958 किलोग्राम तक का भार लेकर उड़ा सकता है। यह न सिर्फ खराब मौसम में लैंड कर सकता है बल्कि हवा में इसमें ईधन भी भरा जा सकता है और साथ ही इसकी लैंडिंग अंधेरे में भी कराई जा सकती है। यह एयरक्राफ्ट करीब 80 सैनिकों और हथियारों के साथ मिशन को अंजाम दे सकता है।
अमेरिका का C-17 ग्लोबमास्टर
सी-130 के बाद नाम आता है बोइंग की तरफ से निर्मित जंबो जेट सी-17 ग्लोबमास्टर का। इसे आसमान का जहाज भी कहते हैं और यह नाम इसे इसके आकार और क्षमता की वजह से दिया गया है। सी-17 ग्लोबमास्टर को दुनिया का सबसे एडवांस्ड मिलिट्री और कार्गो एयरक्राफ्ट है। चार इंजन वाला यह एयरक्राफ्ट 76,657 किलोग्राम का वजन ले जा सकने में सक्षम है। साइज में बड़ा होने के बावजूद यह किसी भी छोटी एयरफील्ड पर आसानी से लैंड कर सकता है। इसका कॉकपिट पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से लैस है और इंटीग्रेटेड है। तीन क्रू वाले इस एयरक्राफ्ट में एक पायलट, को-पायलट और एक लोडमास्टर होता है।इसका एडवांस्ड कार्गो सिस्टम किसी भी तरह के मिशन में आसानी से ऑपरेट हो सकता है। यह 102 पैराट्रूपर्स या फिर 134 ट्रूप्स को ले जा सकता है। जमीन पर 134 ट्रूप्स आ सकते हैं तो साइड की सीट्स पर 54 ट्रूप्स को ले जाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें एक टैंक के अलावा छह हथियारबंद हेलीकॉप्टर तक आ सकते हैं। इसकी फ्यूल क्षमता 134,556 लीटर की है। भारत ने अमेरिका के साथ वर्ष 2010 में 10 सी-17 के लिए इसकी डील फाइनल की थी। साल 2018 में इस एयरक्राफ्ट ने अरुणाचल प्रदेश में चीन बॉर्डर के करीब तूतिंग में सफल लैंडिंग को अंजाम दिया था।
रूस का IL-76 यानी गजराज
रूस का निर्मित आईएल 76 आईएएफ का सबसे पुराना ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट है। चार-इंजन वाले इस एयरक्राफ्ट का प्रयोग कई बार सफलतापूर्वक प्राकृतिक आपदा के दौरान लोगों को निकालने के लिए किया जा चुका है। इस एयरक्राफ्ट को सन् 1967 में लॉन्च किया गया था। इसके आकार को देखते हुए इसे 'गजराज' के नाम से भी जानते हैं। यह एयरक्राफ्ट मुश्किल से मुश्किल जगह पर कम से कम समय में अपने मिशन को पूरा करने में समर्थ है। आईएएफ के अलावा गजराज को यूरोप और अफ्रीका की सेनाएं भी प्रयोग कर रही हैं। इस एयरक्राफ्ट में एक स्कूल बस आसानी से फिट हो सकती है। साथ ही इसमें 60 यात्रियों या फिर दो शिपिंग कंटेनर्स को भी फिट किया जा सकता है। आईएल-76 17,500 किलोग्राम का वजन उठा सकता है।