कोरोना मरीजों की रिकवरी के लिए फायदेमंद है अश्वगंधा? भारत-बिट्रेन मिलकर कर रहे हैं शोध
नई दिल्ली, अगस्त 01: आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 से रिकवरी को बढ़ावा देने के लिए 'अश्वगंधा' पर एक अध्ययन करने के लिए यूके के लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन(एलएसएचटीएम) के साथ समझौता किया है। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान और लंदन स्कूल आफ हाईजीन एवं ट्रापिकल मेडिसिन साथ मिलकर कोरोना के मरीजों के जल्द स्वस्थ होने में अश्वगंधा के इस्तेमाल की भूमिका का पता लगाने के लिए क्लीनिकल परीक्षण करेंगे।
मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) और एलएसएचटीएम ब्रिटेन के तीन शहरों लीसेस्टर बर्मिंघम और लंदन में दो हजार लोगों पर अश्वगंधा का क्लीनिकल परीक्षण करेंगे। 'अश्वगंधा' जिसे आमतौर पर 'इंडियन विंटर चेरी' के नाम से जाना जाता है, एक पारंपरिक भारतीय जड़ी बूटी है जो ऊर्जा को बढ़ाती है, तनाव को कम करती है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है।
'अश्वगंधा' यूके में आसानी से उपलब्ध, ओवर-द-काउंटर पोषण पूरक है और इसकी एक सिद्ध सुरक्षा प्रोफ़ाइल है। लबें समय से ग्रसित कोविड मरीजों में 'अश्वगंधा' के सकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं। परीक्षण का सफल समापन एक बड़ी सफलता हो सकती है और भारत की पारंपरिक औषधीय प्रणाली को वैज्ञानिक वैधता मिल सकती है। यह पहली बार है जब मंत्रालय ने कोविड-19 रोगियों पर इसकी प्रभावकारिता की जांच के लिए किसी विदेशी संस्थान के साथ सहयोग किया है।
परियोजना में डॉ राजगोपालन के साथ को-इन्वेस्टीगेटर और एआइआइए के निदेशक डॉ तनुजा मनोज नेसारी ने कहा कि प्रतिभागियों को रेंडमली चुना गया है। एलएसएचटीएम के डॉ संजय किनरा अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक हैं। डॉ नेसारी ने कहा, 'तीन महीने के लिए, 1,000 प्रतिभागियों के एक समूह को अश्वगंधा (एजी) टैबलेट दी जाएंगी, जबकि 1,000 प्रतिभागियों के दूसरे समूह को एक प्लेसबो सौंपा जाएगा, जो दिखने और स्वाद में एजी जैसा ही होगा।
प्रतिभागियों को दिन में दो बार 500 मिलीग्राम की गोलियां लेनी होंगी। अध्ययन के तहत एक महीने तक फॉलो-अप लिया जाएगा, जिसमें दैनिक जीवन की गतिविधियां, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य लक्षणों, पूरक उपयोग और प्रतिकूल घटनाओं को रिकॉर्ड किया जाएगा। डॉ. नेसारी ने कहा कि एमओयू पर हस्ताक्षर करने के लिए राजनयिक और नियामक दोनों चैनलों के माध्यम से लगभग 16 महीनों में 100 से अधिक बैठकें हुईं। उन्होंने कहा कि अध्ययन को मेडिसिन एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) द्वारा अनुमोदित किया गया था और डब्ल्यूएचओ-जीएमपी द्वारा प्रमाणित किया गया था। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त जीसीपी (गुड क्लिनिकल प्रैक्टिस) दिशानिर्देशों के अनुसार इसका संचालन और निगरानी की जा रही थी।