चीन ने कहा- हम 1959 वाली LAC पर कायम, भारत ने दिया जवाब, न कभी माना था, न ही मानेंगे
नई दिल्ली। चीन की तरफ से सोमवार को कहा गया था कि वह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के लिए सन् 1959 वाली स्थिति को स्वीकार करता है। जबकि भारत की तरफ से उसके इस बयान को सिरे से खारिज कर दिया गया है। मंगलवार को विदेश मंत्रालय की तरफ से चीन की तरफ से आए बयान पर प्रतिक्रिया दी गई है। भारत ने साफ कर दिया है कि सन् 1959 वाली स्थिति को कभी नहीं स्वीकारा किया गया था। चीन की तरफ से जिस साल का जिक्र किया जा रहा है उस समय तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झोहू एनलाई की तरफ से सात नवंबर 1959 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के समक्ष एलएसी की रूपरेखा का प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन भारत ने उस समय भी इसे मानने से इनकार कर दिया गया था।
यह भी पढ़ें-इजरायल से हेरॉन ड्रोन को अपग्रेड करने की रिक्वेस्ट
Recommended Video
एकपक्षीय LAC को नहीं मानते हैं
चीन को जवाब देते हुए भारत ने कहा है, 'हमने चीन की मीडिया में कुछ रिपोर्ट्स देखी हैं जिसमें भारत-चीन के सीमाई इलाकों में स्थित एलएसी पर चीन की स्थिति के बारे में बताया गया है। भारत ने कभी भी एकपक्षीय तौर पर तय की गई एलएसी को स्वीकार नहीं किया है। हमारी स्थिति आज भी वहीं है और चीन समेत सब इस बात से वाकिफ हैं।' विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि दोनों पक्षों की तरफ से साल 2003 में एलएसी की स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की गई थी। लेकिन यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी क्योंकि चीन की तरफ से कोई मंशा नहीं दिखाई गई थी। इसलिए अब चीन लगातार जोर दे रहा है कि एलएसी सिर्फ एक है और यह उस वादे के विरूद्ध है जो उनकी तरफ से किया गया था।
चीन ने भारत को बताया जिम्मेदार
विदेश मंत्रालय के बयान में आगे कहा गया है कि साल 1993 में हुआ समझौते के अलावा साल 1996 में कान्फिडेंस बिल्डिंग प्रॉसिजर (सीबीएम) और साल 2005 में सीबीएम को लागू करने के लिए प्रोटोकॉल संधि साइन हुई थी। भारत सरकार के मुताबिक भारत और चीन हमेशा से ही प्रतिबद्ध रहे हैं कि वो एक समान समझ पर पहुंचने के लिए स्पष्टीकरण को आगे बढ़ाएंगे। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से भारत को वर्तमान में टकराव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था, 'सबसे पहले, भारत और चीन बॉर्डर पर एलएसी एकदम स्पष्ट है और वह सात नवंबर 1959 वाली ही एलएसी है। चीन ने 1950 के दशक में इसकी घोषणा कर दी थी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत को भी इसे स्पष्ट कर दिया गया था।'
भारतीय सेना को पीछे हटने को कहा
चीन ने आगे कहा है, 'लेकिन इस वर्ष से ही इंडियन आर्मी लगातार गैरकानूनी तौर पर बॉर्डर को पार करने में लगी हुई है और वह एकपक्षीय कार्रवाई कर एलएसी का क्षेत्र बदलना चाहती है। इसकी वजह से ही तनाव बरकरार है। दोनों सेनाओं के बीच डिसइंगेजमेंट की अहम कड़ी है भारत का पीछे हटना और साथ ही गैर-कानूनी तौर पर बॉर्डर के पार जवानों और उपकरणों की तैनाती को भी हटान होगा।' इस टकराव के दौरान यह पहली बार है जब चीन की तरफ से कहा गया है कि वह सन् 1959 वाली स्थिति को मानता है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग की तरफ से साल 2017 में डोकलाम संकट का जिक्र करते हुए सन् 1959 वाली एलएसी की बात कही गई। इसके साथ ही उन्होंने लद्दाख में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी हिस्से में जवानों के बीच हिंसा के लिए भारत को दोषी ठहरा दिया।
20 किमी पीछे हटने का था प्रस्ताव
भारत लगातार इस बात को मानने से इनकार करता आ रहा है कि उसके जवानों ने एलएसी को पार किया। भारत की तरफ से कई बार कहा जा चुका है कि उसने हमेशा ही जिम्मेदारी के साथ बर्ताव किया है। वह हमेशा से बॉर्डर पर शांति और स्थिरता का पक्षधर है। सात नवंबर सन् 1959 का जो जिक्र चीन की तरफ से किया गया है उस दिन तत्कालीन चीनी पीएम झोहू की तरफ से भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को चिट्ठी लिखी गई थी। इस चिट्ठी में लिखा था, 'दोनों देशो के बीच बॉर्डर की यथास्थिति को बरकरार रखने के लिए, बॉर्डर के इलाकों पर स्थिरता बरकरार रखने और एक मैत्रीपूर्ण निबटारे के लिए, चीन की सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि भारत और चीन की सेनाएं पूर्व में मैकमोहन रेखा से 20 किलोमीटर दूर हट जाएं और पश्चिम में दोनों तरफ के जवान अधिकतम संयम बरतें।'