भारत का अर्जुन एमके-1ए टैंक पाकिस्तान के टैंकों पर पड़ेगा भारी?
भारत सरकार ने स्वदेशी अर्जुन एमके-1ए टैंक की ख़रीद के लिए मंज़ूरी दे दी है. पाकिस्तान के टैंकों के मुक़ाबले कितना मज़बूत होगा ये नया टैंक?
भारतीय सेना के बेड़े में जल्द ही एक नया युद्ध टैंक अर्जुन एमके-1ए शामिल होने वाला है.
भारत सरकार ने अर्जुन एमके-1ए (अल्फा) के लिए 6000 करोड़ रुपये की राशि को मंज़ूरी दे दी है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई रक्षा ख़रीद परिषद की बैठक में मंगलवार को 13,700 करोड़ की लागत से विभिन्न हथियारों और उपकरणों की ख़रीद को मंजूरी प्रदान कर दी है जो अर्जुन टैंक के अलावा कुछ और सौदों में इस्तेमाल होंगे.
अर्जुन एमके-1ए भारत में ही निर्मित टैंक है. मौजूदा अर्जुन टैंक पिछले अर्जुन एमके-1 टैंक का उन्नत संस्करण है. भारत के पास इसी श्रृंखला का एमके-2 टैंक भी है.
पिछले दिनों पीएम मोदी ने चेन्नई में सेना प्रमुख एमएन नरवणे को अर्जुन टैंक का मार्क-1ए संस्करण सौंपा था. पीएम मोदी ने कहा कि यह भारत की एकजुट भावना का प्रतीक भी है, क्योंकि दक्षिण भारत में निर्मित बख्तरबंद वाहन देश की उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा करेंगे.
अर्जुन एमके-1ए में 14 बड़े बदलाव किए गए हैं. बताया जा रहा है कि यह तेज़ी से लक्ष्य का पीछा करके हमला करने में सक्षम है. इसमें रात या दिन और हर मौसम में अपने लक्ष्य पर निशाना लगाने की क्षमता है.
इसके डिजाइन के मुताबिक इसमें मिसाइल दागने की क्षमता भी डाली जा सकती है जिस पर परीक्षण किया जा रहा है.
क्या हैं खासियतें
अर्जुन एमके-1ए की एक बड़ी खासियत ये बताई जा रही है कि इसमें इस्तेमाल लगभग 54.3 प्रतिशत उपकरण स्वदेशी हैं जबकि पिछले संस्करण में ये 41 प्रतिशत थे.
इस टैंक में लगा ट्रांसमिशन सिस्टम पहले से ज़्यादा बेहतर है. ये ग्रेनेड और मिसाइलों के हमले ज़्यादा मज़बूती से झेल सकता है. रासायनिक हमले से बचाने के लिए इसमें ख़ास सेंसर लगाए गए हैं.
इसका कंचन मॉड्यूलर कॉम्पोजिट आर्मर इसे एंटी-टैंक हथियारों से चारों तरफ़ से सुरक्षा देता है.
अन्य विशेषताएं-
- इसका लेज़र वॉर्निंग सिस्टम पता लगा लेता है कि कहां से और किस तरह की वॉर्निंग यानी चेतावनी आ रही है. कहां से हमला हो सकता है. इसमें रिमोट कंट्रोल वेपन सिस्टम, एडवांस लैंड नेविगेशन सिस्टम भी लगा है.
- टैंक में “फिन स्टेबलाइज्ड पियर्सिंग डिसकार्डिंग सेबट” गोला बारूद है. ये तकनीक दुश्मन के टैंक पर कम समय में और सटीक निशाना लगाने में मददगार होती है.
- इसमें स्वदेशी 120 एमएम कैलिबर की राइफ़ल गन है.
- इसमें दृश्यता स्थिर करने के लिए कंप्यूटर नियंत्रित एकीकृत अग्नि नियंत्रण प्रणाली भी है जो हर तरह की रोशनी में काम करती है.
- द्वितीय हथियारों में एक एंटी-पर्सनल को-एक्सल 7.62 एमएम मशीन गन और एंटी-एयरक्राफ्ट व जमीनी निशाने के लिए 12.7-एमएम मशीन गन भी है.
- इसमें रात में देखने की सुविधा है जिसकी पहले के टैंकों में कमी थी. इस टैंक में 1400 हॉर्स पावर का इंजन लगा है और ये 70 किमी. प्रति घंटा की रफ़्तार से चल सकता है.
अर्जुन टैंकों की शुरुआत
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने लड़ाकू वाहन अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान (सीवीआरडीई) के साथ अर्जुन टैंक की श्रृंखला के युद्धक टैंकों का निर्माण 1972 में शुरू किया था. इसका उद्देश्य बेहतरीन मारक क्षमता, उच्च गतिशीलता और उत्कृष्ट सुरक्षा वाला युद्धक टैंक तैयार करना था. इसके उत्पादन की शुरुआत 1996 में हुई थी.
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भारतीय सेना के बेड़े में 124 अर्जुन टैंकों की एक रेजीमेंट साल 2004 में शामिल की जा चुकी है, जो पश्चिमी रेगिस्तान में तैनात है. लेकिन, नई ज़रूरतों को देखते हुए पुराने टैंकों में सुधार की आवश्यकता बताई गई थी.
इसके बाद डीआरडीओ ने उन्नत संस्करण तैयार किया है. अब शामिल किए जा रहे 118 अर्जुन टैंक अतिरिक्त विशेषताओं के साथ पहले से ज्यादा मारक क्षमता वाले हैं.
118 उन्नत अर्जुन टैंक खरीदने को 2012 में मंजूरी दी गई थी लेकिन इसकी फायर क्षमता समेत कई पक्षों पर सेना ने सुधार की मांग की थी.
इस बीच सेना ने 2015 में रूस से 14000 करोड़ रुपये में 464 मध्यम वजन के टी-90 टैंक की खरीदे थे. भारत के पास अधिकतर रूस निर्मित टी-72 और टी-90 टैंक मौजूद हैं.
सेना की मांग के आधार पर उन्नत किए जाने के बाद अर्जुन टैंक मार्क-1ए को 2020 में हरी झंडी मिली थी.
पाकिस्तान के युद्धक टैंक
भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर सैन्य क्षमता की तुलना होती रहती है. दोनों के बीच तीन बार युद्ध भी हो चुका है.
भारतीय मीडिया में भी अर्जुन-एमके1ए टैंक को पाकिस्तान के लिए चुनौती बताया जा रहा है. ऐसे में जानते हैं कि पाकिस्तान, युद्धक टैंकों की क्षमता के मामले में कितना मज़बूत है.
पाकिस्तान के पास अधिकतर चीन और यूक्रेन की तकनीक पर आधारित टैंक हैं. कुछ टैंक पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर विकसित किए हैं जिनमें अल-खालिद और अल-जरार टैंक शामिल हैं. उसके पास यूक्रेन का टी80यूडी और चीन का टाइप-85, 69, 59 टैंक है.
टी-80यूडी टैंक
पाकिस्तान का टी-80यूडी टैंक एक बेहद सुरक्षित और उन्नत युद्ध टैंक है. इसे यूक्रेन ने विकसित किया है. पाकिस्तानी सेना में इसकी करीब 324 यूनिट्स मौजूद हैं. इसमें 1ए45 फायर कंट्रोल सिस्टम है. इसकी आर्मर प्रोटेक्शन भारतीय सेना के टी-72 से तो बेहतर है लेकिन टी-90 भीष्म टैंक से कमज़ोर है.
इसमें 125 एमएम की स्मूदबोर गन है. इसकी अधिकतम रेंज पांच किमी. और ये कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हेलिकॉप्टर को भी निशाना बना सकता है. इसमें 7.62 एमएम की मशीन गन और दूर से नियंत्रित होने वाली 12.7 एमएम की एंटी-एटरक्राफ्ट मशीन गन भी है. इसमें एक हज़ार हॉर्स पावर का इंजन है.
अल-जरार
अल-जरार दूसरी पीढ़ी का युद्धक टैंक है जो पाकिस्तान और चीन के सहयोग से तैयार किया गया है. इसमें 125 एमएम की स्मूदबोर गन है और 12.7 एमएम की एंटी-एयरक्राफ्ट मशीन गन है. यह 65 किमी. की रफ़्तार से चल सकता है. इसकी इंजन पावर कम है लेकिन इसका वजन 40 टन के करीब है.
अल खालिद टैंक
अल खालिद टैंक भी पाकिस्तान और चीन के संयुक्त प्रयासों से बना है. अल खालिद में 125 एमएम स्मूदबोर गन है. इसका वजन 46 से 48 टन है और इसमें 1200 हॉर्स पावर के सुपर चार्ज डीजल इंजन का इस्तेमाल किया गया है. ये 72 किमी. प्रति घंटा की रफ़्तार से चलने में सक्षम है.
तुलना करना आसान नहीं
रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी कहते हैं, “टैंकों की खासियतें मुख्यता दो चीज़ों में होती हैं. एक गतिशीलता कि वो कितनी तेज़ी से चल सकता है और दूसरी फायर पावर कि उसकी बंदूक कितनी ताकतवर है. अर्जुन टैंक कई मामलों में पाकिस्तान के टैंकों से बेहतर है क्योंकि इसका जर्मन इंजन बहुत शक्तिशाली है जबकि पाकिस्तान के पास अधिकतर यूक्रेनियन टैंक हैं. लेकिन, पाकिस्तानी टैंकों की गतिशीलता ज़्यादा है, वो तेज़ भाग सकते हैं.”
वह कहते हैं कि टैंकों के बीच में तुलना इतनी स्पष्ट और सीधी नहीं हो सकती. टैंकों की अपनी खासियतें होती हैं और युद्ध की परिस्थितियों के अनुसार उन विशेषताओं का फायदा मिलता है. ये एक तरह से बराबरी की स्थिति है.
हल्के टैंकों की ज़रूरत
भारत के लिए अर्जुन एमके-1ए को तो जानकार उपयोगी बताते हैं लेकिन हल्के टैंकों की ज़रूरत पर भी ज़ोर देते हैं.
राहुल बेदी कहते हैं, “ये टैंक 68 टन का है. इतने वजन के कारण टैंक की गतिशीलता कम हो जाती है. पंजाब में जैसे पुल हैं, रास्ते हैं वहां पर इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता. ये राजस्थान की सीमा पर रेगिस्तान के इलाक़े पर ही इस्तेमाल हो सकते हैं. इसका वजन और बड़े आकार के कारण ये रेल के ज़रिए नहीं जा सकता. इसके लिए सरकार टैंक कैरियर्स मंगा रही है.”
"इसकी मारक क्षमता और कुछ इलाक़ों में गतिशीलता काफी अच्छी है. लेकिन, भारत में अब हल्के टैंकों की ज़रूरत महसूस की जा रही है."
राहुल बेदी ने बताया, “वैसे तो भारत में युद्धक टैंकों का इस्तेमाल अधिकतर राजस्थान और पंजाब में ही होता है. लेकिन, चीन ने लद्दाख में गतिरोध के बीच सीमा पर हल्के टैंक तैनात किए हैं जो 30-34 टन के हैं. वहीं, हमारा टी-72 और टी-90 टैंक उससे भारी है. इससे टैंक की रफ़्तार कम हो जाती है.”
“यहां पर कम से कम 40 टन का टैंक चाहिए. हल्के टैंकों पर करीब 15 साल पहले भी विचार हुआ था लेकिन फिर ज़रूरी ना मानकर काम आगे नहीं बढ़ा. अब भारत सरकार तेजी से इस दिशा में काम कर रही है.”
लेकिन, इस बीच भारतीय सेना को कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के 30 महीनों बाद अर्जुन-एमके1ए टैंक मिल जाएगा. इसके बाद हर साल 30 टैंकों की डिलवरी की जाएगी.