भारत में हर साल 10 हजार वर्ग किमी जमीन हो रही बंजर
ग्रेटर नोएडा। दुनिया के 170 देशों में से 122 देश मरुस्थलीकरण का शिकार हो रहे हैं। यानी यहां की जमीनें बंजर होती जा रही हैं। बात अगर भारत की करें तो स्थिति निरंतर खराब होती जा रही है। यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति वर्ष साल 10 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन बंजर हो रही है। यानी अगर यह सिलसिला जारी रहा तो करीब 80 साल बाद भारत की एक चौथाई भूमि बंजर हो जायेगी।
संयुक्त राष्ट्र के विंग यूनाइटेड नेशन्स कंवेंशन टू कॉम्बैट डेसर्टिफिकेशन के द्वारा ग्रेटर नोएडा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कॉप14 में इस गहन मुद्दे पर चर्चा की गई। इस मौके पर तमाम सरकारी परियोजनाओं पर काम कर चुके दिल्ली के पर्यावरणविद एवं संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल रीसोर्स पैनल के सदस्य डा. अशोक खोसला ने कहा कि अगर कोरिया जमीन की बर्बादी रोक सकता है, तो भारत क्यों नहीं? उन्होंने अपने इस सवाल को रखते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे तथ्य रखे गये, जिन्हें पढ़ने के बाद आप भी कहेंगे कि हां, अब समय आ गया है!
रिपोर्ट में पेश किये गये कुछ खास तथ्य
1. कोरियाई युद्ध के बाद 1960 में दक्षिण कोरिया की 5 प्रतिशत से कम जमीन बंजर थी, वर्ष 2000 में इसी देश की 65 प्रतिशत से अधिक जमीन पेड़-पौधों से भर गई।
2. 2003 में चीन ने 35 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले पठार वाले बंजर इलाकों को हरा-भरा बनाने का बीड़ा उठाया और महज 8 सालों में इसे पूरा कर दिखाया। इस पूरी परियोजना के चलते देश के 25 लाख लोगों की साय दुगनी हो गई।
3. रवांडा जैसा देश जो बहुत समृद्ध नहीं है, ने 2001 से 2010 के बीच 20 लाख हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बना डाला। इससे देश के ग्रामीण इलाकों की आय कई गुना बढ़ गई।
4. इथोपिया ने मात्र 5 सालों में 20 लाख हेक्टेयर बंजर जमीन को हरा कर दिया। और अब इसी देश ने 2030 तक 2.2 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को हरा-भरा बनाने का बीड़ा उठाया है। और इस देश की सरकार को विश्वास है कि वो कर दिखायेंगे।
भारत को क्या करने की जरूरत
डा. खोसला ने अपन रिपोर्ट में कहा कि सबसे पहले तो हमें हर साल हो रहे 10 हजार वर्ग किलोमीटर मरुस्थलीकरण को रोकने की जरूरत है। क्योंकि अगर इस पर नियंत्रण नहीं लाया गया, तो सबसे पहले ग्रामीण भारत का रोजगार छिन जायेगा। उसके बाद शहरों की आर्थिक स्थिति भी पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगी। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के दतिया जिलो में जिस तरह से हरियालीकरण किया गया वह काबिल-ए-तारीफ है। 1992 में एमपी के दतिया जिले में कुछ पठार चुने गये और पूर्ण-नियंत्रित ढंग से यहां के पठारों पर पेड़ लगाये गये। इसके बेहतरीन परिणाम मात्र 14 महीनों में ही देखने को मिल गये। इन पठारों के आस-पास के इलाकों में पानी की समस्या खत्म हो गई। किसानों को सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी मिलने लगा।
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इसी तर्ज पर भारत के अलग-अलग इलाकों की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से जमीनों को हरा-भरा बनाने के प्रयास करने की जरूरत है। हालांकि राजस्थान, बुंदेलखंड आदि में ऐसे प्रयास शुरू हो चुके हैं, लेकिन पूरे देश में इसे गति प्रदान करने की जरूरत है।
जरूरी नहीं है कि केवल जंगल ही बनाये जायें, अगर ग्रासलैंड (खास के मैदान) ही तैयार किये जायें भारी मात्रा में कार्बन एवं ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोका जा सकता है।