रूस ने की हां, अब वियतनाम को भारत सप्लाई करेगा ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल
नई दिल्ली। भारत की सबसे एडवांस्ड मिसाइल ब्रह्मोस जिसे रूस के साथ एक ज्वॉइन्ट वेंचर के तहत तैयार किया गया है, अब वियतनाम को निर्यात की जाएगी। रक्षा मंत्रालय की तरफ से फैसला लिया गया है कि इस मिसाइल को वियतनाम समेत उन तमाम देशों को निर्यात किया जाएगा जो चीन की आक्रामकता से त्रस्त हैं। रूस की तरफ से इसकी मंजूरी दे दी है। सूत्रों के मुताबिक रूस की सरकार ने भारत को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को किसी तीसरे देश को सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रख निर्यात की मंजूरी दी है।
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70 देशों ने भारत से की है मांग
वियतनाम ने ब्रह्मोस के अलावा आकाश मिसाइल खरीदने की भी इच्छा जाहिर की है। ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट में रूस की 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी, इसलिए मिसाइल के निर्यात के लिए उसकी अनुमति जरूरी थी। वियतनाम भारत से ब्रह्मोस और आकाश एयर डिफेंस मिसाइलें लेना चाहता है। अगर यह डील फाइनल हो जाती है तो फिर वियतनाम ये दोनों मिसाइलें अपने देश की सुरक्षा के लिए तैनात कर देगा। इससे चीन की दहशत दक्षिण चीन सागर और उसके आसपास के इलाकों में कम हो सकेगी। वहीं यह सौदा वियतनाम के साथ भारत के रिश्तों को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकेगा। वियतनाम के अलावा ब्राजील, चिली, फिलीपींस, साउथ कोरिया, अल्जीरिया, ग्रीस, साउथ अफ्रीका, मलेशिया, थाइलैंड, इजिप्ट, सिंगापुर और बुल्गारिया समेत 70 देशों ने इस मिसाइल को खरीदने की इच्छा जताई है। चीन से परेशान तटीय देशों ने करीब एक दशक पहले ही भारत से आग्रह किया था कि वह उन्हें ब्रह्मोस मिसाइल दे।
लद्दाख और अरुणाचल में है तैनात
ब्रह्मोस मिसाइल का जमीन से हवा में मार कर सकने वाला वर्जन इस समय लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तैनात है। 15 जून को जब गलवान घाटी में हिंसा हुई थी तो सेना को ब्रह्मोस मिसाइल के हवा से लॉन्च हो सकने वाले वर्जन को तैनात करने की मंजूरी मिल गई थी। सुपरसोनिक मिसाइल को पूर्वी और पश्चिमी बॉर्डर पर तैनात किया गया था। दुनिया की सबसे तेज इस मिसाइल को लॉन्च होने के बाद फिलहाल उपलब्ध किसी भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम से रोक पाना असंभव है। इस मिसाइल को इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) की तरफ से इसकी क्षमताओं के लिए तालियां मिल चुकी हैं। इसे सुखोई से लेकर तेजस जैसे फाइटर जेट से भी लॉन्च किया जा सकता है। यह भारत की पहली स्वदेशी मिसाइल है। साल 2016 में केंद्र सरकार की तरफ से एक नई रेजीमेंट को तैयार करने और फिर उसे चीन के नजदीक अरुणाचल प्रदेश में तैनात करने की मंजूरी दी गई।