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जापान के पीएम शिंजो आबे का इस्तीफा उनके सबसे भरोसेमंद दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए क्यों है झटका

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नई दिल्ली- करीब 6 साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल लीडरों में जितने भी दोस्त बनाए हैं, उनमें जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे का एक अलग ही स्थान है। दोनों के बीच आपसी समझ इतनी बेहतरीन रही है कि सामान्यतौर पर कूटनीतिक शिष्टाचारों के चक्कर में ऐसा देखने को मिलता नहीं है। संभवत: दोनों नेता आने वाली 10 तारीख को फिर से मिलने वाले थे। लेकिन, बीमारी के चलते शिंजो आबे ने पद छोड़ने का फैसला कर लिया है, इसलिए दोनों वैश्विक नेताओं के लिए यह मुलाकात शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई है।

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पीएम मोदी मेरे सबसे भरोसेमंद और महत्वपूर्ण मित्र हैं- शिंजो आबे

पीएम मोदी मेरे सबसे भरोसेमंद और महत्वपूर्ण मित्र हैं- शिंजो आबे

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे उन वर्ल्ड लीडरों में हैं, जो वैश्विक समृद्धि की दिशा में भारत को ग्लोबल पावर के रूप में देखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी घनिष्ठता का अंदाजा इसी से लगता है कि एकबार उन्होंने कहा था, 'प्रधानमंत्री मोदी....मेरे सबसे भरोसेमंद और महत्वपूर्ण मित्र हैं।' उनका हमेशा से यह विश्वास रहा है कि भारत और जापान के बीच संबंधों में बहुत बड़ी क्षमता है। यही वजह है कि 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई भी भारतीय जनता पार्टी दोबारा बहुत भारी जीत के साथ सत्ता में लौटी तो शिंजो आबे ने पीएम मोदी को भेजे शुभकामना संदेश में कहा था- 'बेहतर भविष्य के लिए हमारे साझा खोज में जापान की इच्छा भारत के सबसे विश्वसनीय साझीदार बनने की है।'

नए जापानी पीएम से रिश्तों की गर्माहट आने में देर लगेगी

नए जापानी पीएम से रिश्तों की गर्माहट आने में देर लगेगी

जापान से आई खबर प्रधानमंत्री मोदी के लिए इसीलिए निजी तौर पर निराश करने वाली है, क्योंकि 10सितंबर के आसपास ही दोनों मित्रों के बीच एकबार फिर बातचीत होनी प्रस्तावित थी। कोरोना संकट के दौर में जब चीन से पूरी दुनिया पीछा छुड़ाना चाह रही है, भारत-जापान के लिए यह एक सुनहरा मौका है। जापान को भारत में निवेश बढ़ाने के बेहतरीन मौका है तो भारत को भी चीन से किनारा करने का अच्छा अवसर है। दोनों नेताओं के बीच होने वाली बातचीत का जो संभावित एजेंडा था, उसमें दोनों देशों के बीच डिजिटल पार्टनरशिप और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने, कोविड-19 संकट से उबरने और व्यापार को और संतुलित बनाना शामिल था। लेकिन, आबे के पद से जाने के बाद नए जापानी प्रधानमंत्री के साथ बातचीत प्रस्तावित वक्त पर होना मुश्किल लग रहा है। अगर यह बातचीत हो भी गई तो भी मोदी और आबे वाली ट्यूनिंग बनते-बनते देर लगेगी और जिस आत्मीयता के साथ दोनों के रिश्तों में जो गर्माहट आ चुकी थी, उसके लिए अभी काफी वक्त चाहिए।

भारत में निवेश बढ़ाने को लेकर हो सकती थी चर्चा

भारत में निवेश बढ़ाने को लेकर हो सकती थी चर्चा

माना जा रहा था कि अगले महीने दोनों नेताओं के बीच प्रस्तावित वीडियो कॉन्फ्रेंस में जापानी पीएम चीन से अपने देश का कुछ निवेश भारत लाने के बारे में प्रधानमंत्री मोदी से चर्चा करना चाहते थे। ये भी जानकारी है कि वह भारत में कोविड-19 की वजह से देर हो रही अपनी करीब 200 इंवेस्टमेंट प्रोजेक्ट की मदद के विकल्पों पर भी प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करना चाह रहे थे। लेकिन, लगता है कि उनकी बीमारी ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वह अपने सबसे भरोसेमंद मित्र से जापानी पीएम के तौर पर एकबार फिर मिलने से पहले ही पद छोड़ने का फैसला कर लिया।

भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहा है जापान

भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहा है जापान

मोदी-आबे के बीच प्रस्तावित वीडियो कॉन्फ्रेंस की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बिजनेसलाइन को बताया था कि, जपान भारत में निवेश बढ़ाने को लेकर बहुत उत्साहित नजर आ रहा है, क्योंकि उसे भरोसा है कि भारत के पास निर्यात की बहुत ही ज्यादा क्षमता है और यह चीन का एक विकल्प बन सकता है। यहां यह बता देना जरूरी है कि इस तरह का एक सम्मेलन 15-17 दिसंबर,2019 को गुवाहाटी में होने वाला था, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम में चल रहे उग्र प्रदर्शनों के चलते स्थगित कर देना पड़ा था। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में चीन से कोरोना फैलने के बाद जापान ने चीन से अपनी कंपनियों को निकालने और दूसरी जगहों पर उत्पादन शुरू करने के लिए 220 करोड़ डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया था। इसमें से करीब 200 करोड़ डॉलर वापस जापान में प्रोडक्शन शुरू करने के लिए था, जबकि 2.15 करोड़ डॉलर चीन के बाहर के देश के लिए था। इसके अलावा उसने करीब 10 लाख डॉलर की 10 कंपनियों को स्पेशल सब्सिडी के तौर पर भी देने का ऐलान किया था, जिनमें भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी में चल रही उसकी ऑटोमोबाइल कंपनियों और आईटी फर्म्स को अभिनव उपाय खोजने में सहायता देना शामिल था।

चीन से निकलने वाली जापानी कंपनियां भारत के लिए वरदान

चीन से निकलने वाली जापानी कंपनियां भारत के लिए वरदान

बता दें कि 2000 से 2020 की अवधि में जापान भारत में मॉरीशस, सिंगापुर और नीदरलैंड के बाद चौथा सबसे बड़ा निवेश था। जो कि भारत में इस दौरान हुए 3,350 करोड़ के कुल एफडीआई का 7.2 फीसदी है। अधिकारियों को उम्मीद थी कि दोनों प्रधानमंत्रियों की बातचीत से दोनों देशों की इस साझेदारी को और बढ़ावा मिलेगा। भारत के लिए जापान कितना महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने हाल ही में बताया है कि भारत में 5,100 से कुछ ज्यादा जापानी कंपनियां हैं, जबकि चीन में 33,000 से भी अधिक। ऐसे में अगर जापान चीन से अपना बिजनेस समेटना चाह रहा है तो उसके लिए भारत से अच्छा मौका कहां हो सकता है।

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English summary
India Japan Relations: Why Shinzo Abe's resignation is shocking for most trusted friend PM Narendra Modi
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