दुनिया में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का 70 प्रतिशत उत्पादन होता है भारत में, 30 दिन में तैयार कर सकता है 20 करोड़ टैबलेट
नई दिल्ली। एंटी-मलेरिया ड्रग हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को इस समय कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में एक बड़ा हथियार बताया जा रहा है। इस दवाई के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत से कई बार मिन्नतें की। भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुनिया को सप्लाई होने वाली इस दवा का 70 प्रतिशत उत्पादन भारत में ही होता है। विशेषज्ञों की मानें तो देश के पास इतनी क्षमता है कि तेजी से इसका उत्पादन बढ़ाया जा सके। अमेरिका के अलावा ब्राजील ने भी इस दवा की मांग भारत से की है।
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ट्रंप के अनुरोध के बाद हटा बैन
भारत ने डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से किए गए अनुरोध के बाद हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के निर्यात से बैन हटा दिया। न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने अप्रैल-जनवरी 2019-2020 के दौरान 1.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर कीमत की हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एपीआई का निर्यात किया था। इंडियन फार्मास्यूटिकल एलायंस (आईपीए) के सेक्रेटरी जनरल सुदर्शन जैन का कहना है कि पूरी दुनिया को भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का 70 प्रतिशत सप्लाई करता है। भारत के पास इस दवा को बनाने की प्रभावी क्षमता है। भारत 30 दिन में 40 टन हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई बनाने की क्षमता रखता है। अगर इससे अंदाजा लगाया जाए तो 20 मिली ग्राम की 20 करोड़ टैबलेट्स बनाई जा सकती हैं।
बढ़ाया जा सकता है उत्पादन
इस दवाई का प्रयोग ह्यूमेटॉयड ऑर्थराइटिस और लूपुस जैसी बीमारियों के लिए भी होता है तो ऐसे में इसका उत्पादन अभी भी बढ़ाया जा सकता है। इस दवाई को बनाने वाली कंपनियों में इप्का लैबोरेट्रीज, जाइडस कैडिला और वैलेस फार्मास्यूटिकल्स के नाम शामिल हैं। वहीं, भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से हाल ही में जाइडस कैडिल और इप्का लैबोरेट्री को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की 10 करोड़ टैबलेट्स बनाने का ऑर्डर दिया गया है।
अमेरिका में क्यों नहीं बनती है यह दवाई
शुरुआत में सरकार इस बात का पता लगाने में लगी हुई है कि भारत को कोरोना वायरस से निपटने के लिए कितनी दवाइयों की जरूरत पढ़ेगी। साथ ही अमेरिका के अनुरोध पर पर निर्यात पर बैन हटने के बाद हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का आउटपुट और प्रोडक्शन को बढ़ा दिया है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का अमेरिका जैसे विकसित देशों में उत्पादन नहीं होता है क्योंकि वहां मलेरिया जैसी बीमारी का नामो-निशान नहीं है।
वैज्ञानिक लगे दवाई की टेस्टिंग में
क्लोरोक्वीन सबसे पुरानी और अच्छी दवाइयों में से एक है और इसके साइड इफेक्टस भी कम होते हैं। यह दवा काफी कम दामों में उपलब्ध हो जाती है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का फॉर्मूला क्लोरोक्वीन से मिलता जुलता ही होता है। मगर कोरोना वायरस के चलते कई देशों ने इस पर रोक लगा दी है। वैज्ञानिकों को अभी इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है कि कोरोना को खत्म करने में कारगर साबित होगी या नहीं। हालांकि जिन देशों में कोरोना का संक्रमण ज्यादा है वहां इसके प्रयोग की इजाजत दी गई है।