क्या ताइवान को लेकर आग से खेल रहा है भारत?
एक तरफ़ भारत वन चाइना पॉलिसी को मानता है तो दूसरी तरफ़ ताइवान से द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ा रहा है.
इस महीने 14 दिसंबर को ताइवान और भारत के बीच औद्योगिक सहयोग को लेकर एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुआ था.
इस समझौते को लेकर चीन और ताइवान के मीडिया में काफ़ी शोर देखने को मिला है. एक तरफ़ ताइवानी मी़डिया में समझौते की सराहना की जा रही है कि इससे दोनों पक्षों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा.
दूसरी तरफ़ चीन के सरकारी अख़बारों ने इस समझौते को लेकर भारत को चेताया है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत ताइवान के मामले में आग से खेल रहा है. ग्लोबल टाइम्स ने इस समझौते पर भारतीय राजनयिकों की टिप्पणियों का हवाला देते हुए भारत की तीखी आलोचना की है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''भारतीय स्कॉलरों ने इसे दोनों पक्षों के बीच ज़रूरी राजनीतिक और रणनीतिक संबंध क़रार दिया है.''
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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''हालांकि ताइवान का सवाल कोई सरकारी स्तर का मुद्दा नहीं है. कुछ भारतीय लगातार मोदी सरकार को सलाह दे रहे हैं कि वो ताइवान कार्ड का इस्तेमाल करे और वन चाइना पॉलिसी के मामले में चीन से फ़ायदा उठाए. यह समझ आर्थिक मसलों से आगे की है और भारत-चीन संबंधों के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है. ''
''दरअसल ताइवान कार्ड को खेलते हुए भारतीय भूल जाते हैं कि वो ख़ुद कई संवेदनशील मुद्दों से जूझ रहे हैं. भारत को यह ख़्याल रखना चाहिए कि वन चाइना पॉलिसी की लकीर को वो पार कर इसका वहन नहीं कर सकता है.''
अख़बार ने लिखा है, ''भारत ताइवान से निवेश आकर्षित करने के लिए लालायित है, लेकिन ताइवानी नेता साइ इंग-वेन के राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है. ताइवानी प्रशासन भारत के टेलिकॉम्युनिकेशन, स्टील और सूचना प्रौद्योगिकी में निवेश को प्रोत्साहित कर रहा है. दोनों पक्षों के बीच यह संबंध आर्थिक से ज़्यादा राजनीतिक है.''
इस चीनी अख़बार ने ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन को भी चेताया है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''साइ इंग-वेन ख़तरों से खेल रही हैं. वो ताइवान की आज़ादी के एजेंडे पर काम कर रही हैं.''
ग्लबोल टाइम्स ने लिखा है, ''भारत अगर सोचता है कि वो ताइवान कार्ड के ज़रिए दबाव बनाकर डोकलाम गतिरोध का बदला ले सकता है तो वो भ्रम में है. भारत ने ताइवान कार्ड का इस्तेमाल किया तो दोनों देशों ने अच्छे संबंधों की जो एक लंबी दूरी तय की है उसे ख़त्म होते वक़्त नहीं लगेगा.
पिछले हफ़्ते ही भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर एनसएसए स्तर की बैठक शुरू हुई थी.
ताइवानी मीडिया में तारीफ़
ताइवान और भारत के बीच हुए समझौते को लेकर ताइवान टुडे ने लिखा है, ''ताइपेई इकनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर (टीइसीसी) के प्रतिनिधि तियान चुंग-क्वांग ने नई दिल्ली में भारतीय राजनयिक श्रीधरन मधुसूदन के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किया है.''
ताइवान टुडे ने लिखा है कि इस समझौते से दोनों देशों के संबंध और मधुर होंगे.
टीइसीसी का कहना है कि भारत के साथ यह समझौता बड़े बिज़नेस घरानों से पूर्व में हुए 21 समझौते का ही हिस्सा है. ताइपे में 12 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच औद्योगिक सहयोग सम्मेलन हुआ था.
सरकारी आंकड़े कहते हैं कि भारत और ताइवान के बीच व्यापार में बढ़ोतरी हुई है. 2017 के पहले नौ महीनों में दोनों देशों के बीच 4.7 अरब डॉलर के व्यापार में 40 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
हालांकि भारत आधिकारिक रूप से वन चाइना पॉलिसी को मानता है. वन चाइना पॉलिसी मानने का मतलब है कि भारत इस बात को स्वीकार करता है कि ताइवान कोई अलग देश नहीं है बल्कि वह चीन का ही हिस्सा है. दूसरी तरफ़ भारत ताइवान से द्वीपक्षीय संबंधों को भी बढ़ा रहा है.
मोदी ने संबंधों को दी गति?
मोदी के हाथ में कमान आने के बाद से भारत की विदेश नीति के एक अहम दर्शन 'लुक ईस्ट' को 'ऐक्ट ईस्ट' कहा गया. कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मोदी सरकार 'ऐक्ट ईस्ट' पॉलिसी के तहत ही ताइवान से संबंधों को बढ़ावा दे रहा है.
भारत ने 1950 में ताइवान से द्विपक्षीय संबंधों को ख़त्म करते हुए पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को स्वीकार किया था. भारत ने यह काम अपनी आज़ादी के कुछ साल बाद ही किया था.
शीत युद्ध के दौर में भारत और ताइवान के बीच का अनौपचारिक संबंध बिगड़ गया था. भारत गुटनिरपेक्ष खेमे में चला गया था और ताइवान अमरीकी नेतृत्व वाले खेमे में शामिल हो गया था.
नरसिम्हा राव ने बहाल किए थे संबंध
भारत और ताइवान के बीच कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के बावजूद 1990 के दशक में दोनों पक्षों के बीच संबंध बढ़ा.
यह बदलाव प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के वक़्त में हुआ. आगे चलकर और सरकारों ने भी इस संबंध को गहरा बनाने का काम किया. 1995 में इंडिया-ताइपे असोसिएशन (आईटीए) का गठन किया गया.
आईटीए के गठन के बाद से भारत और ताइवान के बीच कई समझौते हुए हैं. इन समझौतों के कारण व्यापार और निवेश को गति मिली.
जब 2014 में बीजेपी और नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो ताइवान ने इसका स्वागत किया था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों पक्षों के संबंध और बेहतर हुए.
द डिप्लोमैट के एक लेख में जेफ़ स्मिथ ने लिखा था कि बीजेपी महासचिव के तौर पर मोदी 1999 में ताइवान के दौरे पर गए थे. इस लेख के अनुसार 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने अब तक के सबसे बड़े ताइवानी बिज़नेस प्रतिनिधिमंडल की मेहमाननवाजी की थी.
कई विशेषज्ञों का कहना है कि अब मोदी सरकार अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर ताइवान से अपने संबंधों को बढ़ा रही है.