दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया है भारत, वैश्विक उत्पादन में कितना है योगदान ? जानिए
नई दिल्ली, 7 सितंबर: भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है। 1951 में देश में दूध का कुल उत्पादन 17 मिलियन टन था, जो 2021 तक करीब 210 मिलियन टन पहुंच चुका था। भारत में आज इतना दूध उत्पादन हो रहा है, जिससे कि वह इसका निर्यात भी कर रहा है। यह सब संभव हुआ है 'ऑपरेशन फ्लड' की वजह से, जिसने देश में श्वेत क्रांति लाने में मदद की। आज केंद्र सरकार ने देश में दूध उत्पादन के क्षेत्र में हुई तरक्की का पूरा ब्योरा दिया है, जिससे पता चलता है कि कुछ दशक पहले तक हम कहां थे और अब कहां पहुंच चुके हैं। दूध उत्पादन की आंख खोल देने वाली यह विकास यात्रा देखिए।
भारत में दूध उत्पादन की विकास यात्रा
भारत में एक जमाने में मवेशियां तो पर्याप्त थीं, लेकिन दूध का भारी अभाव था। आज अपना देश दूध का निर्यातक बन चुका है। भारत के डेयरी सेक्टर का यह कायाकल्प ऑपरेशन फ्लड की वजह से कैसे हुआ है, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की ओर से बुधवार को इसकी विस्तृत जानकारी साझा की गई है। डेयरी सेक्टर में भारत की सफलता का प्रमाण यही है कि आज यह दूध के अभाव वाले राष्ट्र से ऊपर उठकर दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन चुका है। यह अंतर तब ज्यादा महसूस होता है, जब 1950 और 1960 के दशक की परिस्थितियों की तुलना करते हैं। तब देश में दूध का अभाव था और इसलिए ज्यादा से ज्यादा आयात के भरोसे ही रहना पड़ता था।
1970 तक देश में दूध की खपत शर्मनाक स्तर पर पहुंच गई थी
उस समय भारत में मवेशियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा थी, लेकिन तब भी सालाना दूध उत्पादन 2.1 करोड़ टन से कम होता था। आजादी के बाद देश में दूध उत्पादन का वार्षिक चक्रवृद्धि विकास दर सिर्फ 1.64% था, जो 1960 के दशक में और घटकर 1.15% रह गया। 1950-51 में देश में दूध की प्रति व्यक्ति खपत सिर्फ 124 ग्राम रोजाना था। यह स्थिति काफी दयनीय कही जा सकती है। लेकिन, चौंकाने वाली बात है कि 1970 में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति दूध की खफत घटकर मात्र 107 ग्राम रह गई थी। यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति थी। यह दुनिया में सबसे कम में से तो था ही, आवश्यक पोषण के न्यूनतम मानकों से भी नीचे था।
शास्त्री जी की आणंद यात्रा
इससे ठीक पहले यानी 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्री ने गुजरात के आणंद जिले की यात्रा की। उनकी आणंद यात्रा की ठीक बाद 1965 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की गई। इसे देशभर में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के तहत 'आणंद पैटर्न' पर डेयरी कोऑपरेटिव बनाने के लिए तैयार किया गया था। यह कार्यक्रम कई चरणों में लागू होना था। 'आणंद पैटर्न' पूरी तरह से एक सहकारी संरचना थी, जिसमें गांव-स्तरीय डेयरी सहकारी समितियां शामिल थीं, जिसके मध्यम से जिला-स्तरीय यूनियनों को बढ़ावा मिला, और फिर राज्य-स्तरीय मार्केटिंग फेडरेशन बने। 1970 से शुरू होकर, एनडीडीबी ने पूरे भारत में इस कार्यक्रम को मजबूत करने में सहायता की।(शास्त्री जी वाली तस्वीर सौजन्य: ट्विटर)
ऑपरेशन फ्लड ने तो कमाल कर दिया
वर्गीज कुरियन नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के पहले चेयरमैन बने, जिन्हें भारत के 'श्वेत क्रांति के जनक' के रूप में लोग ज्यादा जानते हैं। कुरियन और उनकी टीम ने आणंद पैटर्न वाली सहकारी दुग्ध समितियों को ऑपरेशन फ्लड के तहत पूरे देश में स्थापित किया, जहां दूध का उत्पादन होने लगा और सहकारी समितियों से इकट्ठा किया जाने लगा और फिर शहरों तक भेजा जाने लगा। इस ऑपरेशन फ्लड को कई चरणों में अमल में लाया गया। पहले चरण (1970-1980) को वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत यूरोपियन यूनियन से दान में मिले स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर ऑयल को बेचकर वित्तीय सहायता मिली। दूसरा चरण (1981-1985): मिल्क शेड की संख्या 18 से बढ़कर 136 हुई। शहरी बाजारों में मिल्क आउटलेट 290 हो गए। 1985 के अंत तक 43,000 ग्रामीण सहकारी समितियां और 4,250,000 दूध उत्पादक आत्मनिर्भर व्यवस्था के दायरे में आ गए। तीसरा चरण (1985-1996): डेयरी कोऑपरेटिव की क्षमता और बुनियादी ढांचे का विस्तार हुआ, ताकि बढ़ते बाजार के मुताबिक ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन हो सके। इस फेज में 30,000 नए डेयरी कोऑपेटिव बने और इनकी कुल संख्या 73,000 हो गई।
भारत में दूध उत्पादन की सफलता का ग्राफ
ऑपरेशन फ्लड ने एक नेशनल मिल्क ग्रिड के माध्यम से 700 शहरों में शुद्ध दूध उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में मदद की। बिचौलियों की आवश्यकता खत्म हो गई और कीमतों में मौसमी उतार-चढ़ाव सीमित हो गया। सहकारी ढांचे ने दूध और दूध उत्पादों और उनके वितरण की पूरी कवायद को किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत ही आसान बना दिया। इसने इंपोर्टेड मिल्क सॉलिड पर से निर्भरता को भी खत्म कर दिया। अब देश ना सिर्फ अपनी जरूरतें पूरा करने में सक्षम था, बल्कि दूसरे देशों तक भी दूध पाउवडर का निर्यात शुरू कर चुका था। दुधारू मवेशियों के आनुवंशिक सुधार की कोशिशों से भी फायदा मिला। दूध उद्योग आधुनिक बने और डेयरी फार्मिंग से करीब एक करोड़ किसानों की आमदनी होने लगी। (ऊपर के आंकड़े सौजन्य: मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय)
वैश्विक दूध उत्पादन में भारत का 21% योगदान
पिछले दो दशकों में भारत का दूध उत्पादन दोगुनी हो चुकी है। इसमें 'Amul'का भी बहुत बड़ा योगदान है, जिसे गुजरात के 36 लाख दूध उत्पादकों ने तैयार किया था। आज एक उद्योग के रूप में डेयरी 8 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। इनमें से ज्यादातर छोटे और मंझोले किसान हैं और काफी संख्या में भूमिहीन भी। यह सेक्टर महिलाओं के लिए भी बहुत बड़ा सेक्टर बन चुका है और एक तरह से वो महत्वपूर्ण रोल अदा कर रही हैं। समाज का हर वर्ग, जाति, धर्म और समुदाय के लोग इससे जुड़े हैं। इन सबके योगदान से आज भारत वैश्विक दूध उत्पादन में 21% का योगदान दे रहा है। (कुछ तस्वीरें प्रतीकात्मक) (इनपुट-एएनआई)