मिलिए ऐसे शख्स से जिसने शास्त्र पढ़ने के बाद समलैंगिकों के अधिकारों की लड़ी लड़ाई
मिलिए ऐसे शख्स से जिसने शास्त्र पढ़ने के बाद समलैंगिकों के अधिकारों की लड़ी लड़ाई शॉर्ट हेडलाइन इस शख्स ने शास्त्र पढ़ने के बाद लड़ी समलैंगिकों के अधिकारों की लड़ाई
नई दिल्ली। समलैंगिकता अब अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। इसी के साथ कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध करार देने वाली आईपीसी की धारा 377 के प्रावधान को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। देश में सभी को समानता का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने फैसले में कहा कि देश में सबको सम्मान से जीने का अधिकार है। समलैंगिक खुशी मना रहे हैं। समलैंगिकों की इस भीड़ में एक नाम ऐसा है, जिन्होंने लंबा संघर्ष किया। अखबारों में काम किया, मैगजीन निकाली, ट्रस्ट बनाए और जरूरत पड़ने पर अदालतों के दरवाजे भी खटखटाए। समलैंगिकों के लिए संघर्ष के लिए धर्म की शिक्षा तक ली और रामकृष्ण मिशन में साधु भी बने। धर्मशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने के बाद अशोक राव निकल पड़े, समलैंगिकों को अधिकार दिलाने के लिए।
अशोक राव कवि उन गिने-चुने लोगों में एक हैं, जिन्होंने समलैंगिकता के बारे में सबसे पहले भारत में बात करना शुरू किया। अगर यूं कहें अशोक राव कवि ऐसे पहले शख्स हैं, जिन्होंने दमदार तरीके से समलैंगिकता के बारे में बात की। देश के कई ताकतवर मीडिया संस्थानों में सीनियर जर्नलिस्ट के तौर पर काम कर चुके अशोक राव कवि का जन्म 1947 में हुआ था। शुरुआत में उन्हें भी समलैंगिक होने के चलते दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अशोक राव कवि का जीवन उस वक्त बदला जब उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज में बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा। वह इस बात को सहन नहीं कर पाए और इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद अशोक राव रामकृष्ण मिशन में एक हिंदू साधू की पहचान के साथ जुड़ गए। रामकृष्ण मिशन में अशोक राव ने धर्मशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने धर्म को बारीकी से समझा, जो कि बाद में उनके बहुत काम भी आया।
रामकृष्ण मिशन में एक संत ने अशोक राव को सच से न भागने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि वह खुद के समलैंगिक होने का सच छिपाएं नहीं, बल्कि खुलकर दुनिया को बताएं। इसके बाद अशोक राव ने रामकृष्ण मिशन आश्रम छोड़ दिया और इंटरनेशनल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म (बर्लिन) में पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण करने के लिए चले गए।
1986 में Savvy मैगजीन ने अशोक राव कवि का इंटरव्यू का छापा, जो कि सुर्खियों में आ गया। बाद में इसी मैगजीन को अशोक राव की मां ने भी इंटरव्यू दिया। उस जमाने में यह सामान्य नहीं था कि कोई मां अपने समलैंगिक बेटे के बारे में खुलकर बात करे। आज भी हमारे समाज में यह इतना आसान नहीं है, लेकिन अशोक राव की मां ने ऐसा किया।
दूसरी
ओर
अशोक
राव
की
पत्रकारिता
समय
के
साथ
निखर
रही
थी।
उन्होंने
करीब
18
साल
तक
जर्नलिज्म
किया।
मलयालम
मनोरम,
इंडियन
एक्सप्रेस,
संडे
मेल,
द
डेली,
फ्री
प्रेस
जर्नल
जैसे
मीडिया
संस्थानों
में
अशोक
राव
महत्वपूर्ण
पद
पर
रहे।
1971
में
अशोक
राव
ने
डेबोनियर
नाम
मैगजीन
की
भारत
में
शुरुआत
की।
इसके
बाद
1990
में
अशोक
राव
ने
'बॉम्बे
दोस्त'
नाम
की
मैगजीन
निकाली।
यह
मैगजीन
सिर्फ
समलैंगिकों
के
लिए
निकाली
गई,
यहां
से
अशोक
राव
गे
लोगों
के
लिए
एक
बड़ी
आवाज
बनना
शुरू
हो
गए।
गे
मैगजीन
निकालने
वाले
अशोक
राव
ने
एक
ट्रस्ट
की
भी
स्थापना
की,
जो
कि
समलैंगिकों
की
मदद
के
लिए
बनाया
गया।
खासतौर
पर
उनके
स्वास्थ्य
संबंधी
परेशानियों
को
दूर
करने
के
लिए
अशोक
राव
ने
'हमसफर'
नाम
से
ट्रस्ट
बनाया।
'हमसफर'
संभवत:
अपनी
तरह
का
पहला
ट्रस्ट
बताया
जाता
है,
जो
कि
सिर्फ
और
सिर्फ
समलैंगिकों
की
मदद
के
लिए
बनाया
गया।