India-China Standoff:कोर कमांडरों की बातचीत में भारत के दो लेफ्टिनेंट जनरल क्यों हुए शामिल
नई दिल्ली- लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी टकराव को लेकर सोमवार को हुई उच्चस्तरीय बातचीत कई मायनों में अनोखी रही। एलएसी पर चीन की ओर मोल्दो कैंप में हुई इस बातचीत में भारत की ओर से दो-दो लेफ्टिनेंट जनरल और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव ने भी शिरकत की है। हालांकि, 13 घंटे से ज्यादा चली बातचीत का भी कोई खास नतीजा नहीं निकला। भारत ने इस बातचीत के लिए सेना और सरकार के इतने बड़े-बड़े अधिकारियों को क्यों लगाया था, इसकी अलग-अलग वजहें हैं, जिसके मूल में चीन की कथनी और करनी में होने वाला अंतर है।
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कोर कमांडर स्तर की मैराथन बातचीत
इस समय लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा की दोनों ओर करीब 1 लाख जवान तैनात हैं। हालात बहुत ही तनावपूर्ण हैं, क्योंकि कुछ जगहों पर दोनों सेनाएं बिल्कुल आमने-सामने हैं। सोमवार को हुई उच्चस्तरीय बातचीत तनाव को इसी स्थिति को कम करने के लिए हुई। यह स्थिति मई की शुरुआत में तब से पैदा हुई है जबसे चीन की सेना के हजारों जवानों ने एलएसी की ओर बढ़ने की कोशिश की है। सोमवार की मैराथन बैठक कोर कमांडर स्तर के अधिकारियों की छठी बैठक थी। सूत्रों के मुताबिक भारत की ओर से इस बातचीत में दो बड़े सैन्य अधिकारियों और भारत सरकार के एक अधिकारी समेत सेना के करीब एक दर्जन अधिकारी शामिल थे। इस बातचीत की रफ्तार बहुत ही धीमी रही, क्योंकि इस तरह की बातचीत में दोनों ओर से कई ट्रांसलेटरों की मदद लेनी पड़ती है।
नए कोर कमांडर के लिए बातचीत से वाकिफ होना जरूरी
भारत के लिए यह बातचीत इसलिए अनोखी कही जा सकती है, क्योंकि इसमें एक साथ सेना के दो लेफ्टिनेंट जनरल शामिल हुए। इनमें से एक लद्दाख स्थित 14वीं कोर के मौजूदा लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह है और दूसरे लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन हैं। दरअसल, अगले महीने हरिंदर सिंह का यहां का कार्यकाल पूरा हो रहा है और उनकी जगह 14वीं कोर की कमान मेनन संभालने वाले हैं। जबकि, चीन की ओर से पीएलए के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई मेजर जनरल लियु लिन कर रहे थे, जो दक्षिणी शिंजियांग मिलिट्री क्षेत्र के कमांडर हैं। जिस तरह से कोर कमांडर स्तर की पांच बातचीत के बावजूद पीएलए ने एलएसी पर अपनी हरकतें बार-बार दोहराई हैं, ऐसे में 14वीं कोर की कमान संभालने जा रहे नए कमांडर के लिए पीएलए के रवैए से पहले से रूबरू रहना जरूरी है। जानकारी के मुताबिक लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन पीएलए के मनोविज्ञान के भी एक्सपर्ट माने जाते हैं और इसलिए उनकी इस समय लद्दाख में तैनाती खास अहमियत रखती है।
चीन की चालबाजी परखने की कोशिश
यही नहीं चीन और भारत के बड़े सैन्य स्तर की बातचीत में इस बार भारत की ओर से कूटनीतिज्ञ की मौजूदगी भी अहम है। इस बैठक में विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव इसलिए शामिल रहे, ताकि इससे पता चल सके कि चीन की कथनी और करनी में कितना अंतर है। क्योंकि, पिछले दिनों में यह कई बार महसूस किया गया है कि कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के दौरान दोनों देशों में जो सहमति बनती है, एलएसी पर और सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत के दौरान पीएलए उससे पलट जाती है। इसके जरिए भारत आगे कूटनीतिक स्तर की बातचीत में चीन को आगाह कर सकेगा कि वह जो बड़ी-बड़ी बातें करता है, उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पीएलए के जरिए अमल करके भी दिखाए। क्योंकि, इस कोर कमांडर स्तर की बातचीत का आधार मास्को में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच 5 सूत्री सहमति है, जिसमें निर्धारित समय-सीमा के तहत डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू किया जाना है।
सेना मोर्चे पर पूरी तरह अलर्ट
वैसे पिछले 7 सितंबर की घटना के बाद से सीमा पर पिछले दो हफ्तों के दौरान चीन की सेना की ओर से किसी तरह के आक्रामक रवैए की सूचना नहीं है। पिछली बार उसने पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे और चुशूल इलाके की ऊंची चोटियों से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने की असफल कोशिश की थी। पैंगोंग लेक के उत्तरी किनारे पर फिंग एरिया में भी उसी तरह तनाव के हालात बने हुए हैं। दोनों सेना कई जगहों पर कुछ सौ मीटर की दूरी पर हैं। इस समय भारतीय सेना 18,000 फीट की ऊंचाई के फॉर्वर्ड पोस्ट तक पर डटी हुई है और उसने पूरी ठंड में डटे रहने की भी तैयारी कर रखी है। सेना पूरी तरह से अलर्ट पर है।