जब चीन को सबक सिखाने के लिए 800 भेड़ें लेकर चीनी दूतावास में घुस गए थे वाजपेयी
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है जो अपने व्यंग्य और तंज से तो विरोधियों को ढेर कर ही देते थे मगर कभी-कभी वह बिना कुछ कहे भी गहरा जख्म उन्हें दे जाते थे। भारत और चीन के बीच जब टकराव जारी है तो वाजपेयी का जिक्र आना लाजिमी है। वाजपेयी की 'चीन नीतियों' को कभी नरम तो कभी गरम करने का श्रेय दिया जाता है तो उस घटना का जिक्र भी होता है जिसमें 800 भेड़ों के जरिए चीन पर बिना बोले हमला किया था। यह एक ऐसा हमला था जिसने चीन को काफी गहरा जख्म दिया था।
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62 के जंग की बाद की घटना
बात सन् 1962 की है और उस समय भारत और चीन के बीच एक युद्ध हो चुका था। इसके बाद सन् 1965 में चीन एक बार फिर से भारत को उलझने के लिए तैयार था। अगस्त-सितंबर के माह में कई आरोपों के बीच ही चीन की तरफ से आरोप लगाया गया था कि भारतीय सैनिकों ने उसकी 800 भेड़ों और 59 याकों को चोरी कर लिया है। चीन यही बहाना सन् 1967 में हुए युद्ध के समय भी प्रयोग किया था। उस समय वाजपेयी की उम्र 62 वर्ष थी और भारत, कश्मीर में पाकिस्तान को जवाब देने में व्यस्त था।
पीएम शास्त्री को लिखी चिट्ठी, जताई नाराजगी
चीन की तरफ से भारत सरकार को चिट्ठी लिखी गई और उस समय प्रधानमंत्री का पद लाल बहादुर शास्त्री के पास थी। वाजपेयी, जो उस समय जनसंघ से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कर चुके थे, उनके एक कदम ने चीन का पारा हाई कर दिया था। वाजपेयी चीन को जवाब देने के लिए 800 भेड़ों के साथ चीनी दूतावास में घुस गए थे। सितंबर के अंत में हुई इस घटना में भेड़ों की गर्दन पर एक प्लेकार्ड था जिस पर लिखा था, 'मुझे खा लो लेकिन दुनिया को बचा लो।' चीन ने एक और चिट्ठी शास्त्री को लिखी और इस बार उसने वाजपेयी के कदम को चीन का 'अपमान' करने वाला कदम बताया ।
भारत ने भी दिया करारा जवाब
चीन ने आरोप लगाया कि शास्त्री सरकार के समर्थन से ही ऐसा किया जा रहा है। चीन के आरोपों के जवाब में भारत सरकार ने भी करारा जवाब दिया। भारत सरकार ने जवाब में कहा, 'दिल्ली के कुछ लोगों ने 800 भेड़ों का जुलूस निकाला। भारत सरकार का इस प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है। यह दिल्ली के लोगों की चीन के अल्टीमेटम और तुच्छ मुद्दों पर भारत के खिलाफ युद्ध की धमकी के खिलाफ नाराजगी की सहज, शांतिपूर्ण और अच्छी हास्य व्यंग्य की अभिव्यक्ति थी।' इस घटना के करीब दो साल बाद चीन एक बार फिर भारत को सबक सिखाने के इरादे से आया था, लेकिन मुंह की खाने के बाद नया सबक लेकर लौटा।
वाजपेयी ने दी संबंधों को नई दिशा
चीन के विशेषज्ञ आज भी मानते हैं कि वाजपेयी, भारत और चीन के रिश्तों को नई दिशा देने वाले अहम शख्स थे। साल 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो चीन काफी नाराज हो गया था। इसके बाद साल 2003 में तत्कालीन चीनी पीएम वेप जियाबाओ भारत की यात्रा पर आए थे। चीन ने भारत की तरफ से हुए न्यूक्लियर टेस्ट्स को खतरा करार दिया था। लेकिन जब जियाबाओ भारत की यात्रा पर आए थे तो वाजपेयी ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रजेंटेटिव्स (एसआर) तंत्र की शुरुआत की थी। इसका मकसद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाना था।