India-China tension:अब 'ताइवान' के हथियार से चीन को चित करने की तैयारी!
नई दिल्ली- भारत ने अब चीन को उसी के हथियार से मात देने की रणनीति अपना ली है। ताइवान को चीन अपना इलाका मानता है। हाल के दिनों में उसने कई बार उसके वायु क्षेत्र में अपने फाइटर जेट भेजकर उसे डराने की कोशिश की है। लेकिन, ताइवान ने साफ संकेत दिए हैं कि वह उसकी इन धमकियों से घबराने वाला नहीं है। ताइवान के मुद्दे पर अबतक भारत सक्रिय रूप से ज्यादा कुछ नहीं बोलता था। लेकिन, भारत ने अब उस रणनीति में ज्यादा आक्रामक धार देने की तैयारी कर ली है। वन-चाइना पॉलिसी के कारण भारत ने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं बनाए हैं। सिर्फ दोनों देशों में उनके प्रतिनिधि तैनात होते रहे हैं। लेकिन, अब भारत ने ताइवान में एक ऐसे प्रतिनिधि को भेजने का फैसला कर लिया है, जो चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी और उसके तानाशाहों को बेचैन कर सकता है। जाहिर है कि ताइवान जैसे कई इलाके हैं, जो चीन के लिए दुखती रग की तरह हैं, लेकिन लगता है कि भारत ने अब उसी के जरिए उसका इलाज करने का तरीका ढूंढ़ निकाला है।
'ताइवान' के हथियार से चीन को चित करने की तैयारी!
भारत के साथ चीन ने लद्दाख में एलएसी के पास जो विश्वासघात किया है, उससे भारत ने बहुत बड़ी सबक सीख ली है। इसलिए अब भारत शायद चीन के खिलाफ उन सभी मोर्चों को खोलने का मन बना चुका है, जिसे अबतक वह वन-चाइना पॉलिस के तहत परहेज करता था। इसकी सबसे बड़ी बानगी द संडे एक्सप्रेस में छपी एक खबर है, जिसके मुताबिक भारत ने विदेश मंत्रालय के मौजूदा ज्वाइंट सेकरेटरी (अमेरिका) गौरंगलाल दास को ताइवान में अपना अपना अगला प्रतिनिधि बनाने का फैसला कर लिया है। इसकी औपचारिक घोषणा किसी भी वक्त में की जा सकती है। ये जानकारी ऐसे समय में आ रही है, जब गलवान घाटी की घटना के बाद सामरिक मामलों के जानकार नई दिल्ली-ताइपेई के संबंधों में और ज्यादा चुस्ती लाने की वकालत कर रहे हैं। यही नहीं यह कदम ऐसे वक्त में भी उठाया जा रहा है, जब ताइवान और साउथ चाइना सी को लेकर अमेरिका-चीन के ताल्लुकात विस्फोटक शक्ल अख्तियार कर रहे हैं।
वन-चाइना पॉलिसी में बदलाव के संकेत
गौरतलब है कि भारत की वन-चाइना पॉलिसी के चलते अबतक ताइवान के साथ कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। वैसे ताइपेई में इसका एक दफ्तर जरूर है, जो राजनयिक गतिविधियों के संचालन के लिए बना हुआ है। लेकिन, यह दूतावास के तौर पर नहीं, बल्कि इंडिया-ताइपेई एसोसिएशन के नाम से काम करता है और गौरंगलाल दास अब इसके डायरेक्टर जनरल बनकर वहां तैनात होने वाले हैं। वो एक और मंजे हुए राजनयिक श्रीधरण मधुसूधन की जगह लेंगे। इसी दौरान ताइवान ने भी अपने अनौपचारिक राजनयिक में बदलाव किया है। उसने ईस्ट एशियन एंड पेसिफिक अफेयर्स के डीजी बौउशुआन गेर की भारत में अपने प्रतिनिधि के तौर पर तैनाती की है। वो भारत में ताइपेई इकोनॉमिक एंड कल्चर सेंटर में सात वर्षों से तैनात चुंग-क्वांग की जगह लेंगे।
चीन की दुखती रग पर हाथ
लद्दाख में जारी तनाव के बीच भारत की नीति में आ रहे बदलाव को महसूस कर चीन को मिर्ची लग चुकी है। शायद यही वजह है कि भारत में उसके राजदूत सुन विडोंग ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा है कि, 'हमें पारस्परिक मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान और समायोजन करने की जरूरत है, ताकि एक-दूसरे के आंतरिक मामलों दखल न देने के सिद्धांतों का पालन हो सके। ' चीन की नजर में कोई भी देश अगर ताइवान, हॉन्ग कॉन्ग, साउथ चाइना सी, तिब्बत और शिंजियांग जैसे मसलों पर सक्रिय कदम उठाता है तो वह उसे पसंद नहीं करता है। भारत ने चीन के मामले में अबतक इसी नीति को अपना रखा था। हालांकि, 2010 में जब चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत आए थे, तब साझा बयान में दोनों ओर से इस नीति के समर्थन का जिक्र नहीं किया गया था।
मोदी सरकार के आने के बाद ही बदलने लगी रणनीति
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ होने के साथ ही भारत ने इस नीति में सक्रिय बदलाव के संकेत देने शुरू कर दिए थे। पीएम मोदी ने अपने पहले ही शपथग्रहण समारोह में भारत में ताइवान के प्रतिनिधि चुंग-क्वांग तिएन और तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रशासनिक प्रमुख या सेंट्रल तिब्बतियन एडमिनिस्ट्रेशन के सिक्योंग (राष्ट्रपति) लोबसांग सांगे को आमंत्रित किया था। भारतीय विदेश मंत्रालय में अमेरिका के मसलों को देखने वाले संयुक्त सचिव को चीन और पाकिस्तान मामलों के विभाग देखने वाले अधिकारियों के साथ ही बहुत अहमियत प्राप्त है। ऐसे में गौरंगलाल दास को यहां के बाद ताइवान के प्रतिनिधि के तौर पर तैनाती के महत्त्व को आसानी से समझा जा सकता है, क्योंकि अमेरिका के लिए ताइवान और साउथ चाइना सी बहुत ही ज्यादा अहम है।
क्यों अहम हैं गौरंगलाल दास की ताइवान में तैनाती ?
गौरंगलाल दास की ताइवान में तैनाती अचनाक नहीं, बल्कि चीन के प्रति भारत की बदली हुई रणनीति के मुताबिक ही हो रही है। क्योंकि, लद्दाख में चीन की नापाक हरकत के करीब एक हफ्ते बाद ही ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन के शपथग्रहण समारोह में 20 मई को भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान वर्चुअल माध्यम से उपस्थित हुए थे। जहां तक दास की बात है तो वे 1999 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं और वो 2001 से 2004 और फिर 2006 से 2009 तक चीन में फर्स्ट सेकरेटरी (पॉलिटिकल) के पद पर भी तैनात रह चुके हैं। वे मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों के कार्यकाल में पीएमओ में विदेश मामलों के डिप्टी सेकरेटरी के पद पर भी तैनात रह चुके हैं। वॉशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास में काउंसलर (पॉलिटिकल) के पद पर तैनात रहते हुए 2017 में पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा में अहम रोल भी निभा चुके हैं, जब वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिले थे। मौजूदा विदेश मंत्री एस जयंशकर के विदेश सचिव रहते हुए वे नई दिल्ली लौटे थे और उन्हें डोकलाम की घटना के बाद चीन पर थिंक टैंक माने जाने वाले सेंटर फॉर कंटेम्पोररी चाइनीज स्टीज के गठन की जिम्मेदारी मिली थी। उनके ज्वाइंट सेकरेटरी (अमेरिका) रहते हुए भारत-अमेरिकी संबंध और बेहतर हुए हैं, जिसमें क्वाड्रिलैटेरल मेकेनिज्म (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की फिर से बहाली भी शामिल है। ये चारों देश आज किसी न किसी रूप में चीन से परेशान हैं।