India-China standoff: जानिए क्या है भारत और चीन के बीच LAC, क्यों रहता है दोनों देशों के बीच तनाव
नई दिल्ली। भारत और चीन के रक्षा और विदेश मंत्रालय के मुताबिक पूर्वी लद्दाख में जारी टकराव को टालने के लिए राजनयिक स्तर पर वार्ता जा रही है। लेकिन जो खबरें आ रही हैं, उसपर अगर यकीन करें तो पूर्वी लद्दाख में स्थिति ठीक नहीं है। जून 2017 के बाद दोनों देशों के बीच तनाव के हालात हैं। इन सबके बीच आज आपके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी वास्तविक रेखा दरअसल क्या है। आइए आज आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
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तीन सेक्टर्स में बंटी भारत-चीन सीमा
भारत का मानना है कि चीन के साथ लगी एलएसी करीब 3,488 किलोमीटर की है, जबकि चीन का कहना है यह बस 2000 किलोमीटर तक ही है। एलएसी दोनों देशों के बीच वह रेखा है जो दोनों देशों की सीमाओं को अलग-अलग करती है। एलएसी तीन सेक्टर्स में बंटी हुई है जिसमें पहला है अरुणाचल प्रदेश से लेकर सिक्किम तक का हिस्सा, मध्य में आता है हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का हिस्सा और पश्चिम सेक्टर में आता है लद्दाख का भाग। दोनों देशों के बीच पूर्वी सेक्टर में मैक्मोहन रेखा है और यहीं पर स्थिति को लेकर विवाद है। भारत और चीन के बीच पूर्वी सेक्टर में जो एलएसी है, वहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी है। लेकिन कुछ हिस्से जैसे लोंग्जू और एसाफिला तक ही यह सीमा है। मध्य क्षेत्र में भी एलएसी को लेकर विवाद है लेकिन संक्षिप्त में बॉर्डर बाराहोटी मैदान तक है।
सन् 1959 में हुआ पहला विवाद
दोनों देशों के बीच पश्चिमी सेक्टर में उस समय बड़ा विवाद हुआ था जब सन् 1959 में चीन के प्रधानमंत्री झोऊ एनलाई और भारत के पीएम जवाहरलाल नेहरु के बीच चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। सन् 1956 में पहली बार दोनों ने इस प्रकार की रेखा का जिक्र हुआ था। उस समय चिट्ठी में झोऊ ने कहा था कि एलएसी पूर्व में मैकमोहन लाइन से लेकर पश्चिम के छोर तक है। इंग्लिश डेली इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस बात की जानकारी पूर्व नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर रहे शिवशंकर मेनन की एक किताब से मिलती है। सन् 1962 में दोनों देशों के बीच जंग हुई और चीन ने दावा किया कि सन् 1959 में वह एलएसी से 20 किलोमीटर पीछे चला गया है। झोऊ ने युद्ध के बाद नेहरु को फिर चिट्ठी लिखी और इस बार लिखा, 'संक्षिप्त में पूर्वी सेक्टर में यह मैकमोहन लाइन से मिलती है और पश्चिम और मध्य सेक्टर में यह पारंपरिक रेखा के साथ मिलती है।' चीन ने बार-बार इस तरफ इशारा किया था।
दोनों देशों ने ठुकराया LAC का तथ्य
डोकलाम विवाद के दौरान चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत से सन् 1959 की एलएसी पर टिके रहने के लिए कहा था। भारत ने सन् 1959 और फिर 1962 दोनों ने ही साल में एलएसी की संकल्पना को मानने से इनकार कर दिया था। यहां तक युद्ध के समय भी नेहरु की तरफ से कहा गया था, 'इस बात का कोई तर्क या फिर कोई मतलब नहीं है कि चीनी 20 किलोमीटर पीछे चले गए हैं और इसे वह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कह रहे हैं। यह 'नियंत्रण रेखा' क्या है? क्या यह रेखा उन्होंने सितंबर की शुरुआत में अपनी आक्रामकता से निर्मित की है?' भारत की तरफ से होने वाले इस विरोध चीन की तरफ से उस लाइन को लेकर था जो कई तरह से गलत थी।
भारत ने सन् 1991 में स्वीकारी LAC की परिभाषा
भारत को सन् 1962 में इस लाइन से फायदा मिलना चाहिए थो। इसलिए आठ सितंबर 1962 को चीनी हमले से पहले इसे वास्तविक स्थिति पर आधारित होना चाहिए था। चीन की तरफ से तय की गई इसकी अस्पष्ट परिभाषा ने इसे चीन के लिए खुला छोड़ दिया। इसके साथ ही चीन की सेना की तरफ से लगातार तथ्यों को बदलने की कोशिशें जारी रखी गईं। भारतीय राजनयिक श्याम शरण की किताब, 'हाऊ इंडिया सीज द वर्ल्ड' के मुताबिक सन् 1991 में तत्कालीन चीनी पीएम ली पेंग भारत दौरे पर आए थे। यहां पर तत्कालीन भारतीय पीएम पीवी नरसिम्हा राव ने ली के साथ एलएसी शांति और स्थिरता बनाए रखने की अहमियत पर जोर दिया था। इसी समय भारत ने औपचारिक तौर पर एलएसी की संकल्ना को स्वीकार कर लिया था।
सन् 1993 में साइन हुआ था LAC पर समझौता
इसके बाद राव सन् 1993 में चीन के दौरे पर गए और यहां पर दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए एक समझौते पर साइन हुए। इस एग्रीमेंट में एलएसी का जो जिक्र था वह एलएसी 1959 या फिर 1962 की एलएसी नहीं थी लेकिन समझौता साइन होने वाली एलएसी से था। कुछ क्षेत्रों में मौजूद मतभेदों को समेटने के लिए, दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि सीमा मुद्दे पर ज्वॉइन्ट वर्किंग ग्रुप अस्तित्व में आएगा। यह ग्रुप एलएसी पर स्थिति को स्पष्ट करेगा। मेनन के मुताबिक भारत और चीन के बीच 80 के दशक के मध्य तेजी से संपर्क बढ़ा था। सन् 1976 में भारत सरकार की तरफ से चाइना स्टडी ग्रुप का गठन किया गया था। इसके बाद गश्ती सीमा, आपसी संपर्कों के नियम और बॉर्डर पर भारत की मौजूदगी के लिए कुछ नियम तय किए गए थे।
LAC की परिभाषा तय करने का अनुरोध खारिज
सन् 1988 में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी चीन के दौरे पर गए थे। इस समय दोनों देशों के बीच समदोरोंगचू में टकराव जारी था। मेनन के मुताबिक दोनों देश एक सीमा समझौते पर राजी हुए थे। साथ ही बॉर्डर पर शांति और स्थिरता को बरकरार रखने पर बात हुई थी। मेनन की मानें तो साल 2002 से ही एलएसी को स्पष्ट करने की प्रक्रिया जारी है। वहीं अभी तक भारत की तररफ से एलएसी की परिभाषा तय करने वाला कोई आधिकारिक नक्शा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है। साल 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर गए थे। इस दौरान उन्होंने चीन से एलएसी की स्पष्ट परिभाषा तय करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन चीन ने उसे मानने से इनकार कर दिया।