1967 में भारत ने 400 चीनी सैनिकों को मार कर लिया था बदला, नहीं भुला पाता है चीन वो जंग
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच उसी गलवान में एक बार फिर टकराव के हालात हैं जो सन् 1962 में हुई जंग का केंद्र बिंदु था। 62 की जंग भारत के इतिहास में एक शर्मनाक किस्से के तौर पर दर्ज है और जिसकी बात करने से ही लोगों का दिल टूट जाता है। इस घटना की शुरुआत तभी हो गई थी जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद चीन, भारत का सीधा पड़ोसी हो गया था। इसके बाद सन् 1967 में फिर से दोनों देश आमने-सामने थे और इस बार भारत की सेना ने चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी को मुहंतोड़ जवाब दिया था। न्यूज एजेंसी एएनआई ने बताया है कि कैसे भारत ने तब चीन को धूल चटा कर 62 की हार का बदला लिया था।
यह भी पढ़ें-NSA डोवाल की चीनी विदेश मंत्री के साथ एक और मीटिंग
चीन ने कर डाला था तिब्बत पर कब्जा
साल 1954 की शुरुआत में चीन ने भारत के खिलाफ आक्रामकता की शुरुआत कर दी थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और झोहू एनलाई के बीच पंचशील सिंद्धात साइन हुआ। इसके साथ ही तिब्बत में चीनी शासन को मंजूरी मिल गई और उस समय दलाई लामा तिब्बत में ही बतौर मुखिया मौजूद थे। इसी समय भारत सरकार की तरफ से स्लोगन दिया गया, 'हिंदी चीनी भाई भाई।' कुछ जर्नलिस्ट्स ने उस समय यह तक लिखा कि भारत ने साल 1950 की शुरुआत में चीनी सेना का समर्थन किया थी और भारत से खाद्यान्न का निर्यात किया गया। उस समय तक तिब्बत से चीन को जोड़ने वाली कोई सड़क नहीं थी या चीन से तिब्बत तक सप्लाई नहीं आ सकती थी। इसके बाद सन् 1959 में चीन ने अक्साई चिन इलाके में पेट्रोलिंग कर रहे 10 भारतीय पुलिसकर्मियों पर फायरिंग की और उनकी मौत के साथ ही चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद तिब्बत को चीन से जोड़ने वाली सड़क का निर्माण किया गया।
62 में अरुणाचल प्रदेश में चीन का कब्जा!
20 अक्टूबर 1962 को चीन की सेना लद्दाख में दाखिल हुई और इसी दौरान नॉर्थ-ईस्ट में मैकमोहन रेखा को पार किया गया। 17 नवंबर को अरुणाचल प्रदेश के सेला पास और बोमदिला में चीन ने हमला कर दिया। सेला पास में आमदिनों में तापमान -20 से कम रहता है और उस वर्ष नवंबर माह में इंडियन आर्मी के सैनिक गर्मियों की यूनिफॉर्म में चीन की सेना को जवाब दे रहे थे। वर्ल्ड वॉर टू के समय के हथियारों के साथ वह चीन के सामने मजबूती से डटे हुए थे। उस समय आर्मी चीफ बीएम कौल थे और उन्हें इसी युद्ध के दौरान हटा दिया गया था। चीन की सेना ने सेला पास तक आ गई थी और 19 नवंबर तक उसने एक तरह से पूरे अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर दिया था। इसी दिन चीन ने एकपक्षीय युद्धविराम का ऐलान तक कर डाला। यह भारत के लिए सबसे बड़ा झटका था।
असम के तेजपुर तक पहुंची चीनी सेना
सेना ने चीन को जवाब देने की तैयारी शुरू कर दी थी। सरकार ने फैसला किया ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे को पूरी तरह से खाली करा लिया जाएगा जिसमें असम का शहर तेजपुर भी शामिल था। चीन ने इसके बाद अपनी सेना को वापस बुलाया और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) की यथास्थिति सात नवंबर 1959 के अनुसार बहाल की गई। 62 के बाद चीन ने एक बार फिर गुस्ताखी की और इस बार उसका निशाना बना सिक्किम का नाथू ला पास। कुछ लोग इसे भारत और चीन के बीच दूसरी जंग तक करार देते हैं। 62 की जंग के बाद 67 में चीन के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया गया था।
चीन को धकेला 20 किलोमीटर पीछे
11 सितंबर 1967 को चीन की पीएलए के सैनिकों ने नाथू ला में इंडियन आर्मी की पोस्ट्स पर हमला कर दिया था। यह जगह तिब्बत से सटी हुई है। भारत ने इसका करारा जवाब दिया और चीन के कई सैनिक मारे गए। 15 सितंबर 1967 को खत्म हुआ। 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद चीन ने भारत को नाथू ला और जेलप पास खाली करने का अल्टीमेटम दिया। चीनी सेना का उस समय इंडियन आर्मी ने 20 किलोमीटर पीछे धकेल दिया था। 15 सितंबर 1967 को भारत ने चीन से अपने सैनिकों के शव ले जाने के लिए कहा।
भारत की सेना ने मारे चीन के 400 सैनिक
करीब 400 चीनी जवान उस समय मारे गए थे और भारत ने नाथू ला बॉर्डर को हासिल करने में सफलता हासिल की। उस समय भारत के बहादुर जनरल सगत सिंह राठौर ने भारत सरकार के उस आदेश को मानने से ही इनकार कर दिया था कि नाथू ला एक प्राकृतिक सीमा है। चीन की सेना की तरफ से अगस्त 1967 में यहां पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था। भारत ने इस निर्माण कार्य को एक वॉर्निंग की तरह लिया और फिर जो हुआ था वह चीन आज तक नहीं भूलता है। भारत ने 62 की जंग में मिली हार का बदला ले लिया था।