भारत-चीन टकराव: क्या है उत्तरी लद्दाख के देपसांग का सच ?
नई दिल्ली- पूर्वी लद्दाख में बीते पांच महीनों से अलग-अलग सेक्टर में चीन के साथ संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। इस दौरान कम से कम तीन ऐसे मौके आए हैं, जब दोनों देशों के जवानों में सीधी भिड़ंत हुई है। 15-16 जून को गलवान घाटी और 29-30 अगस्त और फिर 7 सितंबर को पैंगोंग त्सो (चुशूल सेक्टर) में हालात विस्फोटक हो चुके हैं। लेकिन, अब ऐसी जानकारी सामने आई है कि ऐसी संघर्ष की नौबत उत्तरी लद्दाख के देपसांग सेक्टर में भी आ सकती है, जहां चीन के जवान भारतीय सैनिकों को भारत के इलाके में ही मौजूद पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट पर गश्ती से रोक रहे हैं। यह भी पता चला है कि देपसांग में ये स्थिति पूर्वी लद्दाख में शुरू हुए तनाव से भी पहले से ही बनी हुई है।
क्या है उत्तरी लद्दाख के देपसांग का सच ?
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है कि पिछले मई महीने में पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के उत्तर किनारे में जब चाइनीज सैनिकों ने भारतीय सेना को फिंगर 4 इलाके से वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास फिंगर 8 तक जाने से रोकना शुरू किया था, उससे महीने से भी ज्यादा पहले से ही उत्तरी लद्दाख के देपसांग समतल इलाके के भारत के 5 पारंपरिक पेट्रोलिंग प्वाइंट पर भारतीय सैनिकों को जाने से रोक दिया था। बड़े आधिकारिक सूत्रों की ओर से भी इसकी पुष्टि करते हुए बताया गया है कि चीन ने इस साल मार्च-अप्रैल से ही पेट्रोलिंग प्वाइंट 10,11,11ए,12 और 13 तक पहुंचना बंद कर दिया था। गौरतलब है कि इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा था कि धरती की कोई भी ताकत हमारे जवानों को पेट्रोलिंग करने से रोक नहीं सकती और पेट्रोलिंग पैटर्न में कोई बदलाव नहीं होगा।
पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट क्यों हैं अहम ?
महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट पर चीन की ओर से रुकावटें पैदा की गई हैं वह वास्तविक नियंत्रण रेखा से काफी अंदर भारतीय इलाके में बताया जा रहा है। ये पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट सामरिक दृष्टि से बहुत ही अहम माने जाने वाले सब-सेक्टर नॉर्थ रोड या दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) के पूरब में स्थित है। हालांकि, सरकारी सूत्रों ने यह नहीं बताया है कि जिन इलाकों में भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग में अड़ंगा डाला जा रहा है, वह कितना बड़ा है? लेकिन, अनुमानों के मुताबिक यह करीब 50 वर्ग किलोमीटर किलोमीटर का क्षेत्र हो सकता है। जाहिर है कि अगर वाकई इतने बड़े इलाके में और वह भी रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र में अगर ऐसी स्थिति बनी है तो यह बेहद गंभीर मामला माना जा सकता है। जिस जगह की बात हो रही है वह पूरे देपसांग प्लेन को बाकी इलाके से जोड़ता है और दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड पर स्थित बुर्तसे के लगभग 7 किलोमीटर पूरब है, जहां भारतीय सेना का एक बेस भी है।
'भारतीय सेना पेट्रोलिंग प्वाइंट तक जाने में सक्षम'
सरकारी सूत्रों के मुताबिक पीएलए के जवानों ने भारतीय इलाके के उन पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट पर तंबू नहीं गाड़े हैं, लेकिन जब भी भारतीय जवान वहां पहुंचते हैं तो वो उन्हें रोकने के लिए वहां पहुंच जाते हैं। सूत्रों का कहना है कि भारतीय सेना चाह ले तो अभी भी उन पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक पहुंच सकती है, लेकिन इसकी वजह से एक और 'टकराव' वाली स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि, उस इलाके में तैनात रह चुके सेना के एक पूर्व कमांडर का कहना है कि चीनियों की ओर से भारतीय सेना को रोक पाना संभव नहीं है। यह तभी हो सकता है जब वहां पर वो वाई जंक्शन के पास निगरानी के पुख्ता इंतजाम ना कर ले। वैसे इन मामलों की जानकारी रखने वालों के मुताबिक एलएसी के अंदर पीपी होने का मतलब 'लिमिट्स ऑफ पेट्रोलिंग' से नहीं, बल्कि 'लाइंस ऑफ पेट्रोलिंग' से है। यह इलाके की भौगोलिक स्थित पर निर्भर करता है कि उन्हीं पेट्रोलिंग प्वाइंट्स के बीच पेट्रोलिंग के लिए अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं, जो इलाके में मौजूद कमांडर तय करते हैं।
2013 में चीन ने गाड़ लिए थे तंबू
वैसे देपसांग-प्लेन के जिस इलाके में चीन की ओर से महीनों से रुकावटें खड़ी की जा रही हैं, वह काराकोरम दर्रे के भी पास है। यह वही इलाका है जहां 2013 में पीएलए ने करीब 25 दिनों तक अपने कई तंबू डाल दिए थे, जिसके चलते संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी। बाद में चीनियों को अपने तंबू उखाड़कर जाना पड़ा था। यह जगह चर्चित दौलत बेग ओल्डी से भी करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है। दरअसल, वहां पर जो एक वाई-जंक्शन बनता है और उसी से सटे दो नालों जीवन नाला और रकी नाला के बीच ये पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट मौजूद हैं, जिसपर चीन की ओर से दादागीरी करने की खबरें आ रही हैं।
दौलत बेग ओल्डी में फिर शुरू थी हुई हवाई पट्टी
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि देपसांग-प्लेन में 2013 में चीन के साथ बने तनाव के हालात के बाद ही भारतीय वायुसेना ने दौलत बेग ओल्डी में वर्षों से बंद पड़ी अपनी हवाई पट्टी को फिर से शुरू किया था। तब एयरफोर्स ने मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस को वहां पर उतार कर दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी होने का गौरव हासिल किया था। इसे वैसे तो 62 की जंग में भी बनाया गया था, लेकिन कुछ वर्ष बाद आए भयानक भूकंप में यह तबाह हो गई थी। यहां एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर तो लैंड कर जाते थे, लेकिन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की लैंडिंग नहीं करवाई जाती थी। अप्रैल,2013 में शुरू हुए तनाव के 4 महीने के भीतर ही सामरिक दृष्टिकोण से अहम इस हवाई पट्टी को फिर से सेना के इस्तेमाल के लिए तैयार कर लिया गया।
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