India-China: उत्तराखंड में चीन बॉर्डर पर आखिरी गांव तक जाने वाली सड़क पर काम शुरू, BRO के लिए हेलीकॉप्टर से पहुंची मशीनरी
पिथौरागढ़। भारत और चीन के बीच लद्दाख में टकराव जारी है और इस टकराव के बीच ही बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने उत्तराखंड में चीनी बॉर्डर के करीब हलचलें तेज कर दी है। बीआरओ अब उत्तराखंड में उस सड़क के काम को पूरा करने के लिए तैयार हो चुका है जो भारत-चीन बॉर्डर के करीब है और रणनीतिक तौर पर भारत के लिए काफी अहमियत रखती है। एक अधिकारी की तरफ से इस बात की पुष्टि की गई है।
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कई मुश्किलों के बाद लैंड हुए हेलीकॉप्टर
पिछले दिनों भारी उपकरणों से लदे हेलीकॉप्टर्स ने उत्तराखंड की जोहर घाटी में लैंडिंग की है। इन हेलीकॉप्टर्स में हिमालय के मुश्किल रास्तों पर मुनिस्यारी-बुगदियार-मिलाम पर पड़ने वाली सड़क के निर्माण का सामान था। साल 2019 में कई असफल प्रयासों के बाद बीआरओ को हाल ही में हेलीकॉप्टर्स की मदद से लास्पा तक भारी मशीनरी पहुंचाने में सफलता मिली है। इस सफलता के बाद अब सड़क निर्माण का काम तेजी से पूरा होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। बीआरओ के चीफ इंजीनियर बिमल गोस्वामी की तरफ से इस बात की जानकारी दी गई है।
आखिरी पोस्ट जुड़ेगी बाकी राज्य से
लाप्सा में भारी पत्थरों को काटने के लिए उपकरण की जरूरत थी। इसकी वजह से 65 किलोमीटर लंबी इस सड़क के निर्माण कार्य में देरी आ रही थी। मुन्स्यिारी-बोगदियार-मिलाम रोड का निर्माण जोहर घाटी में हिमालय की ऊंचाई वाली जगह पर हो रहा है। यह जगह पिथौरागढ़ जिले में पड़ती है। यह सड़क भारत-चीन बॉर्डर पर स्थित आखिरी पोस्ट को राज्य के बाकी हिस्सों से जोड़ सकेगी। गोस्वामी ने बताया कि अब जबकि भारी उपकरणों से लदे हेलीकॉप्टर्स यहां पर लैंड हो चुके हैं तो उम्मीद है कि चुनौतीपूर्ण मोड़ पर कटिंग वर्क को आसानी से पूरा किया जाएगा।
साल 2010 में शुरू हुआ था काम
उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष पत्थरों को काटने के काफी प्रयास किए गए थे। सड़क के 22 किलोमीटर तक के रास्ते पर मुश्किल पहाड़ हैं। अब इन्हें भारी मशीनोंकी मदद से काट पाना संभव होगा। हेलीकॉप्टरों की मदद से इन मशीनों को जगह तक ले जाया जाएगा। इस सड़क का निर्माण कार्य साल 2010 में शुरू हुआ था। इसके निर्माण के लिए 325 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। बिमल गोस्वामी, बीआरओ के चीफ इंजीनियर हैं। उन्होंने जानकारी दी है कि सड़क को दोनों किनारों से निर्मित किया जा रहा है। 22 किलोमीटर को छोड़कर, 40 किलोमीटर के रास्ते पर कटिंग वर्क पूरा हो चुका है।
62 की जंग के बाद से बंद बॉर्डर
चीन सीमा पर मिलाम भारत का आखिरी गांव है जो उत्तराखंड में चीनी सीमा पर है। गांव में अब कोई नहीं रहता है और यह जगह मुनिस्यारी से 80 किलोमीटर दूर है। इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) यहां पर बॉर्डर की सुरक्षा के लिए तैनात रहती है। यहां पर तैनात सैनिकों को जरूरी सामान की सप्लाई के लिए काफी मुश्किलें आती हैं। मिलाम, पिथौरागढ़ जिले की जौहर घाटी का आखिरी गांव है और यहां से चीन की सीमा कुछ किलोमीटर दूर है। मिलाम जिस रास्ते पर पड़ता है, वह रास्ता तिब्बत के ग्यानिमा मंडी तक जाता है। सन् 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद से ही यहां पर बॉर्डर बंद है। मिलाम को अब भूतिया गांव भी कहते हैं क्योंकि यहां कोई नहीं रहता है। 62 में हुई जंग से पहले यहां पर 500 परिवार रहते थे और यह एक ट्रेड सेंटर था।
लद्दाख में भी सड़क की वजह से है तनाव
भारत और चीन के बीच पिछले करीब सात साल में जो भी विवाद हुए हैं उनमें बॉर्डर पर होने वाले निर्माण कार्यों ने बड़ी भूमिका अदा की है। इस बार भी तनाव की बड़ी वजह एक सड़क का निर्माण कार्य है। भारत और चीन के बीच दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में तैयार हो रही सड़क चीन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है। इस रोड को सब सेक्टर नॉर्थ रोड भी कहा जाता है। चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के एकदम करीब इस सड़क के जरिए लद्दाख की राजधानी लेह, दक्षिण में स्थित दारबुक और श्योक गांव से हर पल जुड़ी रहती है। दारबुक गांव, चीन बॉर्डर का आखिरी गांव है और 14,000 फीट की ऊंचाई पर है और जिस सड़क पर काम हो रहा है वह 225 किलोमीटर लंबी है।