चीन कुछ भी कर ले भूटान भारत के साथ ही रहेगा, ड्रैगन से लड़ने के लिए दोनों की केमिस्ट्री है खास
नई दिल्ली। हाल ही में एक खबर ने सबका ध्यान खींचा कि चीन ने भूटान (Bhutan) के कुछ गांवों में अतिक्रमण कर लिया है। हलांकि भूटान ने इस बात का खंडन किया है, लेकिन भूटान में चीन के दखल की ये कोशिश नई नहीं है। 2017 में भारत-भूटान और चीन सीमा पर स्थित डोकलाम में लंबा गतिरोध चला था। यहां तक कि भारत और चीन की सीमाएं भी आमने-सामने आ गई थीं। चीन की हमेशा कोशिश रही है कि भूटान भारत से अपने संबंध कमजोर करे। इसके लिए बीजिंग भूटान को डराने की कोशिश भी करता है लेकिन जब भी भूटान को धमकाने या डराने की कोशिश की गई है भारत हमेशा उसके साथ खड़ा होता है। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों भारत और भूटान के रिश्ते इतने खास हैं ?
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चीन और भारत के साथ मिलती है सीमा
भारत से रिश्ते समझने के पहले एक नजर भूटान पर डालते हैं। 38394 वर्ग किलोमीटर के दायरे फैला हुआ हिमालय की गोद में बसा एक लैंड लाक्ड कंट्री है। इसके उत्तर में तिब्बत है जो जिस पर चीन ने ताकत के बल पर कब्जा कर लिया है और इसे तिब्बत द ऑटोनामस रीजन ऑफ चाईना के नाम से जाना जाता है। इस समय दुनियाभर में तिब्बती फ्री तिब्बत का मूवमेंट भी चला रहे हैं उस पर चर्चा फिर कभी। भूटान के उत्तर में तिब्बत के साथ ही इस देश की सीमाएं भारत के सिक्किम, असम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश से मिलती हैं।
7.5 लाख की छोटी सी आबादी वाले देश भूटान में 7 से 9वी शताब्दी के बीच बौद्धिज्म का प्रवेश हुआ और वर्तमान में भूटान में लगभग 75 प्रतिशत बौद्ध 22 प्रतिशत हिंदू औऱ अन्य धर्मों के लोग रहते हैं।
2008 से पहले भूटान में राजशाही थी लेकिन 2008 में भूटान लोकतांत्रिक व्यव्स्था चल रही है। हालांकि डेमोक्रेटिक कंट्री भूटान में आज भी राजा का दर्जा इश्वरीय ही है। भूटान दुनिया के उन चुनिंदा देशों में है जहां राजशाही का खात्मा बिना किसी रक्तपात के हो गया यानि कि राजा की सहमति से वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था लायी गई।
भूटान की अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान
बात करें भूटान की ईकॉनमी की तो वर्ल्ड बैंक के अनुसार भूटान एक lower-middle income country है जिसने पिछले 2 दशक में अपने देश से गरीबी को दो-तिहाई तक कम किया है। इस देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से जल विद्युत और टूरिज्म पर बेस्ड है। यहां के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत हाईड्रोपॉवर का है जो कि 20 प्रतिशत के साथ भूटान की सरकार का सबसे बड़ा रेवेन्यू का सोर्स भी है।
भूटान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है। भूटान के आयात और निर्यात का लगभग 80 प्रतिशत भारत से ही है। 1972 के India-Bhutan Trade and Transit Agreement से दोनों देश आपसी व्यापार करते हैं और दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता भी है। भूटान की करंसी निगुल्ट्रम और भारतीय रुपये की एकस्चेंज वैल्यू भी एक समान ही रहती है। भारत ने भूटान में 1500 मेगावाट के ज्यादातर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण में मदद की है जिनसे भारत को बिजली निर्यात होती है। इसके साथ ही 2009 में 10 हजार मेगावाट के जलविद्युत के विकास में सहयोग देने और भूटान भारत को अतिरिक्त विद्युत का निर्यात करने पर सहमत हुआ था।
भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग किया है और ये परियोजनाएँ चालू अवस्था में हैं तथा भारत को विद्युत निर्यात कर रही हैं। 2018 में दोनों देशों के बीच कुल 9227.7 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। इसी साल जईगांव-फुंत्सोलिंग से एक नया व्यापारिक मार्ग बना है।
भारत के लिए भूटान का सामरिक महत्व
भारत- भूटान आर्थिक भागीदारी से समझ गये होंगे कि भारत-भूटान के संबंध कैसे हैं। लेकिन भूटान के साथ भारत की 605 किलोमीटर की सीमा के कारण आर्थिक रूप से अल्प विकसित राष्ट्र होने के बावजूद भूटान का भारत के लिए सामरिक महत्व सबसे ज्यादा है। विशेष रूप से भारत के ‘चिकिन नेक कोरिडोर' में इसकी स्थिति के चलते काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा चीन के साथ विवादित सीमा भी भूटान के भू सामरिक महत्व को और भी बढ़ा देती है।
भारत के लिए भूटान के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि भारत में एक अनौपचारिक प्रथा है कि भारतीय प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव, सेना और रॉ प्रमुख की पहली विदेश यात्रा भूटान ही होती है। चीन के संदर्भ में भूटान का महत्व कुछ इस तरह है कि अगर चीन भूटान में अपनी पैंठ बना ले तो वो भारत की सरहद के और क़रीब आ जाएगा। भारत-भूटान और चीन के बीच कुछ जगहें ऐसी हैं, जहाँ अगर चीन पहुँच जाए तो चिकन-नेक तक पहुँच जाएगा।
1949 में भारत और भूटान ने फ्रेंडशिप समझौता किया था जिसने भारत को भूटान की सुरक्षा और विदेश मामलों में सर्वोच्च अधिकार दिये थे। जिसके मुताबिक भूटान हर तरह के विदेशी मामलों में भारत को सूचित करेगा। 2007 में इस समझौते में थोड़ा संशोधन करके ये कहा गया कि ऐसे मामले जिनमें भारत सीधे जुड़ा होगा उसमें ही सूचित किया जाएगा। इस संशोधन का भारत-भूटान संबंधों पर कोई भी असर नहीं पड़ा क्योंकि अभी-भी भूटान के लिए भारत ही सर्वोपरि है और इस संशोधन पर भारत पूरी तरह से राजी हुआ था।
भूटान और चीन के बीच संबंध
चीन के साथ भूटान की 470 किलोमीटर की सीमा मिलती है जिसका सामरिक महत्व बहुत ज्यादा है। यही वजह है कि चीन के लिए भूटना प्राथमिकता में रहा है। वहीं चीन, भारत और भूटान के बीच अच्छे संबंधों को लेकर हमेशा चिंतित रहा है और इसे कमजोर करने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहता। लेकिन चीन की लाख कोशिशों के बाद भी तिब्बत उसके करीब नहीं आ पाया। यहां तक कि आज भी चीन से उसके कूटनीतिक संबंध नहीं है। हालांकि भारत में नियुक्त चीनी राजदूत के जरिए दोनों देश संपर्क में बने हुए हैं। चीन और भूटान में इस दूरी के आने की वजह तिब्बत है।
कभी भूटान और तिब्बत के गहरे संबंध थे। इसकी वजह सीमा लगी होने के साथ ही दोनों का बौद्ध धर्म से गहरा जुड़ाव रहा। तिब्बत और भूटान दोनों का संबंध बौद्ध धर्म की महायान पीठ से है। लेकिन 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला कर कब्जा कर लिया तो भूटान ने चीन के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह बंद कर दिए और उसने अपना रुख भारत की ओर कर लिया।
विशेषज्ञ कहते हैं कि 1949 की भारत-भूटान संधि ने ही भूटान को चीनी अतिक्रमण से बचाया है। भूटान 1949 के भारत-भूटान समझौते के आर्टिकल 2 का हवाला देकर कहता है हमारे विदेशी मामलों में भारत भी शामिल है। इसलिए वो भी एक पक्ष होगा। हालांकि 1984 में भूटान-चीन सीमा सम्बन्धी वार्ता की शुरुआत के व्यवस्थित तरीके से हो पायी और दिसम्बर 1998 को बीजिंग में सीमा वार्ता के 12वें दौर के समय ही शांति बनाए रखने और सीमा क्षेत्र पर भूटान और चीन के मध्य समझौते पर हस्ताक्षर हुए। बावजूद इसके 2017 में चीन ने डोकलाम क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू कर दिया जिसके चलते भारत को भी इसमें उतरना पड़ा और तब चीन को पीछे हटना पड़ा था।
चीन लगाता रहा है भूटान में हस्तक्षेप का आरोप
चीन लगातार भारत पर आरोप लगाता रहा है कि भारत अपने हितों को साधने के लिए भूटान का इस्तेमाल कर रहा है। जब भारत और चीन डोकलाम में आमने-सामने थे तब चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर अनावश्यक रूप से भूटान के मामले में हस्तक्षेप का आरोप लगाया। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत ने बेवजह इस मामले में टांग अड़ाई है। अतीत में भूटान और चीन के बीच कई घटनाएं हुईं जिसका समाधान भूटान रायल आर्मी और चीनी सेना के बीच होता रहा। इसमें कभी भी भारत की जरूरत नहीं पड़ी।"
इस बयान से जाहिर है कि चीन को भारत के हस्तक्षेप से बड़ी तकलीफ हुई थी। चीनी अखबार ने ने भूटान को भड़काने के लिए लिखा था कि 'भारत भूटान की सेना को फंड और अन्य सहायता उपलब्ध कराता है लेकिन भारत ऐसा भूटान की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि खुद को सुरक्षित करने के लिए करता है। यह भारत का चीन विरोधी सामरिक योजना का हिस्सा है।"
भारत
को
बदलनी
होगी
भूमिका
कूटनीतिक
संबंध
शुरू
कर
पाने
में
असफल
चीन
अब
संस्कृति
और
पर्यटन
जैसी
सॉफ्ट
पावर
की
कूटनीति
का
प्रयोग
कर
रहा
है।
चीन-भूटान
व्यापार
भी
भारत
के
मुकाबले
नगण्य
हैं।
चीन
से
भूटान
को
केवल
161
करोड़
रुपये
और
भूटान
से
चीन
को
केवल
14.6
लाख
रुपये
का
निर्यात
होता
है
लेकिन
भूटान
में
होने
वाले
वस्तु
आयात
में
एक
तिहाई
हिस्सा
चीनी
उपभोक्ता
वस्तु
आयात
का
है।
हालांकि
यह
कोई
बड़ा
व्यापार
नहीं
है
लेकिन
चीन
भूटान
के
साथ
व्यापार
के
मामले
में
पांव
जमाने
की
कोशिश
कर
रहा
है।
72 दिन के डोकलाम संघर्ष के दौरान भूटान भले ही भारत के साथ रहा है लेकिन भूटान में बढ़ते भारतीय कर्ज को लेकर आवाज उठ रही हैं। भूटान विदेशी सहायता पर निर्भरता खत्म कर खुद को आत्मनिर्भर बनाना चाह चाह रहा है। भूटान ने अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए इसे प्रमुख लक्ष्य बनाया है। ऐसे में भारत अपनी भूमिका बदलकर भूटान में सबसे बड़े साझेदार की जगह सबसे बड़ा निवेशक बनकर भूटान को आत्मनिर्भर बनने में मदद कर सकता है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए भी भारत, भूटान को 4500 करोड़ रुपये मदद की थी
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