हौसलों की उड़ान: एक ऐसी फिल्म जो बदल देगी दुनिया के 15% स्पेशल लोगों के बारे में आपका नजरिया
नई दिल्ली- जल्द ही हिंदी में एक शॉर्ट फिल्म आने वाली है जो 90 फीसदी दिव्यांग शख्स की विशेष योग्यता और क्षमता पर आधारित है। 'हौसलों की उड़ान' की सबसे खास बात ये है कि इस फिल्म का हीरो कोई पेशेवर कलाकार नहीं है, बल्कि खुद वो इंसान है, जिसने विकलांगों या दिव्यांगों की योग्यता और शारीरिक क्षमताओं को लेकर उठने वाले हर सवालों का जवाब अपनी काबिलियत, सकारात्मक सोच और जीवन को खुश मिजाजी के साथ जीने की ललक के दम पर दिया है। आज दुनिया में उनकी पहचान एक व्हीलचेयर वॉरियर, हैप्पीनेस कोच, मोटिवेशनल स्पीकर, इंटरनेशनल ग्राफिक्स डिजाइनर और लाखों फैन फॉलोअर वाले शख्सियत के रूप में होती है।
'हौसलों की उड़ान' अंग्रेजी में बनी फिल्म INCREDIBLE INSIGHT: The Story of His Ability का हिंदी वर्जन है। दिव्यांगों पर बनी इस फिल्म में उनकी विकलांगता से जुड़ी मजबूरियों के चर्चे नहीं हैं, उनकी योग्यता और क्षमता के साथ ही जिंदगी को नए अंदाज में जीना दिखाया गया है। यह फिल्म 90% दिव्यांग व्यक्ति के जीवन की चुनौतियों और उसे मात देकर सफलताओं की ऊंची छलांग लगाने वाले व्हीलचेयर वॉरियर डॉक्टर साई कौस्तुव दासगुप्ता के जीवन पर आधारित है, जो इस फिल्म के अभिनेता भी हैं और इसका डायरेक्शन भी उनके ही छोटे भाई डॉक्टर कुशल दासगुप्ता ने किया है। डॉक्टर साई हड्डियों की एक अजीब बीमारी (Brittle Bone Disease) से पीड़ित हैं, जिसमें उनकी हड्डियां बचपन से टूटती रही हैं। अब तक उनके शरीर की 50 से ज्यादा हड्डियां टूट चुकी हैं। वह प्राकृतिक तौर ना के बराबर सुन पाते हैं और इनकी पूरी जिंदगी एक तरह से इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर से उलझी हुई है।
बावजूद इसके इन्होंने अपनी जिंदगी में जो सफलता पाई है, वह दुनिया के 15% दिव्यांगों को प्रेरित कर सकती हैं। इस फिल्म का मकसद भी यही है कि ऐसे विशेष जन खुद को विकलांग ना मानकर विशेष योग्यता वाले इंसान समझें। डॉक्टर साई कौस्तुव दासगुप्ता आज सिर्फ बांयीं हाथ की एक उंगली के सहारे वर्चुअल टाइपिंग करते हैं और खुद को अंतरराष्ट्रीय ग्राफिक डिजाइनर का रुतबा दिला चुके हैं। विश्व ने इन्हें डिसेबल्ड लीडरशिप क्षमता के लिए चौथे ग्लोबल आइकन के रूप में सम्मानित किया है। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त दासगुप्ता अपनी मोटिवेशनल स्पीच और प्रभावी मुस्कान के जरिए दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित कर चुके हैं। यह एक हैप्पीनेस कोच भी हैं। डॉ. साई कौस्तुव ने वनइंडिया से खास बातचीत में कहा है "सफलता का मेरा मंत्र बहुत सिंपल है। जिंदगी बहुत छोटी है इसलिए इसके हर पल को पूरी तरह आनंद के साथ जियो। खुद को प्रेरित करें, आप जैसे हैं, खुद को वैसे ही स्वीकारें। आभार व्यक्त करने में ही असली खुशी है, इसलिए सबके प्रति आभारी रहें।"
'हौसलों की उड़ान' में इस बात का संदेश दिया गया है कि अगर इंसान ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है। क्योंकि, यह आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव पुट्टापार्थी से आने वाले एक ऐसे शख्स की कहानी है जिसे हड्डियों की दुर्बलता के चलते जिंदगी के 6 साल छोटे से कमरे की छोटी सी चारपाई पर गुजार देने पड़े थे। लेकिन, आज वह दुनिया की 117 करोड़ से ज्यादा आबादी (विश्व की कुल जनसंख्या करीब 780 करोड़ से ज्यादा) के लिए आदर्श बन चुका है। इस फिल्म में दिव्यांगों के अधिकारों, उनको लेकर जागरुकता और उनकी आवश्यकताओं की भी बात की गई है। खुद डॉक्टर साई कौस्तुव दासगुप्ता कहते हैं कि इस क्षेत्र में भारत सरकार काफी अच्छा काम कर रही है और खासकर मेट्रो शहरों में बदलाव नजर आ भी रहा है। लेकिन, दूर-दराज इलाकों में अभी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।
इस फिल्म के अंग्रेजी वर्जन का रेड कार्पेट डॉक्टर साई के गांव पुट्टापार्थी में ही हुआ है, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते हैं। 27 सितंबर, 2020 को कनाडा की सीपीसी टीवी ने इस शॉर्ट फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर किया। इस फिल्म के डायरेक्टर डॉक्टर कुशल आंध्र के एक युवा फिल्ममेकर हैं और जिनके पास एक गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। उन्होंने कहा है कि यह फिल्म लंदन से बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड के अलावा लॉस एंजेलिस के इंडिपेंडेंट शॉर्ट्स अवॉर्ड और पुर्तगाल के अवॉर्ड समेत कई वैश्विक फिल्म पुरस्कारों के लिए चुनी गई है। उनका कहना है कि दिव्यांगों पर तो कई फिल्में बनती रही हैं, लेकिन इसका मुख्य किरदार ही खुद ऐसे समुदाय का हिस्सा है, इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। जब भारत में इसकी हिंदी रिलीज की बहुत डिमांड हुई तब इसके हिंदी में लॉन्च करने का फैसला किया गया, ताकि देश भर के लोग हिंदी में इससे प्रेरणा ले सकें।
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