यूपी में दंगों के 'बुलडोजर' ने ढहाया गैर भाजपाई दलों का किला
लखनऊ। लोकसभा चुनाव की 'आधी' ने कई दिग्गजों के किलों को तहस-नहस कर के रख दिया। दंगों ने न केवल छोटे चौधरी के नाम से ख्यात अजित सिंह की विरासत की सियासत को ढहा दिया। वरन नरेंद्र मोदी की आंधी में उनका जाटलैंड किला भी ध्वस्त हो गया। वे खुद को ही नहीं बल्कि बेटे जयंत को भी मथुरा में नहीं बचा पाए। जाहिर है केंद्रीय मंत्री रहते हुए हुई उनकी यह हार उन्हें लंबे समय तक सालेगी।
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नतीजों के शुरुआती आकलन से पता चलता है कि रालोद मुखिया अजित सिंह को मुस्लिमों ने ठेंगा दिखाया, तो जाट युवा भी मोदी लहर के साथ चले गए। यहां तक कि अजित जाटों के गढ़ छपरौली विधानसभा क्षेत्र में भी हार गए। पिछले साल मुजफ्फरनगर दंगे की आंच ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ऐसे झुलसाया, इसकी तपिश कई महीनों तक रही। इसका असर कई अवसरों और लोकसभा चुनाव में भी देखा गया।
भारी पड़ी दंगों पर चुप्पी-
मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान रालोद मुखिया की चुप्पी ने जाटों को नाराज किया तो बिगड़े जाट-मुसलमान समीकरण के चलते चौधरी साहब का जनाधार खिसका। शायद तभी से दोनों तबकों ने छोटे चौधरी को सबक सिखाने का मन बना लिया था। हालांकि रालोद मुखिया जाट युवाओं की गैर मौजूदगी और मुसलमानों की कम उपस्थिति से चिंतित रहते थे और वह अपनी चुनावी सभाओं में इसका जिक्र भी करते थे।
लेकिन इस नाराजगी को दूर करने के लिए वह कुछ कर नहीं पाए। चुनाव के ऐन पहले रालोद मुखिया ने जाट आरक्षण का भी दांव खेला लेकिन उसका भी फायदा चुनाव में देखने को नहीं मिला। इसी का नतीजा रहा कि नरेंद्र मोदी की लहर में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को जाटों व अन्य जातियों ने भरपूर वोट देकर अजित सिंह को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।
बसपा, मनसे जैसे दिग्गज जो जनता और मीडिया के साथ हनक से पेश आते थे, एक भी सीट अपने खाते में नहीं पहुंचा पाए। निर्णायक रहे इस ऐतिहासिक चुनाव के आंकड़े भी अप्रत्याशित रहे। इसी तरह मुलायम सिंह के गृह जनपद इटावा में भी भाजपा के अशोक देाहरे ने जीत दर्ज सप को दोहरा झटका दिया है।