पिछले 5-6 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के 5 बड़े फैसलों ने जमकर कराई कांग्रेस की फजीहत
बेंगलुरू। पिछले 5-6 सालों में एक के बाद एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ गए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने 100 वर्ष अधिक पुरानी पार्टी की जमकर फजीहत हुई है, जिससे पार्टी की राजनीतिक हैसियत और साख दोनों पर जबर्दस्त बट्टा लगा है। शुरूआत सुशांत सिंह राजपूत मुद्दे से करें तो महाराष्ट्र की साझा सरकार में शामिल कांग्रेस लगातार सुशांत सिंह राजपूत केस में चुप्पी बनाए रखने से उसकी छवि दागदार हुई है।
जानिए,
कांग्रेस
अध्यक्ष
रह
चुके
उन
नेताओं
की
एक
पूरी
फेहरिस्त,
जो
गांधी
परिवार
से
नहीं
थे
सुशांत केस में कांग्रेस फिर पब्लिक सेंटीमेंट समझने में नाकाम साबित हुई
सुशांत के परिवार के साथ-साथ पूरा देश मामले की सीबीआई जांच मांग लगातार करता रहा, लेकिन महाराष्ट्र की साझा सरकार ने सीबीआई जांच से इनकार कर दिया। कह सकते हैं कि एक बार फिर कांग्रेस पब्लिक सेंटीमेंट समझने में नाकाम साबित हुई और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कांग्नेस ने जनभावना की कद्र नहीं करते हुए मनमाने फैसले लेकर उसे कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सुशांत सिंह राजपूत केस महाराष्ट्र सरकार के गले की फांस बन गई
सुशांत सिंह राजपूत के पिता केके सिंह द्वारा बिहार में मामले में एक प्राथमिकी दर्ज करवाने के बाद केस की सीबीआई जांच की सिफारिश से इनकार करके लोगों के आक्रोश का सामना कर रही महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका लगा था, क्योंकि पटना पुलिस मामले की जांच के लिए मुंबई पहुंच गई थी। महाराष्ट्र सरकार यहां भी नहीं संभली और उसने पटना के जांचकर्ता आईपीएस अधिकारी विनय शर्मा को जांच से दूर रखने के लिए 14 दिनों के लिए क्वॉरेंटीन कर दिया।
जांच को लेकर महाराष्ट्र सरकार और बिहार सरकार आमने-सामने आ गई
मामला तूल पकड़ गया और महाराष्ट्र सरकार और बिहार सरकार आमने-सामने आ गई। महाराष्ट्र की साझा सरकार अपनी फजीहत छुपाने और मामले की सीबीआई जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद महाराष्ट्र की साझा सरकार के खिलाफ फैसला देते हुए मामले की जांच को सीबीआई से कराने का रास्ता साफ कर दिया। महाराष्ट्र की साझा सरकार में शामिल तीनों दल, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, चारो खाने चित्त हो गई और जो फजीहत हुई, वह अलग ही है।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सुशांत सिंह केस जांच करने की मंजूरी दी
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ऋषिकेश रॉय की एकलपीठ ने फैसले में लिखा कि आम लोगों का सरकारी जांच एजेंसी पर भरोसा कायम रखने के लिए ही कोई मामला सीबीआई या अन्य किसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपा जाता है। कोर्ट ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी मामले में दिए अपने फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि जांच एजेंसी तय करने का अधिकार आरोपी को नहीं दिया जा सकता।
पहली बार एकलपीठ ने संविधान के अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल किया
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार मिलता है कि वह संपूर्ण न्याय के लिए कोई भी आदेश पारित कर सकता है। जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने अपने फैसले में कहा कि जांच पर भरोसा कायम रखने और संपूर्ण न्याय को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल जरूरी था। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की उस आपत्ति को नकार दिया कि एकलपीठ इस विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती। सिंघवी ने कहा था कि अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कम से कम दो जजों की पीठ ही कर सकती है।
महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब चुनौती भी नहीं दे पाएगी
महाराष्ट्र सरकार लगातार इस मामले में सीबीआई जांच का विरोध कर रही थी। उसका कहना था कि मामला मुंबई पुलिस के पास रहने दिया जाए। राज्य सरकार ने जांच सीबीआई को सौंपने के फैसले को चुनौती देने के लिए छूट मांगी, सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया। इसके चलते अब महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनौती भी नहीं दे पाएगी।
2- SC में चीन के साथ एमओयू साइन मामले में हुई कांग्रेस की बड़ी फजीहत
देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही चीन के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर मामले पर कांग्रेस पर तल्ख टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चीन के साथ कोई राजनीतिक पार्टी किसी 'एमओयू' पर हस्ताक्षर कैसे कर सकती है? प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि किसी विदेशी सरकार ने एक राजनीतिक पार्टी के साथ कोई करार किया हो, यह बात उसने कभी नहीं सुनी.
कांग्रेस और चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुआ था समझौता
कांग्रेस और चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच बीजिंग में सात अगस्त 2008 को हुए समझौते को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया था और कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पहले हाई कोर्ट जाने को कहा था। चीन के साथ विवाद के बीच कांग्रेस पार्टी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए समझौते की बात सामने आई थी. इसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला था.
एक राजनीतिक दल कैसे चीन के साथ समझौते में शामिल हो सकता है?
याचिकी की सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि कुछ चीज़ें कानून में बिल्कुल अलग हैं। एक राजनीतिक दल कैसे चीन के साथ समझौते में शामिल हो सकता है? हमने कभी नहीं सुना कि किसी सरकार और दूसरे देश की राजनीतिक पार्टी में समझौता हो रहा हो। कांग्रेस के वकील महेश जेठमलानी की ओर से कहा गया कि ये समझौता एक राजनीतिक दल का दूसरे देश के राजनीतिक दल से है. जिसपर चीफ जस्टिस ने जवाब दिया कि आपने अपनी याचिका में तो ये बात नहीं कही है. हम आपको अपनी याचिका में बदलाव करने और इसे वापस लेने का मौका दे रहे हैं.
3-पीएम केयर्स फंड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस का बड़ा झटका दिया
पीएम केयर्स फंड मामले में एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष में स्वेच्छा से योगदान किया जा सकता है, क्योंकि आपदा प्रबंधन कानून के तहत ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है.
PM केयर्स फंड की राशि NDRF में स्थानांतरण का निर्देश दिया जाए
जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया था कि कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए पीएम केयर्स कोष में जमा राशि एनडीआरएफ में स्थानांतरित करने का निर्देश केन्द्र को दिया जाए। केंद्र ने कोविड-19 महामारी जैसी आपात स्थिति से निबटने और प्रभावित लोगों को राहत उपलब्ध कराने के इरादे से पीएम केयर्स फंड का गठन किया था।
28 मार्च को PM नागरिक सहायता व राहत कोष (PM केयर्स) गठित की गई
28 मार्च को प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं राहत (पीएम केयर्स) कोष की स्थापना की थी। प्रधानमंत्री इस पीएम केयर्स फंड के पदेन अध्यक्ष हैं और रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री पदेन न्यासी हैं।
केंद्र की मौद सरकार ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था
सरकार ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था। उसका कहना था कि कोरोना से राहत के कामों के लिए पीएम केयर्स फंड बनाया गया था। पहले भी ऐसे कई फंड बनाए जाते रहे हैं। एनडीआरएफ जैसा संवैधानिक फंड होने का मतलब यह नहीं है कि वॉलेंटरी डोनेशन के लिए पीएम केयर्स जैसे दूसरे फंड नहीं बनाए जा सकते।
4- ऐतिहासिक फैसले में SC ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया
अयोध्या में 72 वर्ष बाद सर्वसम्मति फैसले से खुला राम मंदिर का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने 9 नंवबर, 2019 को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया।
2009 में कांग्रेस ने एक हलफनामे में भगवान राम के होने पर सवाल उठाए थे
2009 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में भगवान श्रीराम के होने पर ही सवाल उठाए थे और आज जब अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है, तो कांग्रेसी नेता फिर राम धुन गाने को मजूबर हैं।
कांग्रेस ने 3 तलाक व हलाला की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली
16 मई, 2016 को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी, लेकिन तभी सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता और AIMPLB के वकील कपिल सिब्बल ने तीन तलाक और हलाला की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली। कपिल सिब्बल ने दलील दी है जिस तरह से राम हिंदुओं के लिए आस्था का सवाल हैं। उसी तरह तीन तलाक मुसलमानों की आस्था का मसला है।
कांग्रेस पर आरोप लगा कि वह राम मंदिर का समाधान नहीं चाहती है
सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने अयोध्या में विवादित परिसर पर हक की लड़ाई में पक्षकार इकबाल अंसारी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट दलील देते हुए तर्क दिया था कि राम मंदिर मामले की सुनवाई को 2019 के चुनाव तक टाल दिया जाए। उनका तर्क था कि यदि इसमें किसी तरह का कोई फैसला आता है तो भाजपा उसे चुनावी मुद्दा बनाएगी। इसके बाद से भाजपा और तमाम लोगों ने सिब्बल के इस तर्क की कड़ी निंदा की। भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस राम मंदिर मामले का समाधान नहीं चाहती है।"
कांग्रेस ने भगवान राम और रामसेतु के अस्तित्व को ही नकार दिया था
वर्ष 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बहस चल रही थी तो कांग्रेस पार्टी ने अपनी असल सोच को जगजाहिर किया था। पार्टी ने एक शपथ पत्र के आधार पर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था। इस शपथ पत्र में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, यह केवल कोरी कल्पना ही है। ऐसी भावना रखने वाली कांग्रेस भगवान श्री राम के अस्तित्व को नकार कर क्या सिद्ध करना चाहती थी?
भगवान राम निर्मित राम सेतु के अस्तित्व को NASA भी स्वीकार कर चुकी है
कांग्रेस ने व्यावसायिक हित के लिए देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर कुठराघात करने की तैयारी कर ली थी। जिस राम सेतु के अस्तित्व को NASA ने भी स्वीकार किया है, जिस राम सेतु को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी MAN MAID यानि मानव निर्मित माना है, उसे कांग्रेस पार्टी तोड़ने जा रही थी। दरअसल हिंदुओं के इस देश में ही कांग्रेस पार्टी ने हिंदुओं को ही दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है। यही वजह रही कि वह एक अरब से अधिक हिंदुओं की आस्था पर आघात करने की तैयारी कर चुकी थी।
5-सुप्रीम कोर्ट राफेल डील पर मोदी सरकार को दे चुकी है क्लीन चिट
कांग्रेस द्वारा राफेल सौदे पर सवाल उठाए थे और आरोप लगाया था कि राफेल खरीदी की वास्तविक कीमत इससे कहीं ज्यादा है। सौदे पर सवाल उठाने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गत 14 दिसंबर 2018 को शीर्ष कोर्ट सौदे को क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन उसके बाद फिर दाखिल सभी पुनर्विचार याचिकाओं को भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से खारिज दिया।
राफेल खरीदी से संबंधित सरकार के फैसले की स्वतंत्र जांच की मांग की थी
इसके बाद 13 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी जिसमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीदी संबंधी सरकार के फैसले की स्वतंत्र जांच की मांग करने के साथ ही संसद के सामने सौदे की वास्तविक कीमत का खुलासा करने का अनुरोध भी किया गया था।
फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की डील हुई थी
मोदी सरकार द्वारा फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर डील की गई थी। सरकार ने संसद में हर राफेल विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए बताई थी। लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि राफेल खरीदी की वास्तविक कीमत इससे कहीं ज्यादा है।
राहुल गांधी ने PM मोदी के बारे में ‘चौकीदार चोर है' के लिए माफी मांगी
सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी को राफेल मामले में कोर्ट की अवमानना मामले में माफीनामा लिखना पड़ा। मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को चेतावनी देते हुए कहा कि राजनीतिक बयानबाजी में कोर्ट को न घसीटें और भविष्य में और सतर्क रहने को भी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला राहुल गांधी के खिलाफ राफेल मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में ‘चौकीदार चोर है' टिप्पणी के लिए लंबित अवमानना मामले में सुनवाई पर सुनाया था।
राफेल डील मामले में राहुल गांधी ने एक नहीं 4-4 झूठ बयान दिए थे
राफेल डील मामले पर राहुल गांधी ने पहले कहा कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर बनाया, लेकिन जब भारत सरकार ने कहा रिलांयस को पार्टनर हमने नहीं, फ्रांस की कंपनी ने किया, तो पहले झूठ की पोल खुल गई। राहुल गांधी ने दूसरे झूठ में कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद पीएम मोदी को चोर कहा है, यह भी गलत पाया गया। उन्होंने तीसरा झूठ संसद में बोला कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है कि इस डील को डिस्क्लोज कर सकते है, जबकि पोल खोलते हुए फ्रांस सरकार ने उसे झूठ करार दे दिया। राहुल ने चौथे झूठ में कहा कि कैबिनेट कमेटी (सिक्यूरिटी) को विश्वास में नहीं लिया गया और यह भी झूठा निकला।