मध्यप्रदेश में नोटा से डरी हुई भाजपा संघ की शरण में
नई दिल्ली। विधानसभा चुनावों में नोटा से डरी हुई भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में फूंक-फूंककर कदम रख रही है। नोटा के कारण ही विधानसभा में भाजपा को 11 सीटें कम मिली और वह स्पष्ट बहुमत के अभाव में सरकार बनाने से वंचित रह गई। अब भाजपा ने संघ की शरण ली है कि नोटा से बचाया जाए। 10 अप्रैल को मध्यप्रदेश में आरएसएस और उससे जुड़े आनुषंगिक संगठनों की बैठक में तय किया गया कि नोटा के खिलाफ अभियान चलाया जाए। आरएसएस और उससे जुड़े संगठन के स्वयंसेवक घर-घर जाएंगे और लोगों से कहेंगे कि वोट जरूर डालें, लेकिन नोटा को न चुनें। जो भी उम्मीदवार बेहतर हो, उनमें से किसी को भी चुनें। इस बैठक के पहले आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचार दीपक विस्पुते ने भोपाल, बैतूल, होशंगाबाद, विदिशा और राजगढ़ सीट का फीडबैक लिया। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह भी इस बैठक में मौजूद थे। अन्य मुद्दों के अलावा बैठक में नोटा का मुद्दा भी शामिल था।
एमपी में नोटा से डरी भारतीय जनता पार्टी
5 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में नोटा ने भारतीय जनता पार्टी का पूरा गणित बिगाड़ दिया था। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों में बहुत गुस्सा था। इसके अलावा सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर भी एक बड़ा वर्ग नाराज था। सवर्णों ने चुनाव के ठीक पहले सपाक्स (सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय) पार्टी भी बना ली थी और कई जगह अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे। सपाक्स का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। अधिकांश जगह उनकी जमानतें जब्त हो गई, लेकिन सवर्णों द्वारा नोटा के उपयोग पर बल दिए जाने के कारण नोटा ने विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया था।
सपाक्स को नहीं मिल रहे उम्मीदवार
सपाक्स ने पहले घोषणा की थी कि वह मध्यप्रदेश में 15 उम्मीदवार खड़े करेगी और पूरे देश में उसके 60 उम्मीदवार मैदान में होंगे, लेकिन विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार के बाद अब सपाक्स को उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में सपाक्स के नेता कह रहे है कि व्यवस्था के विरूद्ध फिर नोटा का उपयोग किया जाए। अगर इस वर्ग के लोग नोटा का बटन दबाते है, तो ऐसे मतदाताओं की संख्या लाखों में होगी, जो नोटा के पक्ष में होंगे। यह स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल नहीं होगी, क्योंकि सवर्ण समाज के अधिसंख्य मतदाता भाजपा समर्थक माने जाते हैं।
विधानसभा चुनाव में नोटा ने किया था 'खेल'
मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 22 पर नोटा के पक्ष में जितने वोट मिले, वह जीत के अंतर से ज्यादा थे। नोटा के कारण ही भारतीय जनता पार्टी के 4 कद्दावर मंत्री चुनाव हार गए। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के वोट शेयर में सिर्फ 0.1 प्रतिशत का अंतर था। भाजपा को 0.1 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले, लेकिन नोटा को 1.4 प्रतिशत वोट मिले। भाजपा से मिले **0.4 प्रतिशत अधिक वोटों का यह अंतर भारतीय जनता पार्टी के गले की फांस बन गया। ये वोट 5 लाख 40 हजार थे। मध्यप्रदेश में नोटा के कारण भाजपा ने विधानसभा की 11 सीटें गंवाई थी, क्योंकि भाजपा को आने वाले वोट नोटा में चले गए और भारतीय जनता पार्टी का खेल तब बिगड़ गया, जब अंतिम नतीजे आए और भारतीय जनता पार्टी बहुमत से केवल 7 सीटें दूर रह गई। भाजपा के लोग कह रहे है कि अगर नोटा को जाने वाले सभी वोट भाजपा को मिल जाते, तो भाजपा की 11 सीटें और होती और 230 में से 120 सीटें पाकर भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार बना लेती।
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विधानसभा चुनाव में कई उम्मीदवारों की हुई थी करीबी हार
बुरहानपुर विधानसभा सीट से भाजपा की वरिष्ठ नेता और महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस 5 हजार 120 वोटों से हार गई थी, जबकि उनके चुनाव क्षेत्र में नोटा में 5 हजार 700 वोट गए। जबलपुर उत्तर से स्वास्थ्य राज्य मंत्री 578 वोटों से हारे, जबकि नोटा में 1209 वोट पड़े थे। भाजपा के दिग्गज नेता और वित्त मंत्री जयंत मलैया अपने पारंपरिक विधानसभा क्षेत्र दमोह से केवल 799 वोटों से पराजित हो गए थे, जबकि नोटा में 1299 वोट पड़े। इसी तरह ग्वालियर दक्षिण से गृह राज्य मंत्री नारायण सिंह कुशवाह को केवल 121 वोटों से पराजय मिली, जबकि नोटा में 1550 वोट पड़े।
लोकसभा चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है नोटा
लोकसभा चुनाव में भी नोटा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मतदाता सभी उम्मीदवारों को नापसंद करते हुए नोटा का बटन दबा सकता है। जहां बहुत कांटे की टक्कर होगी, वहां ये मामूली वोट भी हार और जीत का फैसला तय कर सकते है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी नोटा के खिलाफ भी अभियान चला रही है। नोटा के खिलाफ खुलकर संघर्ष करने के बजाय भाजपा के नेताओं ने आरएसएस की शरण ली है। संघ प्रमुख मोहन भागवत अपनी पिछली इंदौर यात्रा में कह चुके हैं कि लोकतंत्र का मतलब है उपलब्ध उम्मीदवारों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनना। अगर कोई मतदाता यह कहे कि उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं, तो यह लोकतंत्र की भावना का अपमान है। जाहिर है मोहन भागवत नोटा को अनुपयोगी करार दे चुके है। इसीलिए आरएसएस और उससे जुड़े हुए संगठन नोटा के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं।