जयपुर ग्रामीण: दो ओलंपियन्स राज्यवर्धन राठौर और कृष्णा पूनिया में टक्कर, किसका पलड़ा भारी?
नई दिल्ली- राजस्थान के रण में दो ओलंपियन्स के बीच चुनाव की जंग हो रही है। जयपुर ग्रामीण (Jaipur Rural) में केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर (Rajyavardhan Rathore) और कांग्रेस की कृष्णा पूनिया (Krishna Poonia) के बीच मुकाबला है। राठौर ने 2004 के एथेंस ओलंपिक के डबल ट्रैप शूटिंग (Double Trap Shooting) में व्यक्तिगत श्रेणी में भारत का पहला सिल्वर मेडल जीता था। वहीं, डिस्कस थ्रोअर (discus thrower) कृष्णा पूनिया Krishna Poonia ने तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 2014 में राठौर ने कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी (CP Joshi) को हराकर जयपुर ग्रामीण की सीट जीत ली थी। जबकि, पूनिया ने पिछले दिसंबर में बीजेपी के दिग्गज राम सिंह कासवान को सादुलपुर एसेंबली सीट से हरा दिया था। इस सीट पर पांचवें दौर में 6 मई को वोटिंग होनी है।
हाईप्रोफाइल सीट की लड़ाई
जयपुर ग्रामीण (Jaipur Rural) लोकसभा क्षेत्र की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां एक बड़ी रैली की है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी सोमवार को यहां चुनाव प्रचार कर के जा चुके हैं। इस सीट की डेमोग्राफी की बात करें तो यह जाट मतदाता बहुल सीट है, जहां मुस्लिमों की भी आबादी काफी है। यहां वैसे परिवारों की संख्या भी बहुत अधिक है, जिनके परिवार के लोग आर्म्ड फोर्सेज (armed forces) में तैनात हैं।
राज्यवर्धन सिंह राठौर का लक्ष्य
राठौर की विशेषता ये है कि स्पोर्ट्सपर्सन (sportsperson) के तौर पर ही नहीं, मंत्री के रूप में भी उनकी लोकप्रियता काफी अच्छी है। इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग (information and broadcasting) मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार (independent charge) राज्यमंत्री के अलावा उनके पास यूथ अफेयर्स एवं स्पोर्ट्स (youth affairs and sports) मंत्रालय के राज्यमंत्री की भी जिम्मेदारी है। उन्हें मोदी पर लोगों के भरोसे और सरकार के काम के दम पर जीत का विश्वास है। वो अपनी चुनावी सभाओं में केंद्र सरकार की योजनाओं का बहुत ज्यादा जिक्र करते हैं। हालांकि, कुछ जगहों पर लोगों को सरकारी लाभ नहीं मिलने की शिकायतें भी मिलती हैं। मसलन हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिनोदिया गांव में कुछ महिलाओं ने ऐसी ही शिकायतें की है। एक ऐसी ही महिला राधा देवी ने पीने के पानी की दिक्कत के बारे में बताया कि, "40 घरों के लिए यहां सिर्फ एक टैप है।" हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अभी भी वो "कमल के फूल" को वोट करेंगी। राठौर कहत हैं कि, "काम को लेकर मोदी की क्षमता और सच्चाई ने सभी जाति और वर्ग के भेद को खत्म कर दिया है। जो महिलाएं सामान्य तौर पर टीवी नहीं देखतीं, वे भी प्रधानमंत्री के बारे में बातें करती हैं।" उन्होंने ये भी कहा कि आमतौर पर सांसद उस गांव को पैसे देते हैं, जहां उन्हें वोट मिलता है, लेकिन उन्होंने सभी पंचायतों तक पैसा पहुंचना तय किया है।
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कृष्णा पूनिया की ताकत
कांग्रेस उम्मीदवार कृष्णा पूनिया (Krishna Poonia) वैसे तो हरियाणा के हिसार की हैं, लेकिन उनकी शादी राजस्थान के चुरू के रहने वाले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता (Dronacharya awardee) विरेंदर पुनिया (Virendar Poonia) से हुई है। इसलिए वो खुद को ग्रामीण बैकग्राउंड का बताती हैं और लोगों से जुड़ने की कोशिश करती हैं। जांवा रामगढ़ तहसील के एक गांव में वो कहती हैं, "मेरे पिता एक डेयरी चलाते थे। मैंने गाय का दूध निकाला है और उन्हें चारा खिलाया है। बाद में इस किसान की बेटी को खेल में मौका मिला और वह लाइफ में आगे बढ़ गई। मैंने देश को गौरवांवित किया है और अब आपकी सेवा के लिए आपका आशीर्वाद चाहिए, जिससे आपको गौरवांवित कर सकूं।" अपने नेता राहुल गांधी की तरह वो भी मोदी सरकार और उनकी योजनाओं की खिल्ली उड़ाने से नहीं चूकतीं। वो कहती हैं, "उज्ज्वला योजना, जॉब्स, ब्लैक मनी, मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत सिर्फ जुमला थे। अब, वे इन मुद्दों पर बात नहीं करते। क्योंकि, कांग्रेस ने उन्हें कड़ी चुनौती दी है।" एक स्थानीय गांव के रामदेव चौधरी की मानें तो जाट होने के नाते ज्यादातर जाट वोट कांग्रेस की उम्मीदवार कृष्णा पूनिया को ही जाएंगे। लेकिन, वे भी मानते हैं कि राष्ट्रवाद का मुद्दा भी वोटरों को प्रभावित कर सकता है।
राठौर का आरोप है कि कांग्रेस ने लोगों में राफेल जेट डील (Rafale jet deal), जीएसटी (Goods and Services Tax) और नोटबंदी (demonetisation) को लेकर भी झूठ फैलाए हैं, लेकिन इससे वोटरों पर असर नहीं पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषक नारायण बरेठ कहते हैं कि राठौर और पूनिया दोनों स्पोर्ट्सपर्सन्स (sportsperson) हैं, इसलिए दोनों बहुत ही संजीदा तरीके से प्रचार कर रहे हैं। वे दूसरे राजनेताओं से पूरे अलग हैं। ऐसे में यहां की जनता किसकी बात मानकर वोटिंग करती है, इसका कयास लगाना बेहद मुश्किल है।