क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

गधों पर मचे सियासी घमासान के बीच AAP नेता कुमार विश्वास ने ली इस अंदाज में चुटकी, देखिए वीडियो

कुमार विश्वास ने गधों पर कविता का आगाज करते हुए कहते हैं कि इधर भी गधे हैं...उधर भी गधे हैं...जिधर देखता हूं...गधे ही गधे हैं...।

Google Oneindia News

नई दिल्ली। चुनावी दौर में गधों पर मचे सियासी घमासान पर अब आम आदमी पार्टी के नेता और कवि कुमार विश्वास ने भी चुटकी ली है। उन्होंने गधों को लेकर एक कविता का वीडियो अपने आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर शेयर किया है। कुमार विश्वास इस वीडियो में कवि अंदाज में गधे पर एक हास्य कविता पेश करते नजर आ रहे हैं।

गधों पर जारी बयानबाजी में कुमार विश्वास भी कूदे

कुमार विश्वास ने कविता सुनाने से पहले साफ कर दिया कि ये कविता उनकी लिखी हुई नहीं है। उन्होंने बताया कि गधों पर ये कविता प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने लिखी थी, उन्होंने बस इस कविता का पाठन किया है। करीब 2 मिनट 32 सेकंड की ये कविता उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से भी शेयर किया है।

कुमार विश्वास ने सुनाई गधों पर कविता

कुमार विश्वास ने सुनाई गधों पर कविता

कुमार विश्वास ने जो कविता सुनाई है उसमें हास्य का पुट तो है साथ ही इसमें जमकर गधों की तारीफ की गई है। कविता को इस अंदाज में पेश किया गया कि जैसे गधे, इंसानों से भी श्रेष्ठ हों। आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने गधों पर इस तरह से कविता सुनाकर कहीं न कहीं इस मुद्दे पर गरमाई सियासत में अपनी भी एंट्री करा ली है।

प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने लिखी थी कविता

प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने लिखी थी कविता

कुमार विश्वास ने गधों पर लिखी कविता का आगाज करते हुए कहते हैं कि इधर भी गधे हैं...उधर भी गधे हैं...जिधर देखता हूं...गधे ही गधे हैं...। उन्होंने आगे कहा कि ये फाल्गुन का महीना है और लोकतंत्र का महापर्व चुनाव चल रहा है लेकिन वैशाख नंदन गधा इस समय अनायास ही प्रसंग में है, चर्चा में है।

कुमार विश्वास की ये सोशल मीडिया पर जमकर हो रही है शेयर

कुमार विश्वास की ये सोशल मीडिया पर जमकर हो रही है शेयर

कुमार विश्वास बताते हैं कि प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने ये कविता लिखी थी और कई बार हम सबके सामने इसका वाचन किया। हमने भी बड़े ही आनंद से उनकी इस कविता को सुना है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि आज ये कविता प्रासंगिक होगी ये बड़ा आश्चर्य है। इसके बाद उन्होंने कविता को सबके सामने पेश किया।

पढ़िए वो कविता, जिसे कुमार विश्वास ने सुनाया...

पढ़िए वो कविता, जिसे कुमार विश्वास ने सुनाया...

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं।
गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है।
जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है।
ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है।
पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके के मटके के मटके
मैं दुनिया को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं।
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो
यहां आदमी की कहां कब बनी है
ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है।
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है।
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है,
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है।
मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं,
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं?
मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था,
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था।
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो,
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो।
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है,
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है।

<strong>इसे भी पढ़ें:-मऊ: 'गधे' के अपमान के विरोध में धोबी संघ ने किया मतदान का बहिष्कार</strong>इसे भी पढ़ें:-मऊ: 'गधे' के अपमान के विरोध में धोबी संघ ने किया मतदान का बहिष्कार

Comments
English summary
In election period now Kumar Vishwas poem on donkey.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X