गधों पर मचे सियासी घमासान के बीच AAP नेता कुमार विश्वास ने ली इस अंदाज में चुटकी, देखिए वीडियो
कुमार विश्वास ने गधों पर कविता का आगाज करते हुए कहते हैं कि इधर भी गधे हैं...उधर भी गधे हैं...जिधर देखता हूं...गधे ही गधे हैं...।
नई दिल्ली। चुनावी दौर में गधों पर मचे सियासी घमासान पर अब आम आदमी पार्टी के नेता और कवि कुमार विश्वास ने भी चुटकी ली है। उन्होंने गधों को लेकर एक कविता का वीडियो अपने आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर शेयर किया है। कुमार विश्वास इस वीडियो में कवि अंदाज में गधे पर एक हास्य कविता पेश करते नजर आ रहे हैं।
गधों
पर
जारी
बयानबाजी
में
कुमार
विश्वास
भी
कूदे
कुमार विश्वास ने कविता सुनाने से पहले साफ कर दिया कि ये कविता उनकी लिखी हुई नहीं है। उन्होंने बताया कि गधों पर ये कविता प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने लिखी थी, उन्होंने बस इस कविता का पाठन किया है। करीब 2 मिनट 32 सेकंड की ये कविता उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से भी शेयर किया है।
"गधा"
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) February 25, 2017
"Gadha" 😀👍😂https://t.co/B6uPxvFPSq
कुमार विश्वास ने सुनाई गधों पर कविता
कुमार विश्वास ने जो कविता सुनाई है उसमें हास्य का पुट तो है साथ ही इसमें जमकर गधों की तारीफ की गई है। कविता को इस अंदाज में पेश किया गया कि जैसे गधे, इंसानों से भी श्रेष्ठ हों। आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने गधों पर इस तरह से कविता सुनाकर कहीं न कहीं इस मुद्दे पर गरमाई सियासत में अपनी भी एंट्री करा ली है।
प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने लिखी थी कविता
कुमार विश्वास ने गधों पर लिखी कविता का आगाज करते हुए कहते हैं कि इधर भी गधे हैं...उधर भी गधे हैं...जिधर देखता हूं...गधे ही गधे हैं...। उन्होंने आगे कहा कि ये फाल्गुन का महीना है और लोकतंत्र का महापर्व चुनाव चल रहा है लेकिन वैशाख नंदन गधा इस समय अनायास ही प्रसंग में है, चर्चा में है।
कुमार विश्वास की ये सोशल मीडिया पर जमकर हो रही है शेयर
कुमार विश्वास बताते हैं कि प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य ने ये कविता लिखी थी और कई बार हम सबके सामने इसका वाचन किया। हमने भी बड़े ही आनंद से उनकी इस कविता को सुना है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि आज ये कविता प्रासंगिक होगी ये बड़ा आश्चर्य है। इसके बाद उन्होंने कविता को सबके सामने पेश किया।
पढ़िए वो कविता, जिसे कुमार विश्वास ने सुनाया...
इधर
भी
गधे
हैं,
उधर
भी
गधे
हैं
जिधर
देखता
हूं,
गधे
ही
गधे
हैं।
गधे
हंस
रहे,
आदमी
रो
रहा
है
हिन्दोस्तां
में
ये
क्या
हो
रहा
है।
जवानी
का
आलम
गधों
के
लिये
है
ये
रसिया,
ये
बालम
गधों
के
लिये
है।
ये
दिल्ली,
ये
पालम
गधों
के
लिये
है
ये
संसार
सालम
गधों
के
लिये
है।
पिलाए
जा
साकी,
पिलाए
जा
डट
के
तू
विहस्की
के
मटके
के
मटके
के
मटके
मैं
दुनिया
को
अब
भूलना
चाहता
हूं
गधों
की
तरह
झूमना
चाहता
हूं।
घोड़ों
को
मिलती
नहीं
घास
देखो
गधे
खा
रहे
हैं
च्यवनप्राश
देखो
यहां
आदमी
की
कहां
कब
बनी
है
ये
दुनिया
गधों
के
लिए
ही
बनी
है।
जो
गलियों
में
डोले
वो
कच्चा
गधा
है
जो
कोठे
पे
बोले
वो
सच्चा
गधा
है।
जो
खेतों
में
दीखे
वो
फसली
गधा
है,
जो
माइक
पे
चीखे
वो
असली
गधा
है।
मैं
क्या
बक
गया
हूं,
ये
क्या
कह
गया
हूं,
नशे
की
पिनक
में
कहां
बह
गया
हूं?
मुझे
माफ
करना
मैं
भटका
हुआ
था,
वो
ठर्रा
था,
भीतर
जो
अटका
हुआ
था।
इधर
भी
गधे
हैं,
उधर
भी
गधे
हैं
घोड़ों
को
मिलती
नहीं
घास
देखो,
गधे
खा
रहे
हैं
च्यवनप्राश
देखो।
जो
खेतों
में
दीखे
वो
फसली
गधा
है,
जो
माइक
पे
चीखे
वो
असली
गधा
है।
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