पूर्वी लद्दाख में PLA के साथ है टैंक और खौफनाक मंसूबा, लेकिन भारतीय सेना के पास उससे भी खास है
नई दिल्ली- पूर्वी लद्दाख में लगातार उकसावे वाली कार्रवाई को अंजाम देकर चीन अपने एजेंडावादी प्रचारतंत्र के जरिए भले ही भारत के खिलाफ जहर उगले, लेकिन मोर्चे पर भारतीय सैनिकों के इरादे पूरे बुलंद हैं। पीएलए इस साल लगातार कई बार भारतीय सेना से बुरी तरह मात खाकर बौखलाई हुई है। उसने एलएसी से सटाकर अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर लिया है। उसके अग्रिम मोर्चे को फौरन बैक सपोर्ट उपलब्ध हो जाता है। लेकिन, भारतीय सेना के हौसले इसलिए फिर भी बुलंद हैं, क्योंकि उसके लिए स्थानीय लोग भी जान की बाजी लगाने को तैयार हैं। रोजाना कई किलोमीटर ट्रेकिंग करके रसद पहुंचाने के काम में जुटे हुए हैं। चीन की ओर से गोलियों की आवाज उनके कानों में भी पड़ रही हैं, लेकिन वो अपने सैनिकों को सपोर्ट करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। जबकि, चीन की सेना तो तिब्बत के लोगों से कभी ऐसा सहयोग पाने की बात सपने में भी नहीं सोच सकती।
भारतीय सेना को मिल रहा है स्थानीय लोगों का साथ
पूर्वी लद्दाख में जिस तरह का माहौल है, भारत और चीन दोनों की सेनाएं मान चुकी हैं कि इस साल ठंड का मौसम वहीं गुजारना है। इस मामले में सियाचिन के अनुभव से भारतीय सेना का पलड़ा भारी जरूर है, लेकिन पहले से तैयार किए हुए इंफ्रास्ट्रक्चर के दम पर पीएलए भी हर हालात का सामना करने के लिए तैयार है। पैंगोंग त्सो झील के पास 29 अगस्त की रात हुई घटना के बाद चाइनीज आर्मी बेहद आक्रामक अंदाज में नजर आ रही है। पीएलए के जवान ब्लैकटॉप माउंटेन और दूसरी जगहों के नजदीक ही डेरा डाले बैठे हैं। वह मौका मिलते ही भारतीय सेना को महत्वपूर्ण चोटियों से पीछे हटाने का मंसूबा पाले हुए हैं। पहले से ही तैयार बेहतर इंफ्रस्ट्रक्चर की वजह से वह काफी नजदीक तक अपने साथ टैंक, सैन्य वाहन और अत्याधुनिक तोपखाने लेकर आ हुए हैं। लेकिन, भारतीय सेना के पास कुछ किलोमीटर की ट्रेकिंग करने के अलावा कोई चारा नहीं है। फिर भी उन्हें वहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ अपने स्थानीय नागरिकों से जो हौसला अफजाई और वॉलंटियर्स का जो सहयोग मिल रहा है, उसके बारे में चाइनीज कभी सोच भी नहीं सकते।
सेना के लिए रोजाना कई किलोमीटर ट्रेकिंग करते हैं लोकल
करीब 10 दिन हो चुके हैं। पूर्वी लद्दाख में चुशूल सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास फॉर्वर्ड लोकेशन पर डटी भारतीय सेना को स्थानीय निवासियों और वॉलंटिर्स का भरपूर सहयोग मिल रहा है। भारतीय सेना के लिए ये रोजाना कई किलोमीटर तक ट्रेकिंग करके जरूरी सामान और जरूरत की दूसरी चीजें पहुंचा रहे हैं। ये लोग अपनी सेना के लिए रोजाना औसतन 3 किलोमीटर की ट्रेकिंग करते हैं। पिछले हफ्ते कुछ लोकल ग्रुप के वॉलंटिर्स के साथ चुशूल का दौरा कर चुके तांगत्से निर्वाचन क्षेत्र के बीजेपी काउंसर ताशी नामग्याल ने कहा है, 'चाइनीज आर्मी ब्लैकटॉप पहाड़ के पास और इलाके में दूसरी जगहों पर बैठी हुई है। हमारी सेना टेंटों में है, जबकि चाइनीज आर्मी अपने साथ उस तरफ टैंक, कारें, वाहन और अत्याधनिक तोपखाने लेकर आई है।'
चीन की ओर से फायरिंग के बावजूद नहीं डिगा हौसला
अपनी सेना की दिलेरी के साथ कदमताल करने की चाहत रखने वाले स्थानीय लोगों का हौसला इतना ऊंचा है कि वह सोमवार की रात को चीन की ओर से हुई उकसावे वाली कार्रवाई से भी नहीं सहमे और सेना के सहयोग के लिए अपना काम बदस्तूर जारी रखा। पूर्वी लद्दाख के एक सरपंच ने ईटी को बताया कि '7-8 सितंबर को चुशूल गांव और त्सागा गांव के इलाके के बीच में फायरिंग हुई। फिर भी मंगलवार को 100 से ज्यादा वॉलंटियर्स भारतीय सेना के टेंट तक जरूरी सामान लेकर पहुंचे। 'अब भारतीय सेना ने भी मौके पर करीब 100 अर्थमूवर्स भेजे हैं, ताकि कंस्ट्रक्शन के साथ-साथ बंकर बनाने का भी काम हो सके।
लंबी लड़ाई के लिए है सेना की तैयारी
भाजपा नेता नामग्याल ने वॉलंटिरों के माध्यम से ये भी बताया है कि ऐसा लगता है कि हमारी सेना पूरी ठंड यहीं पर ठहरने वाली है। उनके मुताबिक, 'रिजांग ला और गुरुंग हिल के पास तनाव फिर से बढ़ गया है। यह लंबे समय तक चलने वाला है और सेना ठंड के हिसाब से लंबी तैयारी कर रही है।' क्योंकि, चीनी सेना ने अभी तक मई में किए गए अतिक्रमणों का फायदा उठाने का तिकड़म रचना बंद नहीं किया है। वैसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोग जिस तरह की हिम्मत दिखा रहे हैं, वहां से काफी दूर शहरों में रहने वाले हर आदमी का हौसला वैसा ही नहीं है। लेह के एक निवासी सेरिंग लामो ने कहा, 'पिछले कई महीनों से हम डर के साए में जी रहे हैं। सैनिकों की आवाजाही अभूतपूर्व है और आसमान में लगातार फाइटर जेट का उड़ना अमंगलकारी भविष्य की चेतावनी देता है।'
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