बिहार में प्रशांत किशोर के सामने अपनी ही बनाई इस रणनीति को मात देने की बड़ी चुनौती
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बिहार में बीजेपी और जेडी(यू) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर माथापच्ची जारी है। नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर के साथ आ जाने से उत्साहित हैं और कहा जा रहा है कि उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को साफ कह दिया है कि उन्हें 17 से कम सीटें मंजूर नहीं हैं लेकिन बीजेपी एक दर्जन से ज्यादा सीटें देने की इच्छुक नहीं है। बीजेपी - जेडी(यू) की इस खींचतान के बीच बिहार में महागठबंधन जमीन पर कुछ और ही तैयारी करने में लगा है। महागठबंधन तीन साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर द्वारा आरजेडी, जेडी(यू) और कांग्रेस के लिए बनाई गई रणनीति पर ही अमल करने के रास्ते पर चल पड़ा है।
बिहार में अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत के बाद से आरजेडी ने अपने कदम मजबूत किए हैं। तो कांग्रेस को भी लग रहा है कि वो महागठबंधन की बदौलत अच्छा प्रदर्शन करेगी। महागठबंधन में शामिल आरजेडी, कांग्रेस और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने अपने-अपने रास्ते तय कर लिए हैं। रास्ते अलग हैं लेकिन तीनों की मंजिल एक ही है।
कांग्रेस का सवर्णों पर दांव
कांग्रेस
ने
राज्य
में
इस
बार
सवर्णों
पर
अपना
दांव
लगाने
का
फैसला
किया
है।
इसे
देखते
हुए
ही
कांग्रेस
ने
सामाजिक
रूप
से
सवर्ण
तबके
से
आने
वाले
मदन
मोहन
झा
को
प्रदेश
अध्यक्ष
बनाया
है।
कांग्रेस
एससी/एसटी
एक्ट
को
लेकर
बीजेपी
के
खिलाफ
सवर्णों
की
नाराजगी
का
भी
फायदा
उठाना
चाहती
है।
कांग्रेस
की
कोशिश
सवर्ण
मतदाताओं
को
एनडीए
खेमे
में
जाने
से
रोकने
की
है।
बिहार
में
90
के
दशक
तक
अगड़ों
का
समर्थन
कांग्रेस
को
हसिल
था।
अब
कांग्रेस
दोबारा
उनका
भरोसा
जीतने
की
कोशिश
में
है।
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आरजेडी का ‘MY’ फॉर्मूला
लालू की आरजेडी इस बार लोकसभा में ‘MY' यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे ही आगे बढ़ेगी। ‘MY' समीकरण के जरिये बुरे दौर में भी लालू प्रसाद की पार्टी के प्रत्याशियों को करीब 30 फीसद वोट मिलते रहे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में भी आरजेडी ने अपने हिस्से की 101 सीटों में से 48 पर यादव और 16 पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी ने अगड़ी जाति के वरिष्ठ नेताओं के कोटे से सिर्फ दो राजपूत और एक ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाया था। कभी उच्च जातियों के गरीबों के लिए 10 फीसद आरक्षण की लालू की मांग को भी फिलहाल तेजस्वी यादव ने पीछे धकेल दिया है उनका कहना है कि आरजेडी आरक्षण के मुद्दे पर संविधान के प्रावधानों के हिसाब से चलेगी यानी वो पिछड़ों के साथ खड़ा होने का कार्ड भी खेलेगी। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) ने बीच का रास्ता अपनाया है और उसकी कोशिश हर वर्गे को टारगेट करने की होगी।
खुद की रणनीति को मात देने की चुनौती
2015 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने राजद-जदयू और कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई थी। उस वक्त जेडीयू के पास नीतीश कुमार के रूप में विकास पुरुष का चेहरा था। तो कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में सवर्णों को तरजीह दी थी तो आरजेडी ने कांग्रेस-जदयू से अलग ‘MY' का फॉर्मूला अपनाया था। इसका नतीजा जीत के रुप में सामने आया था। इस बार नीतीश आरजेडी और कांग्रेस से अलग होकर बीजेपी के साथ चले गए हैं और प्रशांत किशोर उनके साथ उनके लिए रणनीति बनाएंगे लेकिन उनकी पुरानी रणनीति इस बार कांग्रेस और आरजेडी के काम आ रही है। अब देखना ये होगा कि क्या अपनी ही पुरानी रणनीति को प्रशांत किशोर अपनी नई रणनीति से मात दे पाते हैं या नहीं।
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