नीतीश और सुशील मोदी की बॉन्डिंग से बचा है बिहार में एनडीए गठबंधन! समझिए कैसे?
नई दिल्ली- 2013 से 2017 के चार वर्षों को छोड़ दें, तो 2005 से बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने बिहार में बिना कोई गहरे मतभेद से सरकारों को चलाया है। ऐसा नहीं है कि इस गठबंधन के बीच सिर्फ 2013 में ही दरारें पैदा हुई थीं। लेकिन,ज्यादातर बार आपसी समझ-बूझ के साथ मसले को सुलझा लिया गया है। इसके पीछे दोनों पार्टियों के दो नेताओं के बीच की आपसी बॉन्डिंग का रोल सबसे अहम है। ये हैं जेडीयू के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी। जब दोनों पार्टियों के बीच हाल में थोड़ी-बहुत तल्खी देखने को मिली, तब भी इन्हीं दोनों नेताओं के सियासी और आपसी रिश्तों ने उसे ज्यादा बिगड़ने से फिलहाल बचा लिया है।
नीतीश-सुशील की दोस्ती के दम पर टिकी है बिहार में सरकार!
अभी बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में तब विवाद बढ़ गया था, जब कुछ इफ्तार पार्टी की तस्वीरें लगाकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पहले से तल्ख दोनों पार्टियों के रिश्ते को और सुलगा दिया था। तब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गिरिराज को तो नसीहत दी, लेकिन सुशील मोदी भी नीतीश के समर्थन में खड़े हो गए। गिरिराज सिंह के इस रवैए के प्रति जेडीयू नेताओं में गहरी नाराजगी है, लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की आपसी अंडरस्टैंडिंग की वजह से बात उतनी बिगड़ी नहीं, जितनी की बिगड़ सकती थी। मसलन, गिरिराज सिंह के खिलाफ अभी भी जेडीयू के कुछ नेताओं में नाराजगी है। मसलन जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने इंडिया टुडे से कहा कि 2017 में जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने एनडीए के साथ मिलने का विरोध किया था, तो पार्टी ने उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था, लेकिन बीजेपी गिरिराज जैसे नेताओं को कंट्रोल करने में नाकाम रही है। जेडीयू के एक प्रवक्ता ने तो कहा कि बीजेपी को अब गिरिराज सिंह के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। बावजूद, इसके नीतीश कुमार ने गिरिराज सिंह के ट्वीट को ज्यादा तबज्जो देने की कोशिश नहीं की।
शपथग्रहण से शुरू हुआ विवाद
दरअसल, बीजेपी और जेडीयू में ताजा विवाद मोदी सरकार में शामिल होने से जेडीयू के इनकार करने के साथ शुरू हुआ। जेडीयू ने सिर्फ एक मंत्री बनाए जाने के विरोध में सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। दो दिन बाद ही नीतीश कुमार ने बिहार में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, जिसमें सिर्फ जेडीयू कोटे के 8 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। जेडीयू की ओर से कहा गया कि कोटे के मुताबिक बीजेपी को 1 मंत्री पद का ऑफर दिया गया था, जिसे बीजेपी ने ठुकरा दिया। लेकिन, कयास लगाए गए कि नीतीश ने दिल्ली का बदला पटना में लिया। इसी दौरान कुछ नेताओं ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, जिसमें से नीतीश के फोटो को टारगेट करके गिरिराज सिंह ने वह विवादित ट्वीट कर दिया था।
आज की नहीं है नीतीश-सुशील की दोस्ती
बिहार में जेडीयू और बीजेपी सरकार को देखें तो इसमें मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बिहार के लिए वर्षों से एक कॉमन विजन से बंधे हुए नजर आए हैं। दोनों के बीच छात्र जीवन से ही दोस्ती रही है। लेकिन, उनके अपने दल के साथी कई बार ट्रैक से उतर जाते हैं, जिससे सत्ता की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है। जिस तरह से गिरिराज सिंह के ट्वीट ने गठबंधन की कठिन परिस्थितियों के दौरान और मुश्किलें पैदा की, वैसे मौके पहले भी आए हैं। लेकिन, जेडीयू के सबसे ताकतवर नेता नीतीश कुमार और बिहार बीजेपी में कद्दावर शख्सियत सुशिल मोदी ने आपसी विश्वास की बदौलत सरकार को उन चुनौतियों से हमेशा ही बाहर निकाला है। दोनों नेताओं ने गठबंधन के अंदर जब भी कड़वाहट महसूस की है, उन्होंने आपसी संघर्ष की जगह सहयोग का सहारा लिया है, जिससे गठबंधन चल रहा है। इसलिए, 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में भी अगर 2005 में लालू राज को उखाड़ फेंकने वाले इस गठबंधन को बचाए रखना है, तो दोनों नेताओं के बीच आपसी तालमेल का बना रहना बहुत जरूरी है।
बिहार से बाहर बीजेपी से गठबंधन नहीं- जेडीयू
इस बीच रविवार को जेडीयू ने ये भी साफ कर दिया कि वह बिहार से बाहर नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी एनडीए का हिस्सा नहीं होगी। पार्टी जम्मू-कश्मीर, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा में अकेले लड़ेगी। रविवार को जेडीयू नेशनल एग्जिक्यूटिव मीटिंग में यह फैसला लिया गया है। वैसे जेडीयू और बीजेपी पहले भी यूपी और गुजरात जैसे राज्यों में अकेले-अकेले चुनाव लड़ चुकी है।
इसे भी पढ़ें- मोदी की अगुवाई वाला NDA अगले साल राज्यसभा में जुटा सकता है बहुमत। समझिए कैसे?