असम में कांग्रेस-AIUDF में पक चुकी है खिचड़ी, 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बढ़ेगी मुश्किल
नई दिल्ली- 2006 के असम विधानसभा चुनाव की बात है। तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई राज्य के नामी इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल का नाम हवा में उड़ा देते थे। जबकि, एक साल पहले ही अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट असम की राजनीति में सक्रिय हो चुकी थी। लेकिन, अजमल की पार्टी ने तब कांग्रेस के माथे पर बल ला दिय, जब पहले ही चुनाव में उसने राज्य की 126 में से 10 सीटों पर कब्जा कर लिया और प्रदेश में एक नई सियासी ताकत बन कर उभरी। तब से लेकर आजतक मूल रूप से बंगाली भाषी मुसलमानों की पार्टी माने जाने वाले इस दल ने प्रदेश की राजनीति में अपना एक खास दबदबा कायम कर लिया है। यही वजह है कि 14 साल बाद वही कांग्रेसी दिग्गज तरुण गोगोई की अगुवाई वाली कांग्रेस ने अजमल के साथ गठबंधन करना लगभग फाइनल कर लिया है।
कांग्रेस-एआईयूडीएफ में हो सकता है गठबंधन का ऐलान
कांग्रेस और एआईयूडीएफ में करीबियां तभी से महसूस होने लगी थीं जब इसी साल मार्च में दोनों दलों के साझा राज्यसभा उम्मीदवार वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुइयां के नामांकन के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री गोगोई और इत्र कारोबारी अजमल हाथों में हाथ डाले सार्वजनिक चहलकदमी करते नजर आए थे। भुइयां समेत भाजपा गठबंधन के दोनों उम्मीदवार भी चुनाव जीत गए थे। अब माना जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत में होने वाले असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच गठबंधन की आधिकारिक घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। माना जा रहा है कि जिस दिन यह ऐलान हो गया, उस दिन से असम की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ आ सकता है।
नए गठबंधन से कैसे बदल जाएगी असम की राजनीति ?
असम में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे तरुण गोगोई की अबतक की राजनीति बदरुद्दीन अजमल की पार्टी को भाजपा की 'बी' टीम कहते हुए बीती है। वह वोटरों को यही समझाते आए हैं कि यह पार्टी कांग्रेस का वोट काटने के लिए अपना उम्मीदवार देती है। तब प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को लगता था कि अगर एआईयूडीएफ से गठबंधन किया तो ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा उठा ले जाएगी। इसके ठीक उलट बीजेपी हमेशा से दावा करती रही है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ में गुप्त समझौता है और यह पहली बार तब दिखाई पड़ा जब मार्च में राज्यसभा के लिए चुनाव हुए। इस तरह से दोनों दलों में आंतरिक साठगांठ के चर्चे पहले भी होते रहे हैं, लेकिन कभी भी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
तो अब क्यों हो रहा है गठबंधन ?
कांग्रेस के भीतर के लोगों के मुताबिक नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम में हुए प्रदर्शनों ने राज्य के राजनीतिक हालात बदल दिए हैं। इसके चलते लगभग सारा विपक्ष भाजपा सरकार के खिलाफ खड़ा है। दरअसल, 1985 में हुए असम समझौते के मुताबिक असम में रह रहे 'अवैध बांग्लादेशियों' की पहचान के लिए कट-ऑफ तारीख 24 मार्च, 1971 की आधी रात रखी गई थी। असम में लागू हुए एनआरसी में वही आखिरी तारीख है। लेकिन, असम में विपक्ष और कुछ सामाजिक संगठनों का दावा है कि सीएए का प्रावधान असम समझौते का उल्लंघन करता है। क्योंकि, इसमें गैर-मुस्लिम शरणार्थियों के लिए कट-ऑफ तारीख 31 दिसंबर, 2014 रखी गई है। अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, 'एआईयूडीएफ को असम समझौते में विश्वास है और वह इसे लागू करने का समर्थन करता है। एआईयूडीएफ सीएए का विरोधी है। वो असम के लोगों के हित में हैं। वे सांप्रदायिक नहीं हैं- वे हिंदू-विरोधी नहीं हैं, लेकिन बीजेपी मुस्लिम-विरोधी है। बेशक वे उस समुदाय के लिए काम करते हैं, जिसका प्रतिनिधित्व करते हैं और यह कोई अपराध नहीं है। असम की समस्या एआईयूडीएफ नहीं है- समस्या बीजेपी का कुशासन है और हम इस कुशाषण को खत्म करने के लिए लड़ेंगे। ' उनका कहना है कि सीएए से पहले परिस्थितियां अलग थीं। लेकिन, सीएए के बाद हमें एक महागठबंधन की जरूरत है, जो असम समझौते में विश्वास करते हैं और सीएए और भाजपा का विरोध करते हैं।
गठबंधन से कितनी सीटों पर बिगड़ेगा भाजपा का खेल ?
गठबंधन में अकेले कांग्रेस को फायदा नहीं दिख रहा है। अजमल की पार्टी भी भविष्य के लिए अभी से मंसूबे पालने लगी है। पार्टी के महासचिव अनिमुल इस्लाम ने कहा है, 'हमें पहले के मतभेदों को भुलाना होगा और असम एवं असम के लोगों का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर काम करना होगा। हमें उम्मीद है कि अखिल गोगोई की अगुवाई वाली कृषक मुक्ति संग्राम समिति, वामपंथी दल और अजीत भुइयां की अगुवाई वाले नए फ्रंट हमारे साथ आएंगे।' उधर कांग्रेस के प्रवक्ता रितुपोर्ण कोंवर ने अभी से भाजपा को होने वाली सीटों के संभावित नुकसान का भी गुना-भाग करने लगे हैं। उनका कहना है अगर कांग्रेस और अजमल में समझौता हुआ तो भाजपा को इस बार विधानसभा में 18 सीटों का नुकसान होगा । इतना ही नहीं उनका कहना है कि 7-8 सीटों पर लेफ्ट का प्रभाव है और वह भी गठबंधन में आ गया तो भाजपा की वे सीटें भी फंस जाएंगी।
संभावित गठबंधन को लेकर क्या है भाजपा की रणनीति ?
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की मानें तो इस तरह की गठबंधन से राज्य में उनकी पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रंजीत दास के मुताबिक, 'हमारे 42 लाख सदस्य हैं- अगर हर सदस्य ने अतिरिक्त एक व्यक्ति को भी जोड़ लिया तो हमारे पास 84 लाख वोट होंगे। इसलिए हम चिंतित नहीं है। हमारी पार्टी लोकतांत्रिक है और इसलिए हम नई राजनीतिक पार्टी या गठबंधन का स्वागत करते हैं।' वो कहते हैं कि भाजपा अपने सरकार के विकास कार्यों के नाम पर चुनाव लड़ेगी। एक भाजपाई स्रोत ने बताया कि कांग्रेस सोचती है कि बीजेपी-विरोधी वोट उनके साथ जाएंगे। लेकिन, ऐसा नहीं होता, गठबंधन में जितने दल शामिल होंगे भाजपा-विरोधी वोट उतना बंटेगा और उसे फायदा मिलेगा। वहीं भाजपा के दिग्गज नेता और वरिष्ठ मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गठबंधन की कोशिशों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि अब गुवाहाटी में कांग्रेस मुख्यालय का नाम 'राजीव भवन' से 'अजमल भवन' हो जाएगा और उसके बाद भोज के दौरान चिकन और मटन के अलावा 'दूसरी तरह की मीट' परोसी जाएगी। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि इस उम्र में तरुण गोगोई को 'राम और कृष्ण' कहना चाहिए तो उन्होंने 'अजमल' को खोज लिया है।
एआईयूडीएफ का अबतक का प्रदर्शन
अगर बीते 15 वर्षों में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ के ग्राफ को देखें तो अंदाजा लग सकता है कि कांग्रेस को उससे गठबंधन करने के लिए क्यों बेकरार होना पड़ रहा है। यह पार्टी 2005 में बनी और पहला विधानसभा चुनाव 2006 में लड़ी। इसमें राज्य की 126 में से 10 सीटों पर उसे जीत मिली और 9.07% वोट हासिल हुए। 2011 के विधानसभा चुनाव में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 18 हो गई और वोट फीसदी भी बढ़कर 12.57 तक पहुंच गया। 2016 में उसे पहले 13.05% वोट के साथ 13 सीटें मिलीं और 2019 में हुए उपचुनाव में 1 सीट कांग्रेस को हराकर जीत लिया। वहीं लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2009 में उसे 14 में से 1 सीट (16.10% वोट) मिली। 2014 में 3 सीट (14.98% वोट) मिली और 2019 में 1 सीट मिली (7.80% वोट शेयर)।
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